हिमाचल का दुनिया को पोमेटो चैलेंज, कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हरियाणा में उगी फसल को बताया जहरीला

By: Feb 2nd, 2020 12:10 am

आलू के पौधों पर कलम करके पोमेटो तैयार किया जाता है, जिसमें जमीन के ऊपर टमाटर और नीचे आलू उगते हैं। पोमेटो को हिमाचल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है, जिसपर अभी यह शोध चल रहा है कि यह किसानों के लिए कितना फायदेमंद है, लेकिन इन सबके बीच हरियाणा के खेतों में अपने आप उगे एक जहरीले पौधे को कु छ लोगों ने पोमेटो कह डाला। इसी को लेकर अब हिमाचली कृषि वैज्ञानिकों ने दुनिया को पोमेटो चैलेंज दिया है। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों ने हरियाणा के खेत में उगी फसल को जानलेवा बताया है। आलू पर अपने आप उगी टमाटरनुमा चीज जहरीली होती है। हिमाचल में कहीं ऐसी फसल उगी है, तो लोग उसे कतई न खाएं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पोमेटो अपने आप नहीं उग सकता। इसे आलू के पौधों पर कलम करके ही उगाया जा सकता है। हिमाचल में पोमेटो पर चल रहे शोध को लेकर अपनी माटी के लिए वरिष्ठ पत्रकार जयदीप रिहान ने विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अशोक सरयाल से बात की। उन्होंने कहा कि पोमेटो पर शोध चल रहा है। दूसरी ओर पोमेटो की पौध तैयार करने वाले प्रदेश कृषि विवि के वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार का कहना है कि आलू के ऊपर अपने आप उगी टमाटरनुमा चीज जहरीली है। कृप्या इसे न खाएं। लोेगों तक सही जानकारी पहुंचाना हमारा फर्ज है।

रिपोर्ट: जयदीप रिहान , पालमपुर

 बिना इजाजत नहीं लगा पाएंगे एनर्जेटिक हैंडपंप, नए नियम समझ लें

मौजूदा सभी बिना पंजीकृत एनर्जेटिक हैंडपंपों के मालिकों को भी करवाना होगा पंजीकरण। एंकर – हिमाचल में अब एनर्जेटिक हैंडपंप लगाने के नियम बदल गए हैं। अगर आप नया हैंडपंप लगवाना चाहते हैं या फिर पहले से लगा रखा है, तो आपको भू-जल प्राधिकरण से अनुमति लेनी होगी। हिमाचल  भू जल अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अनुसार अब औद्योगिक,वाणिज्य ,सिंचाई या घरेलू उपयोग के लिए एनर्जेटिक हैंडपंपों की ड्रिलिंग से पूर्व  प्राधिकरण से अनुमति लेना जरूरी कर दी गई है। ऐसा इसलिए किया गया है कि  कई जगह भू जल का स्तर कम हो रहा है, ऐसे में प्राधिकरण ही तय करेगा कि कहां हैंडपंप लगना है और कहां नहीं। अपनी माटी टीम ने नए नियमों को समझने के लिए अधिशाषी अभियंता सिरमौर इंजीनियर जेएस चौहान से बात की। उन्होंने कहा कि नए एनर्जेटिक हैंडपंपों के लिए भूजल प्राधिकरण की इजाजत जरूरी है।

