फिर गरमाया आरक्षण का मुद्दा

By: Feb 10th, 2020 12:03 am

 कांग्रेस-लोजपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई असहमति

पटना –उच्चतम न्यायालय द्वारा पदोन्नति में आरक्षण को मौलिक एवं संवैधानिक अधिकार नहीं मानने एवं इसे राज्यों सरकार का विवेकाधिकार बताए जाने पर आरक्षण के मामले ने एक बार फिर ने तूल पकड़ लिया है। केंद्र सरकार की साथी बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने सरकारी नौकरियों और प्रोमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताई है, वहीं कांग्रेस ने भी इसे वंचित वर्ग के खिलाफ भाजपा की केंद्र व राज्य सरकार की दुर्भावना बताया है। गौर हो कि सुप्रीम कोर्ट ने सात फरवरी को दिए गए फैसले में कहा था कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरी और प्रोमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। लोजपा नेता चिराग पासवान ने पूना पैक्ट का जिक्र करते हुए कहा है कि पुरानी व्यवस्था को ही चलने दिया जाए। चिराग ने ट्वीट करते हुए कहा कि पार्टी भारत सरकार से मांग करती है कि तत्काल इस संबंध में कदम उठाकर आरक्षण-पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था जिस तरीके से चल रही है, उसी तरीके से चलने दिया जाए। उधर, कांग्रेस ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के लिए केंद्र एवं उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा को जिम्मेदार बताया।  पार्टी ने इस मुद्दे पर भाजपा को संसद एवं सड़क दोनों जगह घेरने की रणनीति बनाई है। कांग्रेस के महासचिव मुकुल वासनिक और दलित नेता उदित राज ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने मुकेश कुमार बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में हाल ही में फैसला सुनाया है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण संविधान के माध्यम से वर्णित मौलिक अधिकार या सरकार का संवैधानिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह सरकारों का विवेकाधिकार है। कांग्रेस पार्टी इस फैसले से असहमत है। यह फैसला भाजपा शासित उत्तराखंड सरकार के वकीलों की दलील के कारण आया है। इससे साबित होता है कि भाजपा आरक्षण विरोधी है और दलितों एवं आदिवासियों के हित के विरुद्ध है। कांग्रेस इसके खिलाफ देश भर में आंदोलन करेगी और सोमवार को संसद में भी इस विषय को उठाएगी।दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह प्रोमोशन में आरक्षण देने के लिए क्वॉन्टिटेटिव डाटा एकत्र करे। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि डेटा एकत्र कर पता लगाया जाए कि एससी/एसटी कैटेगरी के लोगों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं, ताकि प्रोमोशन में रिजर्वेशन दिया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को रिजर्वेशन देने के लिए निर्देश जारी नहीं किया जा सकता। किसी का मौलिक अधिकार नहीं है कि वह प्रोमोशन में आरक्षण का दावा करे। कोर्ट इसके लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता कि राज्य सरकार आरक्षण दे। ऐसे में उत्तराखंड हाई कोर्ट का आदेश खारिज किया जाता है और आदेश कानून के खिलाफ  है।

 


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