महाभियोग का षड्यंत्र ध्वस्त

By: Feb 12th, 2020 12:05 am

विकेश कुमार बडोला

लेखक, उत्तराखंड से हैं

सन् 1868 में राष्ट्रपति एन्ड्रयू जॉनसन तथा 1988 में बिल क्लिंटन के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया आरंभ तो अवश्य हुई, परंतु दोनों नेताओं पर महाभियोग के अंतर्गत कोई कार्रवाई नहीं हुई और उन्होंने राष्ट्रपति पद हेतु निर्धारित अपना-अपना कार्यकाल पूरा किया। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के विरुद्ध भी महाभियोग की प्रक्रिया आरंभ करने की घोषणा हुई थी, परंतु उन्होंने घोषणा होते ही पद त्याग दिया…

अमरीकी संसद के उच्च सदन सीनेट ने महाभियोग संबंधी निर्णय में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को विपक्षियों द्वारा उन पर लगाए गए दोनों आरोपों से मुक्त कर दिया है। यह पहली बार होगा कि अभियोग के लिए नामित व सूचीबद्ध कोई अमरीकी राष्ट्रपति आरोप मुक्त हुआ है। ट्रंप तीसरे अमरीकी राष्ट्रपति हैं जिनके विरुद्ध महाभियोग स्वीकृत हुआ। सन् 1868 में राष्ट्रपति एन्ड्रयू जॉनसन तथा 1988 में बिल क्लिंटन के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया आरंभ तो अवश्य हुई परंतु दोनों नेताओं पर महाभियोग के अंतर्गत कोई कार्रवाई नहीं हुई और उन्होंने राष्ट्रपति पद हेतु निर्धारित अपना-अपना कार्यकाल पूरा किया। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के विरुद्ध भी महाभियोग की प्रक्रिया आरंभ करने की घोषणा हुई थी परंतु उन्होंने घोषणा होते ही पद त्याग दिया। हालांकि उच्च सदन में राष्ट्रपति का अपना दल रिपब्लिकन बहुमत में है अत: यह निश्चित था कि ट्रंप पर आरोपित महाभियोग अंत में निरस्त हो जाएगा। इस समय सीनेट में रिपब्लिकन 53 तो डेमोक्रेट 45 सीटों के साथ विराजमान हैं। 2 सीटें निर्दलियों के पास हैं। कुल 100 सीटों वाले इस सदन में महाभियोग के अंतर्गत ट्रंप पर लगे सत्ता के दुरुपयोग के प्रथम आरोप को सीनेट ने 52.48 मतों और कांग्रेस की जांच में बाधा उत्पन्न करने संबंधी द्वितीय आरोप को 53.47 मतों से निरस्त कर दिया। इस प्रकार नवंबर 2020 में राष्ट्रपति चुनाव से पूर्व ट्रंप को अमरीकी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत महाभियोग में उलझाकर अयोग्य सिद्ध करने का डेमोक्रेट्स का षड्यंत्र ध्वस्त हो चुका है। वास्तव में 2016 के बाद जब से अमरीका की राजनीति में डेमोक्रेट्स को विपक्ष में बैठना पड़ा तब ही से पक्ष व विपक्ष के मध्य व्यापक मतभेद उभरने आरंभ हुए। बल्कि नहीं, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच मतभेदों का बढऩा 2016 के राष्ट्रपति चुनाव प्रचार में ही शुरू हो चुका था। डेमोक्रेट्स को जब लगने लगा कि हार तय है तो उन्होंने हताशा में मीडिया के माध्यम से अनेक अलोकतांत्रिक, संघीय व्यवस्था को चुनौती देने वाले वक्तव्य दिए जिनसे दुनिया को प्रथम दृष्टया यही प्रतीत हुआ कि सच में वे ठीक कह रहे हैं और रिपब्लिकन, ट्रंप सहित हारने वाले हैं, लेकिन अनगिनत अंतरराष्ट्रीय मीडिया सर्वेक्षणों को विफल करते हुए चुनाव परिणाम रिपब्लिकन के पक्ष में रहा। इस आघात से डेमोक्रेट्स अभी तक बाहर नहीं निकल सके हैं। स्थानीय डेमोक्रेटिक नेता ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर अमरीकी डेमोक्रेटिक नेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक, व्यापारिक शक्तियां भी रिपब्लिकन की जीत के बाद सदमे से उबर नहीं पाई हैं। इन शक्तियों को पता था कि वे अमरीकी लोकतांत्रिक व संघीय व्यवस्था को औपचारिकतावश ढो रहे हैं और उनका मुख्य उद्देश्य देशी-विदेशी स्वार्थ सिद्ध करते हुए किसी तरह सत्तारूढ़ रहना था। रिपब्लिकन ट्रंप विगत चार वर्षों से उनकी इस राजनीतिक मंशा का रोड़ा बने हुए हैं। इतना ही नहीं, विपक्षियों को ट्रंप के नेतृत्व में उभरता नव अमरीकी राष्ट्रवाद भी सत्ता तक पहुंचने की अपनी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में बड़ी बाधा दिखाई दे रहा है।  इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रंप ने पिछले चार वर्षों में अमरीकी अर्थव्यवस्था, व्यापार, रोजगार के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में अनेक अभूतपूर्व कार्य किए हैं।

