बरसाना की लट्ठमार होली के अपने रंग

By: Feb 29th, 2020 12:27 am

लट्ठमार होली ब्रज क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहां भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।

मान्यता : इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नंदगांव के पुरुषों (गोप), जो राधा के मंदिर लाडलीजी पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हंस-हंस कर लाठियां खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी  जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, शृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और, यहां पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है, वह प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगंधित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नंदगांव में, वहां की गोपियां, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती हैं।

परंपरा एवं महत्त्व : वृंदावन और मथुरा की होली का अपना ही महत्त्व है। इस त्योहार को किसानों द्वारा फसल काटने के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। गेहूं की बालियों को आग में रख कर भूना जाता है और फिर उसे खाते हैं। होली की अग्नि जलने के पश्चात बची राख को रोग प्रतिरोधक भी माना जाता है। मथुरा में बरसाने की होली प्रसिद्ध है। बरसाना राधा जी का गांव है जो मथुरा शहर से करीब 42 किलोमीटर अंदर है। यहां एक अनोखी होली खेली जाती है जिसका नाम है लट्ठमार होली। बरसाने में ऐसी परंपरा है कि श्री कृष्ण के गांव नंदगांव के पुरुष बरसाने में घुसने और राधा जी के मंदिर में ध्वज फहराने की कोशिश करते हैं और बरसाने की महिलाएं उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं और डंडों से पीटती हैं और अगर कोई मर्द पकड़ा जाए तो उसे महिलाओं की तरह शृंगार करना होता है और सबके सम्मुख नृत्य करना पड़ता है। फिर इसके अगले दिन बरसाने के पुरुष नंदगांव जाकर वहां की महिलाओं पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। यह होली उत्सव करीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वह है वृंदावन की होली। यहां बांके बिहारी मंदिर की होली और ‘गुलाल कुंद की होली’ बहुत महत्त्वपूर्ण है। वृंदावन की होली में पूरा समां प्यार की खुशी से सुगंधित हो उठता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि होली पर रंग खेलने की परंपरा राधाजी व कृष्ण जी द्वारा ही शुरू की गई थी।


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