कोरोना चुनौती के बीच निर्यात

By: Mar 16th, 2020 12:06 am

जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

निःसंदेह कोरोना वायरस इस समय भारत के लिए निर्यात बढ़ाने का मौका बन सकता है। चीन की अर्थव्यवस्था की मुश्किलों और निर्यात में भारी कमी के कारण भारत की तीन नई संभावनाएं उभर रही हैं। एक, देश के छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन तथा अमरीका सहित उन देशों को निर्यात बढ़ा सकते हैं, चीन का निर्यात बहुतायत में बना हुआ है। दो, चीन की जगह भारत वैश्विक निवेश का नया वैश्विक केंद्र बन सकता है…

यकीनन इस समय जब कोरोना वायरस ने वैश्विक आर्थिक महामारी बनकर वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में ले लिया है, तब भारत आर्थिक चुनौतियों के बीच भी रणनीतिपूर्वक उत्पादन और निर्यात बढ़ाकर वैश्विक उपभोक्ताओं की मांग की पूर्ति में नई भूमिका निभा सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में 12 मार्च को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने देश के औद्योगिक एवं निर्यातक संगठनों के साथ बैठक आयोजित करके देश के उद्योग कारोबार को मुश्किलों से बचाने और निर्यात बढ़ने की नई संभावनाओं के लिए विचार मंथन किया। गौरतलब है कि इस समय जब कोरोना से प्रभावित चीन कई वस्तुओं का निर्यात करने में सक्षम नहीं है, तब भारत चीन की अक्षमता का फायदा उठाते हुए वैश्विक निर्यात बाजार में खासतौर से इलेक्ट्रिक आइटम, व्हीकल, आर्गेनिक केमिकल्स, अपैरल व क्लोडिंग एसेसरीज एवं लैदर जैसे पांच क्षेत्रों में चीन का नया विकल्प बन सकता है।

इन पांच क्षेत्रों के अलावा, झिंगा मिनरल आयल, काटन फाइबर्स, यार्न, कांपर, लाइफस्टाइल गुड्स, सेरेमिक टाइल्स, होमवेयर जैसे क्षेत्रों में भी भारत से निर्यात बढ़ने की संभावनाओं को साकार किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि इस समय वैश्विक बाजार में भारत से निर्यात बढ़ने के तीन स्पष्ट कारण दिखाई दे रहे हैं। एक, कोरोना प्रकोप के कारण चीन से जिन देशों को निर्यात घट गए हैं, वहां भारत नए निर्यात-मौकों को मुट्ठियों में कर सकता है। दो, अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार बन गया है और अमरीका को निर्यात बढ़ने की संभावनाएं बढ़ी हैं और तीन, वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों पर भारी कमी मेक इन इंडिया को प्राथमिकता और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन व सस्ते श्रम के कारण भारत से उन देशों में भी निर्यात बढ़ने की संभावनाएं हैं, जहां अब तक भारत के निर्यात नगण्य हैं।

निःसंदेह अमरीका में भारत की निर्यात संभावनाओं का नया परिदृश्य उभरकर सामने आया है। अब तक अमरीका और चीन के बीच ट्रेडवार के कारण अमरीका में भारत के जो मौके बढ़ रहे थे, वे अब कोरोना प्रकोप के बाद चमकीली संभावनाओं में बदल गए हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि विगत 24 और 25 फरवरी को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहली भारत यात्रा के बाद भारत और अमरीका के बीच आर्थिक संबंधों को ऊंचाई दिए जाने का नया उत्साहवर्द्धक परिदृश्य सामने आया है। ट्रेड डील को लेकर भारत और अमरीका के बीच बातचीत पर सकारात्मक सहमति बनी है जिसके चलते शीघ्र ही दोनों देशों के बीच व्यापक मुक्त व्यापार समझौता ‘एफटीए’ आकार लेते हुए दिखाई देगा और इससे दोनों देशों के बीच कारोबार छलांगें लगाकर बढ़ता हुआ दिखाई देगा।

गौरतलब है कि वर्ष 2018-19 में अमरीका ने चीन को पीछे छोड़कर भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर होने का तमगा हासिल कर लिया है। इससे भारत और अमरीका के बीच बढ़ते व्यापार संबंधों का पता चलता है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में भारत और अमरीका के बीच 87.95 अरब डालर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। भारत ने अमरीका को 52.4 अरब डालर के निर्यात किए जबकि 35.54 अरब डालर के आयात किए। इस दौरान भारत का चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार 87.07 अरब डालर रहा। इसी तरह 2019-20 में अप्रैल से दिसंबर के दौरान भारत का अमरीका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 68.00 अरब डालर रहा। इस दौरान भारत और चीन का द्विपक्षीय व्यापार 64.96 अरब डालर रहा। निःसंदेह भारत से अमरीका को निर्यात बढ़ने की संभावना इसलिए है, क्योंकि अमरीका उन चुनिंदा देशों में से है, जिसके साथ व्यापार संतुलन का झुकाव भारत के पक्ष में है। वर्ष 2018-19 में भारत का चीन के साथ जहां 53.56 अरब डॉलर का व्यापार घाटा रहा था, वहीं अमरीका के साथ भारत 16.85 अरब डालर के व्यापार लाभ की स्थिति में था। अब 24 और 25 फरवरी को ट्रंप के भारत दौरे के बाद जो आर्थिक संबंधों की नई संभावना उभरी है उससे आने वाले समय में भी भारत और अमरीका के बीच आर्थिक संबंधों की मजबूती दिखाई देगी।