इतना ही नहीं, दुनिया में अमरीकी नेतृत्व में जहां-जहां, जिस-जिस देश में अनेक स्तरीय अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ी, पिछली सरकारों की तुलना में इस दिशा में भी ट्रंप ने प्रशंसनीय निर्णय लिए। उन्होंने सत्तारूढ़ होते ही आतंकियों के प्रश्रयदाता कुछ मुस्लिम देशों के नागरिकों का अमरीका आने पर प्रतिबंध लगाया। यही कार्य उन्होंने पिछले महीने फिर किया, जिसके तहत कुछ अन्य संदिग्ध देशों के नागरिकों का अमरीकी प्रवासन प्रतिबंधित हो चुका है। चीन के साथ व्यापारिक नीतियों को पारस्परिक आधार पर लाभोन्मुखी बनाने, चीन की व्यावसायिक एकाधिकार की मनोवृत्ति तोड़ने, उत्तर कोरिया के तानाशाह के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण के संबंध में दो बार वार्ता करने, बगदादी और सुलेमानी को अमरीकी संप्रभुता के लिए खतरा बनने पर मार डालने जैसे अनेक कार्य ट्रंप के कार्यकाल में ही संपन्न हुए। हमारे देश के लिए अमरीका ने 2017 और 2018 में दक्षिण एशिया में हमें सशक्त करने के उद्देश्य से अनेक कूटनीतिक, सामरिक और व्यापारिक नीतियां बनाने में अनापेक्षित सक्रियता दिखाई। विपक्षियों को विगत नवंबर में अमरीका में हुए मध्यावधि चुनाव से कुछ माह पूर्व ट्रंप विरोधी वातावरण बनाने का एक अवसर मिला था। अक्तूबर में ट्रंप के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव इसी आग में घी डालने के उद्देश्य से लाया गया था। मध्यावधि चुनाव में निम्न सदन हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव में डेमोक्रेट्स बहुमत में आ गए और वे रिपब्लिकन सरकार की नीतियों के विरुद्ध पहले से अधिक आक्रामक हो गए। महाभियोग के लिए ट्रंप पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव को ध्यान में रख यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की से अपील की कि वे प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेट प्रत्याशी जो बिडेन के पुत्र हंटर के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जांच करें। जो बिडेन के पुत्र का यूक्रेन में कारोबार है। नैंसी पेलोसी जो निम्न सदन की स्पीकर हैं, उन्होंने ट्रंप के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया चलाने में बढ़-चढ़ कर भागीदारी की थी।  रिपब्लिकन के कॉकस अभियान में ट्रंप का सफलतापूर्वक नामांकन होने और इसके बाद ट्रंप द्वारा संसद के साझा सत्र को संबोधित किए जाने की समयावधि बीतने के बाद भी डेमोक्रेट्स का कॉकस अभियान 12 प्रत्याशियों में से किसी एक को भी राष्ट्रपति के लिए नामांकित नहीं कर पाया था। डेमोक्रेट्स की ओर से जिस संभावित राष्ट्रपति प्रत्याशी जो बिडेन को उत्पीड़क बनाकर ट्रंप के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, वही बिडेन कॉकस चयन अभियान में डेमोक्रेट्स के विभिन्न प्रांतों के अपने ही प्रतिनिधियों की दृष्टि में राष्ट्रपति प्रत्याशी के लिए चौथे क्रम पर मात्र 15.8 प्रतिशत मत ही प्राप्त कर सके। डेमोक्रेट्स के कुल प्रतिनिधियों ने 12 में से 5 राष्ट्रपति उम्मीदवारों को 10 प्रतिशत से अधिक मत दिए, जिसमें से पीट बुट्टीग को सर्वाधिक 26.2 और बर्नी सैंडर्स को 26.1 प्रतिशत मत मिले। इसके अलावा एलिजाबेथ वारेन को 18, जो बिडेन को 15.8 और एमी क्लोबचर को 12.3 प्रतिशत मत मिले। इस आधार पर तो डेमोक्रेट्स के दलगत प्रचार के विपरीत जो बिडेन व बर्नी सैंडर्स को पीछे धकेलते हुए पीट बुट्टीग ही आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उसके संभावित प्रत्याशी प्रतीत होते हैं। इससे पता चलता है कि डेमोक्रेट्स के अंदर ही राष्ट्रपति प्रत्याशी बनने के लिए विकट खींचातानी चल रही है। अमरीका में कॉकस के अंतर्गत प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों के मतदान से किसी एक राष्ट्रपति प्रत्याशी का चयन किया जाता है। नामांकन में विजयी होने के लिए प्रत्याशी को 1990 पार्टी प्रतिनिधियों के मत की आवश्यकता होती है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App