विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Feb 1st, 2020 12:20 am

इन सूक्ष्म अवयवों में हारमोनों का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उनकी सक्रियता-निष्क्रियता का हमारी शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों पर भारी प्रभाव पड़ता है। शरीर की आकृति कैसी भी हो, उसकी प्रकृति का निर्माण तो मुख्यतः इन हारमोन रसों से ही प्रभावित होता है। यद्यपि आकृति पर भी इन जीवनरस-स्रावों का प्रभाव पड़ता ही है…

-गतांक से आगे….

यह क्षेत्र अत्यंत सुविस्तृत है। उसका थोड़ा-सा परिचय जिन प्रत्यक्ष प्रमाणों के आधार पर प्राप्त हो सकता है, उनमें अंत:स्रावी हारमोन ग्रंथियों की भी गणना की जा सकती है। उनसे निकलने वाले राई-रत्ती स्राव शरीर में कितनी अद्भुत गतिविधियां संपन्न करते हैं, उन्हें देखकर चकित रह जाना पड़ता है। शरीर-विज्ञान की अंतरंग शोधों से यह स्पष्ट हो गया कि हृदय, आमाशय, आंख, कान, त्वचा आदि तो यंत्र हैं। इन यंत्रों के संचालक सूक्ष्म अवयव अन्य ही होते हैं और उन संचालकग तत्त्वों या अवयवों के स्वरूप पर ही हमारे स्वास्थ्य का बहुत कुछ आधार निर्भर रहता है। इन सूक्ष्म अवयवों में हारमोनों का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उनकी सक्रियता-निष्क्रियता का हमारी शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों पर भारी प्रभाव पड़ता है। शरीर की आकृति कैसी भी हो, उसकी प्रकृति का निर्माण तो मुख्यत: इन हारमोन रसों से ही प्रभावित होता है। यद्यपि आकृति पर भी इन जीवनरस-स्रावों का प्रभाव पड़ता ही है। कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि विशेष मन:स्थिति के कारण किन्हीं युवतियों का रूप लावण्य तब तक बना रहा, जिस आयु में सामान्य रूप से शरीर पर वृद्धता के चिन्ह उभर आते हैं। उनके बने रहने का रहस्य-सूत्र भी निश्चय ही इन हारमोन-स्रावों में छिपा हुआ माना जाता है। यद्यपि औषधि विद्या और शल्य-प्रक्रिया की पहुंच अभी वहां तक नहीं हो पाई है, पर उनके स्वरूप की कुछ-कुछ जानकारी तो आधुनिक शरीरशास्त्र को हो ही गई है। हारमोन स्रावों के विशेष अनुसंधानकर्ता डा. क्रुकशेक ने इन स्रावों की आधार ग्रंथियों को जादुई ग्रंथियां कहा है और बताया है कि व्यक्ति की वास्तविक स्थिति को जानने के लिए इन स्रावों के संतुलन और क्रियाकलाप का परीक्षण करके ही यह जाना जा सकता है कि उसका स्तर एवं व्यक्तित्व सचमुच क्या है? हारमोन वे रासायनिक तत्त्व या रहस्यमय जीवन रस हैं, जो अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं। ग्रंथियां दो प्रकार की होती हैं- 1. बहिस्र्रावी ग्रंथियां या प्रणालीयुक्त ग्रंथियां (डक्ट या एम्सोक्राइन ग्लैंड्स) तथा 2. अंत:स्रावी या प्रणालीविहीन ग्रंथियां (इंडोक्राइन या डक्टलेस ग्लैंड्स।

बहिर्स्रावी ग्रंथियां : इन ग्रंथियों से प्रत्येक के साथ एक नलिका मिली होती है। नलिका द्वारा ग्रंथियों का रस स्राव शरीर के रक्त प्रवाह में न मिलकर शरीर की ऊपरी सतह पर चला जाता है।                                     

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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