रिपोर्ट: राकेश थापा, नाहन

चुटकियों में पत्थर तोड़ने वाली मशीन पर हिमाचली मिस्त्री फिदा, कमाई भी जोरदार

हिमाचल में नए भवनों में पत्थर का खूब इस्तेमाल होता है। प्रदेश में छोटा पत्थर ज्यादा डिमांड में रहता है, जिसका एक पीस 12 रुपए तक मिलता है, ऐसा इसलिए कि पत्थर को तोड़ने में बहुत लेबर लगती है, लेकिन अब हिमाचली मिस्त्री पत्थर तोड़ने के लिए बड़े हथौड़े की जगह एलटी नाम की नई ड्रिल मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस मशीन से जहां कम समय में ज्यादा काम हो रहा है, वहीं सुरक्षित होने के साथ कमाई का भी यह नया जरिया है। पत्थर तोड़ने के दो मुख्य तरीके हैं।  ब्लास्टिंग या फिर छैनी से ड्रिल करके बड़े हथौड़े से प्रहार करके। इन तरीकों से एक आदमी दिन में छह सौ रुपए तक कमा पाता है, लेकिन ड्रिल मशीन से एक मजदूर दिन में चार हजार तक कमा सकता है। इस विधि के  तहत पहले मशीन से ड्रिल किया जाता है, उसके बाद दो स्पिटर के बीच छैनी को फंसा दिया जाता है, फिर छोटे हथौड़े से हल्के प्रहार किए जाते हैं। कुछ ही पल में बड़े से बड़ा पत्थर ढेर हो जाता है। अपनी माटी टीम ने कांगड़ा जिला के बंडी गांव के मिस्त्री ओम प्रकाश से बात की। ओम प्रकाश अपने दो साथियों के साथ पिछले एक साल से ड्रिल मशीन के जरिए काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे एक दिन में 10 से 12 हजार रुपए तक का काम निकाल रहे हैं। यह मशीन 50 हजार रुपए की है,जबकि इसकी स्पेशल छैनियां भी इतने ही दामों में मिल जाती हैं, जो बरसों तक खराब नहीं होती, जबकि बड़े हथौड़े से हर तीसरे दिन छैनियों को सुखाना पड़ता है। ओम प्रकाश का कहना है कि किसी ने उनसे इस बारे में जानकारी लेनी हो तो वह 98051 65497 पर संपर्क कर सकता है, तो किसान भाइयों कैसी लगी यह स्टोरी, हमें जरूर बताएं।

 रिपोर्टः पूजा चोपड़ा

देवेंद्र से सीख पाकर कइयों ने छोड़ी रासायनिक खेती

कृषि विभाग पद्धर द्वारा प्रायोजित आत्मा परियोजना के तहत क्षेत्र के किसान प्राकृतिक खेती अपनाकर जहां मुनाफा कमा रहे हैं, वहीं अन्य किसानों को भी प्राकृतिक खेती करने के लिए जागरूक कर रहे हैं। द्रंग विकास खंड की नेर घरवासड़ा पंचायत के युवा किसान देवेंद्र कुमार अपने क्षेत्र के किसानों के लिए मिसाल बनकर उभरे हैं। देवेंद्र कुमार ने तीन बीघा जमीन में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की विधि को अपनाकर खेती की शुरुआत की ओर उसके उन्हें अच्छे परिणाम मिलना शुरू हो गए। इसी तरह इंद्रा, फुलमो व कुशमा आदि ने भी प्राकृतिक खेती को अपनाकर रसायनिक खेती करना छोड़ दी। इनका कहना है कि पहले वे भी आधुनिक तरीके से खेतिकर अपनी फसलों पर कीटनाशकों, रसायनिक खादों व खरपतनाशकों का प्रयोग किया करते थे, लेकिन जैसे ही शून्य लागत प्राकृतिक खेती प्रदेश में शुरू हुई। इन्होंने इस विधि को समझा व जानकारी हासिल की। इस विधि से तैयार खाद्य उत्पाद जहां मानव जाति के लिए सुरक्षित हैं, वहीं इसमें लागत भी शून्य के बराबर है।    

             रिपोर्ट: नवीन शर्मा, उरला (मंडी)

