श्री कृष्ण भक्ति के महान संत माधवाचार्य 

By: Feb 1st, 2020 12:28 am

श्री माधवाचार्य का जन्म दक्षिण भारत में उडुपी के निकट तुलुव क्षेत्र के वेलीग्राम नामक स्थान पर विजया दशमी विक्रमी संवत 1256 (1199 ई) को हुआ था। इनका बाल्यावस्था का नाम वासुदेव था। 11 वर्ष की आयु में ही इन्होंने अद्वैत मत के संन्यासी सनककुलोद्भव आचार्य शुद्धानंद अच्युतपक्षा से दीक्षा ले ली। दीक्षा लेने पर इनका नाम पूर्णप्रज्ञ पड़ा। वेदांत में पारंगत हो जाने पर इन्हें आनंदतीर्थ नाम देकर मठाधीश बना दिया गया। बाद में आनंदतीर्थ ही मध्व नाम से प्रख्यात हुए। मध्व ने पहले शिक्षा-दीक्षा तो अद्वैत वेदांत की पाई थी, किंतु बाद में अद्वैतवाद से संतुष्ट न होने के कारण इन्होंने द्वैतवाद का प्रवर्तन किया।  

जीवन परिचय

श्री माधवाचार्य का जन्म माघ शुक्ल सप्तमी के दिन तमिलनाडु के मंगलूर जिले के अंतर्गत बेललि ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनारायण भट्ट और इनकी माता का नाम श्रीमती वेदवती था। ऐसा कहा जाता है कि भगवान नारायण की आज्ञा से भक्तिसिद्धांत की रक्षा और प्रचार के लिए स्वयं श्री वायुदेव ने ही श्री माधवाचार्य के रूप में अवतार लिया था। अल्पकाल में ही इनको संपूर्ण विद्याओं का ज्ञान प्राप्त हो गया। जब इन्होंने संन्यास लेने की इच्छा प्रकट की, तब इनके माता-पिता ने मोहवश उसका विरोध किया।

संन्यास

श्री माधवाचार्य ने अपने माता- पिता के तात्कालिक मोह को अपने अलौकिक ज्ञान के द्वारा निर्मूल कर दिया। इन्होंने ग्यारह वर्ष की अवस्था में अद्वैत मत के विद्वान संन्यासी श्रीअच्युतपक्षाचार्य से संन्यास की दीक्षा ग्रहण की। इनका संन्यास का नाम पूर्णप्रज्ञ रखा गया। संन्यास के बाद इन्होंने वेदांत का अध्ययन किया। इनकी बुद्धि इतनी विलक्षण थी कि इनके गुरु भी इनकी अलौकिक प्रतिभा से आश्चर्यचकित रह जाते थे। थोड़े ही समय में संपूर्ण दक्षिण भारत में इनकी विद्वत्ता की धूम मच गई।

माध्वमत की पृष्ठभूमि

आरंभ में अद्वैतवाद में दीक्षित होने पर भी मध्व ने शंकर द्वारा प्रवर्तित अद्वैत वेदांत पर प्रमुख रूप से दो आपत्तियां कीं। पहली तो यह कि अद्वैत वेदांत में सामान्य अनुभव की उपेक्षा की गई है। जीव और ब्रह्म में पार्थक्य होने पर भी शंकर ने उनमें अद्वैत माना है। यह सामान्य अनुभव के अनुरूप नहीं है, दूसरी आपत्ति मध्व की यह थी कि शंकराचार्य के निर्गुण ब्रह्म की संकल्पना मानव को शांति प्रदान करने में असमर्थ है। मध्व से पहले रामानुज को भी अद्वैतवाद में त्रुटियां दिखाई दे गई थीं, किंतु मध्व को रामानुज का कथन भी अपर्याप्त लगा। अतः उन्होंने शंकर के अतिरिक्त रामानुज के मत को भी ग्राह्य नहीं समझा।

माधवाचार्य के ग्रंथ

श्री माधवाचार्य ने अनेक ग्रंथों की रचना, पाखंडवाद का खंडन और भगवान की भक्ति का प्रचार करके लाखों लोगों को कल्याणपथ का अनुगामी बनाया। अपने मत की अभिव्यक्ति के लिए मध्व ने लगभग 30 वर्ष ग्रंथ लेखन में बिताए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App