संबंधों के रहस्य

By: Feb 1st, 2020 12:20 am

श्रीश्री रवि शंकर

मानसिक संवाद विचारों एवं शब्दों के जरिये होता है,परंतु दिलों की बातचीत भावनाओं के द्वारा होती है। लोगों ने युगों से सदैव महसूस किया है कि वे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर सकते। यदि हम अपनी भावनाओं को शब्दों द्वारा कह सकते, तो हमारा जीवन अत्यंत ही छिछला होगा। जबकि जिंदगी अत्यंत कीमती है,जिसे शब्दों में कैद नहीं किया जा सकता। इसलिए हम संकेतों का प्रयोग करते हैं। भावनाओं को प्रदर्शित करने हेतु पूरा प्रयास करते हैं। दो आत्माओं के बीच संवाद खामोश है। जब हम भावनाओं के स्तर से ऊपर हैं, तो निस्तब्ध हो जाते हैं। निस्तब्धता किसी भी अनुभव की पराकाष्ठा है इसलिए कि खामोश रहिए और अपने ईश्वर को जानिए। जब हमारी आंखें खुली होती हैं, तो हम क्रियाकलाप में खोए रहते हैं और जब आंखें बंद हों, तो निद्रा में चले जाते हैं। इस तरह हम मुख्य बिंदु से वंचित रह जाते हैं। मुख्यबिंदु इन दोनों अवस्थाओं के बीच में है। चिंतन के द्वारा हम अंतर्मन से ईश्वर को देखते हैं और प्रेम से हम ईश्वर का अपने निकटतम व्यक्ति में दर्शन करते हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अतः जितनी ही ज्यादा हम उनकी (ईश्वर) की सेवा करते हैं उतनी ही गहराई में उतरते जाते हैं। संसार में दो तरह के लोग हैं एक वे जो अपने में केंद्रित होते हैं और अपने ही संवर्धन में लगे रहते हैं,जबकि दूसरे सेवा में खोए रहते हैं। जो सेवा में ही खोए रहते हैं यदि थकान महसूस करें, निराश हो जाएं या फिर क्रोधित हों, तो उनकी सेवा भी प्रभावित होती है। एक बार कुछ युवा स्काउटों से रविवार की सेवा में  फादर ने कहा, तुम सभी को सेवा करनी चाहिए। सेवा क्या है? उन सभी ने पूछा?

फादर ने कहा, मान लो कि एक बूढ़ी स्त्री सड़क पार करना चाहती है, आप सभी आगे बढ़कर उनकी सहायता करो। स्काउटों ने एक हफ्ते तक इंतजार किया,लेकिन कोई भी बूढ़ी स्त्री सड़क पार करती नहीं दिखी। अंततः उनमें से चार को एक  बूढ़ी स्त्री फूटपाथ पर दिखी। एक आगे बढ़ा और पूछा मैडम,क्या आप सड़क पार करना चाहेंगी। बूढ़ी स्त्री ने कहा, नहीं। स्काउट बहुत निराश हुआ। दूसरा आगे बढ़ा यह सोचते हुए कि शायद पहले लड़के ने ठीक से नहीं पूछा होगा, उसने भी पूछा क्या आप सड़क पार करना चाहेंगी? वह महिला थोड़ी घबराई,उसे आश्चर्य भी हुआ कि उससे ऐसा क्यों पूछा जा रहा था। इसलिए उसने कहा कि चलो ठीक है सड़क पार करवा दो। ज्यों ही वे दूसरी तरफ पहुंचे,तीसरा स्काउट पहुंचा और उसने पूछा क्या आप सड़क पार करना चाहेंगी। इस बात से वह महिला घबरा गई और जब चौथा पहुंचा वह तकरीबन चिल्लाते हुए भागी। हम सोचते हैं कि सेवा है। सेवा का मतलब कुछ भी करना नहीं है। यह वह भावना है, जिसमें आप तत्परतापूर्वक कुछ करने को उद्धत होते हैं। ज्यादतर लोग पहले न ही कहते हैं और बाद में सोचकर हां कहते हैं। यदि कोई आपसे पूछे कि आप घुड़सवारी करने दोगे, तो आप पहले न कहोगे,उसके बाद ही आप हां कहोगे। आप उसे घुड़सवारी का मौका दे सकते हैं, लेकिन पहले न कहने की वजह से अंतःकरण खींचतान होती है। सेवा दूसरे व्यक्ति में ईश्वर का दर्शन करना है और जब हम सेवा करते हैं, तो अंतर्मन की गहराई में उतरते हैं। जितनी गहराई में उतरते हैं उतनी ही बेहतर सेवा में समर्थ होते हैं।


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