देवराज भारती ने अपनाई जीरो बजट आप कब से करेंगे शुरू

मंडी जिला में कृषि विकास खंड चौंतड़ा के तहत कई किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ रहे हैं। चौंतड़ा से सटी पंचायत फसल के ढुमेहढ गांव के किसान देवराज भारती ने लगभग छह बीघे जमीन पर प्राकृतिक खेती शुरू की थी। इसके अच्छे रिजल्ट मिले हैं। भारती ने अभी गेहूं व मटर की बिजाई कर दी है। वह अपनी  जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए देशी गाय का गोबर, गो-मूत्र, बेसन, गुडड्, का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे भूमि की उर्वरता भी बढ़ी है। खास बात यह कि देशी खाद,जीवामृत बनाने के लिए प्लास्टिक के ड्रम अनुदान पर विभाग द्वारा प्रदान किए गए। खंड तकनीकी प्रबंधक सुनील कुमार ने बताया कि यहां विभाग के प्रयासों से किसान यूरिया, केमिकल खाद व उर्वरक का किसी तरह से प्रयोग नही करते हैं। इसमें मात्र देशी गाय के गोबर व मूत्र से तैयार की गई खाद का इस्तेमाल करते हैं। आज हिमाचल को देवराज जैसे किसानों पर नाज है, तो आप कब अपना रहे हैं प्राकृतिक खेती।

-रमेश सूद , चौंतड़ा

स्वर्ण से सीखें एक देसी गाय से 30 एकड़ में खेती का मंत्र

पता है एक देसी गाय से 30 एकड़ जमीन में खेती की जा सकती है। जी हां! जीरो बजट खेती से यह संभव है। कई किसान खेती की इस तकनीक को अपनाने के बाद दूसरों को भी जागरूक कर रहे हैं। इन्हीं किसानों में से एक हैं कुल्लू के स्वर्ण जसरोटिया। जिला के प्रवेश द्वार भुंतर के रहने वाले स्वर्ण पिछले दो साल से जीरो बजट खेती कर रहे हैं। वह मुख्यतः टमाटर उगाते हैं तथा उनका अनार का बागीचा भी है। स्वर्ण कहते हैं कि पहले उनके कई अनार और टमाटर के बूटे सूख जाते थे, लेकिन जबसे उन्होंने शून्य बजट खेती अपनाई है,कोई बूटा नहीं सूखा, उल्टे इनकम बढ़ गई। वह अपने अनार के बागीचे से एक सीजन में एक लाख रुपए तक कमाई कर लेते हैं। यह जीरो बजट खेती का ही कमाल है कि अब कई किसान और बागबान स्वर्ण से जीरो बजट खेती का मंत्र सीखने आ रहे हैं। स्वर्ण को जीरो बजट खेती काफी आसान लगती है। इसमें गोबर, गो-मूत्र में लस्सी व गुड़ आदि मिलाकर नेचुरल कीटनाशक तैयार किया जाता है। सबसे बड़ी बात यह कि जीरो बजट खेती रासायनिक खेती से काफी आसान भी है। बहरहाल आज स्वर्ण जैसे किसानों के दम पर ही  प्रदेश की जयराम सरकार 50 हजार किसानों को इस खेती से जोड़ने का सपना संजोए हुए है, तो किसान भाइयों आपको कैसी लगी स्वर्ण की कहानी, हमें जरूर बताएं। जल्द मिलेंगे नई कहानी के साथ। 

 रिपोर्ट: मोहर सिंह पुजारी, कुल्लू

 