निःसंदेह कोरोना वायरस इस समय भारत के लिए निर्यात बढ़ाने का मौका बन सकता है। चीन की अर्थव्यवस्था की मुश्किलों और निर्यात में भारी कमी के कारण भारत की तीन नई संभावनाएं उभर रही हैं। एक, देश के छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन तथा अमरीका सहित उन देशों को निर्यात बढ़ा सकते हैं, जहां चीन का निर्यात बहुतायत में बना हुआ है। दो, चीन की जगह भारत वैश्विक निवेश का नया वैश्विक केंद्र बन सकता है। तीन, चीन की जगह भारत दुनिया का नया मेन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है।

निश्चित रूप से यदि भारत रणनीतिपूर्वक उत्पादन बढ़ाता है तो इससे भारत निर्यात बाजार में कई वस्तुओं के निर्यातों के लिए चीन की जगह लेते हुए भी दिखाई दे सकेगा। उद्योग मंडल एसोचैम के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में भी कहा गया है कि निर्यात बाजार में चीन के खाली स्थान की जगह भारत ले सकता है। निःसंदेह वर्तमान दौर में भारत से निर्यात बढ़ाने के लिए निर्यात की नई मदों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। हाल ही में देश के प्रमुख उद्योग संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ ‘सीआईआई’ के द्वारा प्रकाशित किए गए शोध पत्र ‘इंडियन एक्सपोर्ट द नेक्स्ट ट्रैजेक्टरी मैपिंग प्रोडक्ट्स ऐंड डेस्टिनेशंस’ में ऐसी 37 प्रमुख वस्तुओं को चिन्हित किया गया है, जिनमें भारत से निर्यात बढ़ाने की क्षमता बहुत अधिक है।

शोध पत्र में कहा गया है कि इन मदों पर नए सिरे से फोकस करके भारत अपने घटते हुए निर्यात को बढ़ा सकेगा व साथ ही वैश्विक निर्यात स्थिति का सुधार कर सकेगा। उल्लेखनीय है कि कुल वैश्विक आयात में भारत के निर्यात की हिस्सेदारी केवल 17,958 अरब डालर है, अर्थात 1.65 प्रतिशत है। देश से निर्यात बढ़ाने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। देश में निर्यातकों को सस्ती दरों पर और समय पर कर्ज दिलाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी। चूंकि पिछले कुछ सालों में निर्यात कर्ज का हिस्सा कम हुआ है, ऐसे में किफायती दरों पर कर्ज सुनिश्चित किया जाना जरूरी है।

सरकार के द्वारा अन्य देशों की गैर शुल्कीय बाधाएं, मुद्रा का उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे निर्यात को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों से निपटने की रणनीतिक जरूरी है। हम आशा करें कि सरकार 12 मार्च को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के साथ देश के औद्योगिक एवं निर्यातक संगठनों के साथ कोरोना प्रकोप से देश के उद्योग कारोबार को बचाने और चीन से खाली हुए निर्यात बाजार में अपने कदम बढ़ाने के लिए जो विचार मंथन हुआ है, उसके आधार पर नई रणनीति को अंतिम रूप देगी। हम आशा करें कि देश से निर्यात करने वाली इकाइयों के लिए देश में ही कच्चे माल के निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। 

जिस तरह दवा उद्योग के कच्चे माल की चीन पर निर्भरता खत्म करने के लिए सरकार ने मार्च 2020 की शुरुआत में ही दो हजार करोड़ रुपए खर्च करने की जिस तरह की योजना बनाई है, वैसी ही योजना देश में कच्चे माल के उत्पादन के लिए बनाई जाएगी। साथ ही अब ढांचागत सुविधाओं पर भी ध्यान दिया जाएगा। निर्यात क्षेत्र में वैश्विक मानकों को अपनाया जाएगा। निर्यात मंजूरी संबंधी कामों को डिजिटल किया जाएगा। वैश्विक बंदरगाहों पर जिस तरह जहाज आधे दिन और ट्रक आधे घंटे में हट जाते हैं वैसा ही लक्ष्य हमें भारतीय बंदरगाहों के लिए भी सुनिश्चित करना होगा। इससे निर्यात प्रतिस्पर्धा में बड़ा सुधार आएगा। इससे निर्यात बाजार में तेजी से आगे बढ़ने और कोरोना प्रकोप की चुनौतियों के बीच भी इसी वर्ष 2020 तक वैश्विक निर्यात में भारत का हिस्सा दो फीसदी तक पहुंचाने के लिए निर्यात की नई संभावनाओं को साकार किया जा सकेगा।


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