बड़ा आया स्साला

By: Feb 19th, 2020 12:05 am

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com

बंदा था कि सीना ताने, मेरे बाप के दफतर को अपने बाप का दफ्तर समझ दफ्तर में बेलगाम सा घुसा आ रहा था। उसे यों सीना तानकर अपने बाप के दफ्तर में घुसे आते देखा तो बहुत गुस्सा आया। जब गौर से देखा तो बंदा नया-नया लगा, सो सोचा, शायद बंदे को इस दफ्तर के नियम कायदे पता नहीं होंगे। जब मुझे लगा कि यह बंदा तो यार मेरे बाप के दफ्तर में मेरे बनाए सारे नियम कायदे तोड़ रहा है तो मैंने उसे रोकते कहा, ‘भाई साहब! जरा रुकिए तो सही! आप तो इस ऑफिस को अपना पुश्तैनी ऑफिस समझ बिन पूछे ही घुसे आ रहे हो जबकि यह आपका पुश्तैनी दफ्तर नहीं, मेरे बाप द्वारा सरकार से लीज पर लिया ऑफिस है। पहले आप मेरे पास यहां आकर अपना….’ मैंने उसे रोकते कहा तो वह तनिक रुका। तब लगा कि बंदा जितना मैंने सोच लिया था, उतना भी बेशर्म नहीं। वह रुका, उसने मुझे सादर नमस्कार कर मुझसे हाथ मिलाने को अपना मुट्ठी भींचा हाथ आगे बढ़ाया तो मेरा आधा गुस्सा जाता रहा, ‘कहो, क्या काम है? किससे मिलना है?’ ‘मैं तो बस यों ही चला आया था इधर’ उस अपरिचित ने कहा तो मुझे बंदे पर बहुत हैरानी हुई। मेरे दफ्तर में कोई और यों ही? यहां तो काम करवाने वाले भी दस बार आने से पहले सोचते हैं कि हमसे काम करवाने आएं या न! और ये बिन काम के ही….’ मानता हूं बंदे तेरा दुस्साहस! ‘तो तुमने सामने पढ़ा नहीं कि काम और बिना काम हमारे ऑफिस में प्रवेश वर्जित है?’  ‘लिखा तो हर दीवार पर और भी बहुत कुछ है सर’ उसने जिस बेशर्मी से कहा तो मन किया कि अभी इसकी टांगों से इसे मरे कुत्ते सा खींच-खींच बाहर फेंक दूं, स्वच्छ शहर के मुंह पर। ‘देखिए, आप चाहे जो हों, सो हों, पर बिना काम के तो बिलकुल भी अंदर नहीं जा सकते, तो नहीं जा सकते,’ मैंने उसे वैधानिक चेतावनी देते हुए उसके आगे खड़े हो उसे रोकना चाहा तो वह बोला’ पता है मैं कौन हूं?’ तुम सीएम के बंदे हो क्या?’ ‘नहीं।‘ ‘तो पीएम के बंदे हो क्या? देखो, तुम होते रहो, जिसके बंदे होते रहो। मेरे लिए तो हर अंदर जाने वाला बंदा पांच सौ का नया नोट होता है बस! और हां! इस दफ्तर में जो तुम सब देख रहे हो न! ये सब मेरी ही वजह से हुआ है….’ अब समझा, कहीं बीच के पैसे बचाकर बड़े बाबू से सीधे मिलना चाहते हो? पर प्यारे मैं भी मैं हूं। आदमी को दूर से आते ही सूंघ जाता हूं कि बंदा काम करवाने आ रहा है या…. वैसे हमारे ऑफिस में कोई यों ही क्यों आए? अब चाहे जो हो जाए सो हो जाए, पर तुम कारण बताए बिना ऑफिस में नहीं जा सकते तो किसी भी हाल में नहीं जा सकते’ यह सरकार का हुकम है,’ मैंने भी उससे अधिक अकड़ कर कहा तो वह कमर मटकाता बोला, ‘मैं कोरोना हूं।’  ‘तो क्या हो गया? हो तो जनता के बीच के ही न?’ ‘मैं कोरोना हूं भाई साहब कोरोना!’  ‘तो होते रहो। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।’ ‘मैं तबाही हूं।‘ ‘जा-जा यार! हम से अधिक तबाही तुम क्या खाक होंगे? हमने जिसकी फाइल एक बार दबा दी तो उसकी फाइल उसके मरने के बाद भी मिल जाए तो… हाथ कंगन को आरसी क्या, बिन पैसे की आरती क्या, वो देखो सामने मरने के बाद भी सालों से तड़पते भोलाराम के जीव को! ‘मैंने सैंकड़ों बंदे मार दिए।‘ ‘बस, सैंकड़ों? छी! छी! मैंने हजारों मार दिए आज तक। दो चार तो हम रोज ही मार देते हैं,’ मैंने उससे भी अधिक मुस्कुराते कहा तो वह बोला, ‘मैं वायरस हूं वायरस! तुममें घुस गया तो…. उसने ज्यों ही आंखें तरेरी तो मैंने उसके मुंह पर थूकते कहा, ‘जा-जा! बड़ा आया कोरोना! ऐसे वायरस दिन में दस-दस निपटाता हूं रोज बेटा!’ ज्यों ही मैंने उसको दो-दो हाथ करने को ललकारते हुए बाजू ऊपर किए कि वह यों भागा कि…. साला मेरे आगे बड़ा बन रहा था सबसे खतरनाक वायरस!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App