धार-लेहड़ा के किसानों के खेतों में फिर से लहराएगी हरियाली

बल्ह  क्षेत्र के अंतर्गत लोअर रिवालसर पंचायत के मझवाड़, धार, लेहड़ा व चलौण गांव के किसानों  खेतों पर फिर से हरियाली लहराएगी, क्योंकि सिंचाई सुविधा से वंचित हो गए गांव के इन खेतों को फिर से सिंचाई सुविधा का लाभ मिलना तय हो गया है। जानकारी के अनुसार किसानों की सिंचाई सुविधा की मांग को लेकर वर्ष 2002-2003  में करीब 45 लाख धन राशि खर्च कर यहां के किसानों के खेतों को सिंचित करने को लेकर त्राम्बी खड्ड से लेकर धार- लेहड़ा तक करीब 2800 मीटर लंबी कूहल बनाई गई थी जिससे करीब 500 बीघा खेत सिंचित हो रहे थे, लेकिन उचित रखरखाव न होने के कारण कुछ ही वर्षों में कूहल जगह जगह से टूट गई थी। जिस से यहां के किसान सिंचाई सुविधा से वंचित हो गए थे, इस सबंध में गांव के हेतराम, रूपलाल, नोखु, गौरी प्रशाद, लीला धर, बिहनु व किसन सहित बहुत से किसानों ने कूहल के जीर्णोंद्धार को लेकर विभाग से बार- बार मांग उठा रहे थे। वहीं किसानों की मांग को लेकर सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग रिवालसर ने कूहल की मरम्मत को लेकर एक प्राकलन तैयार कर प्रदेश सरकार को भेजा था। जिसे प्रदेश सरकार ने अपनी सहमति प्रदान करते  हुए कूहल के जीर्णोंद्धार को लेकर  करीब 40 लाख रु की धन राशि स्वीकृति की है। इस बात को लेकर किसानों में खुसी की लहर छा गई है।

            रिपोर्ट: लक्ष्मीदत शर्मा, रिवालसर

आढ़तियों के आगे क्यों बेबस हैं बागबान

अब चौपाल से सामने आया लाखों डकारने का मामला,सीएम हेल्पलाइन ने भी किया निराश…

हिमाचल सरकार के सभी दावों के बावजूद बागबानों का पैसा डकारने वाले आढ़तियों  पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है। इस बार का मामला शिमला जिला के चौपाल उपमंडल से सामने आया है,जहां दो दर्जन बागबानों के लाखों रुपए अभी तक आढ़तियों ने नहीं चुकाए हैं। बागबानों का कहना है कि यह बड़ी रकम दो साल से फंसी है। बागबान मंजेश रमचाइक व ओम प्रकाश का आरोप है कि वे इससे संबंधित शिकायत सीएम हेल्पलाइन पर भी कर चुके हैं परंतु उन्हें वहां से भी कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिल पाया है। बागना निवासी मंजेश व ओम प्रकाश ने बताया कि उन्होंने एवं अन्य चार बागबानों देईराम बागना, सूरत राम सोयल, बेलीराम शुरटा तथा जगतराम वर्मा ने 2018 में परवाणू के कारोबारियों को सेब बेचा था, जिसकी सभी बागबानों की कुल राशि लगभग 17 लाख तक बनती है। दो साल बीतने पर भी आढ़ती द्वारा उन्हें इस राशि का भुगतान नहीं किया गया है। अब आढ़ती भुगतान करने से इनकार करता है एवं धमकियां देता है।  मंजेश रमचाइक ने बताया कि इसी प्रकार वर्ष 2019 में भी उन्होंने व 15 अन्य बागबानों ओम प्रकाश बागना, देईराम बागना, मस्तराम बागना, दुर्गा सिंह बागना, भागमल बागना, दिनेश ढले ऊना, लायक राम ठेकरा, रामलाल ठेकरा, दौलतराम दासटा सेरटी, शर्मा देइया, बेलीराम धनोट, रामलाल बरसांटा लालपानी, सुरेंद्र नोहरू, केवल राम नोहरू बागना, प्रेम शलन, रघुबीर बधान आदि ने परवाणू के ही आढ़ती को सेब बेचे, जिसकी कुल कीमत 35 लाख रुपए से अधिक बनती है। यह आढ़ती भी सेब की राशि का भुगतान करने में आनाकानी कर रहा है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर जयराम सरकार क्यों बागबानों को भुगतान नहीं करवा पा रही है।

रिपोर्ट: सुरेश सूद, नेरवा

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