आर्थिक मंदी का वायरस

By: Mar 28th, 2020 12:04 am

कोरोना महासंकट के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक ने भी एक महत्त्वपूर्ण पहल की है। कमोबेश बैंकों की व्यवस्था, नकदी की मौजूदगी और आम ग्राहक के वित्तीय हितों को भरोसा देने की कोशिश की गई है। बेशक रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में परिवर्तन करता रहा है, लेकिन अब आम ग्राहक असहाय स्थिति में दिख रहा है। दुकानें, रोजगार, बाजार बंद हैं, लिहाजा पैसे का लेन-देन ठहर गया है, लेकिन आम आदमी पर आर्थिक कर्जों और खर्चों के बोझ यथावत हैं। रिजर्व बैंक ने अपने गवर्नर शक्तिकांत दास के जरिए इस मुद्दे को संबोधित किया है। गवर्नर ने राहतों और रियायतों की घोषणा जरूर की है, लेकिन उनका यह अंदेशा पुख्ता होता जा रहा है कि विश्व आर्थिक मंदी की ओर बढ़ता जा रहा है, जाहिर है कि उसका असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा और अब 5 फीसदी या उससे अधिक की विकास-दर को छूना मुश्किल होगा। यह आकलन देशवासियों को पीड़ा और चिंता का एहसास करा सकता है, लेकिन कोरोना महामारी के विस्तार का यही यथार्थ है। बेशक ढहती अर्थव्यवस्था भी कोई शाश्वत स्थिति नहीं है। बहरहाल रिजर्व बैंक ने जिन प्रयासों और रियायतों की घोषणा की है, उनसे 3.74 लाख करोड़ रुपए हमारी व्यवस्था को मिलेंगे। यानी बैंकों और आम ग्राहक के हाथ में अतिरिक्त नकदी होगी। उसके लिए बाजार के विकल्प खुल सकते हैं। सामान्य माहौल होने के बाद बाजार खुलेगा, तो खरीददारी भी संभव होगी और औसत मांग वहीं से बढ़ सकेगी। कोरोना और लॉकडाउन के मौजूदा दौर में यह भी एक बुनियादी चिंता थी कि होम लोन, कार लोन या किसी अन्य कर्ज की ईएमआई का भुगतान कैसे होगा? रिजर्व बैंक ने निर्देशात्मक सलाह दी है कि बैंक सभी तरह की ईएमआई के भुगतान और ब्याज पर फिलहाल तीन माह की रोक लगा दें। बैंकों को अपने सॉफ्टवेयर में परिवर्तन कर नए प्रावधानों को जोड़ना होगा अथवा औसत ग्राहक अपने बैंक को आवेदन कर सकते हैं कि फिलहाल तीन महीनों तक ईएमआई की राशि उनके बैंक खाते से न काटी जाए। गवर्नर के वक्तव्य से यह स्पष्ट नहीं है कि यह तीन माह की रोक कारोबारियों, स्व रोजगार वालों या उद्योगपतियों के संदर्भ में भी लगाई गई है या नहीं! बहरहाल अधिसूचना से सब कुछ स्पष्ट हो सकता है। बेशक रिजर्व बैंक ने आश्वस्त किया है कि सभी बैंकों में नकदी बढ़ेगी और कर्ज भी सस्त होंगे। पहले से ज्यादा तरलता बैंकों के पास होगी, लिहाजा भारत में बैंकिंग सिस्टम भी मजबूत रहेगा और आम ग्राहक का पैसा भी सुरक्षित रहेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि रिजर्व बैंक की रियायतों से आम मध्यम वर्ग और कारोबारियों को बहुत मदद मिलेगी। आर्थिक पैकेज के बाद यह सरकारी पक्ष की दूसरी महत्त्वपूर्ण आर्थिक पहल है। कई राज्य सरकारें भी ऐसी मदद की घोषणाएं कर चुकी हैं। हकीकत का विरोधाभास भी है। खबरें आ रही हैं कि आम मजदूर, गरीब, दिहाड़ीदार का रोजगार छिन चुका है। उस जमात को तुरंत मदद देकर संकट को कम क्यों नहीं किया जा सकता? क्या उसमें भी सरकारी औपचारिकताएं आड़े आती रहेंगी? भारत में कोरोना महासंकट की अभी तो शुरुआत हुई है। वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या शुक्रवार दोपहर तक 753 तक पहुंच चुकी थी। मौत का आंकड़ा भी 17 हो गया है। लगातार संख्या बढ़ रही है, क्योंकि 26 मार्च को एक ही दिन में 88 मरीज सामने आए थे। बेशक यह आंकड़ा भी डरावना है, क्योंकि हम अमरीका और यूरोप से तुलना नहीं कर सकते। अभी तो यह भी निश्चित नहीं है कि यह दौर कब तक जारी रहेगा? क्या 14 अप्रैल को देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि खत्म होने के बाद तथ्य सामने आएगा कि कोरोना वायरस की मार और प्रसार को नियंत्रित कर लिया गया है? सवाल यह भी है कि यदि लॉकडाउन का विस्तार किया जाता है, तो यह कब तक संभावित होगा? इतने कालखंड के लिए आर्थिक संसाधन और भोजन की व्यवस्था कैसे होगी? सरकार तो सिर्फ  पंजीकृत और सूचीबद्ध तबके तक सीमित है, लेकिन यह देश तो करीब 138 करोड़ की आबादी का है। अनिश्चितता का यह दौर बरकरार रहने वाला है, हालांकि चिंता और तनाव से भी हासिल क्या होगा?

 


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