कोरोना वायरस से डरे नहीं

By: Mar 21st, 2020 12:18 am

लाक्षणिक चिकित्सा पर आधारित होम्योपैथी कोरोना वायरस से अक्रांत मरीजों की चिकित्सा में सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती है तथा रोग प्रारंभ होने से पूर्व भी कुछ औषधियों के प्रयोग से इस रोग से बचा जा  सकता है…

सारी दुनिया इस समय अब तक 70 से ज्यादा देशों में 90 हजार से ज्यादा लोगों को आक्रांत कर 3500 से ज्यादा लोगों की जान ले चुके कोरोना वायरस के संक्रमण से डरी हुई है। क्योंकि एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में टीकाकरण के अतिरिक्त वायरस प्रभावित रोगों की कोई कारगर चिकित्सा उपलब्ध नहीं है। कोरोना वायरस का अभी तक कोई टीका भी नहीं बना है। इसलिए बचाव, कंजरवेटिव ट्रीटमेंट एवं रोगियों के आइसोलेशन पर आश्रित हैं।

लक्षण- सर्दी-जुकाम, बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द के साथ प्रारंभ होने वाला यह रोग जल्द ही गले को प्रभावित करते हुए फेफड़ों तक पहुंच जाता है और वहां एक्यूट ब्रांकाइटिस एवं आखिर में संक्रामक निमोनिया के रूप में आक्रांत कर अत्यंत कठिन रूप धारण कर लेता है। इस रोग में सिर दर्द, खांसी, बुखार एवं श्वसन में परेशानी 15-20 दिन तक बनी रह सकती है, दवाएं काम नहीं करती हैं।

प्रसार- कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के खांसी और छींक के माध्यम से ड्रॉपलेट के रूप में बाहर आते हैं और सीधे अन्य व्यक्ति द्वारा इन्हेल कर लिए जाते हैं अथवा हाथों को संक्रमित कर अन्य तक पहुंच जाते हैं। 

बचाव- किसी भी रोग से बचने का पहला उपाय है भय मुक्त रहा जाए। भय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है और रोग तेजी से फैलाता है। सर्दी से बचने का उपाय किया जाए। साफ  सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए, अपने हाथ, शरीर, घर और आसपास की। सार्वजनिक स्थानों पर रहने वालों को अपने हाथ दिन में कई बार साबुन अथवा किसी अल्कोहलिक डिसइनफेक्टेंट से साफ करते रहना चाहिए। जहां रोग फैला हो अथवा फैलने की संभावना हो, उन सार्वजनिक स्थलों पर मास्क लगाया जाए और छींकते, खांसते समय मुंह पर कपड़ा रखा जाए। ज्ञात संक्रमित मरीजों को आइसोलेट किया जाए। व्यायाम, योगासन, प्राणायाम द्वारा शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाया जाए। अच्छी तरह धुली हुई हरी सब्जियों का प्रयोग किया जाए । मांसाहार का सेवन एकदम न करें ।

आक्रांत स्थानों पर सर्दी, जुकाम सिर दर्द, बदन दर्द गले में खराश के लक्षण दिखते ही तुरंत डाक्टर से अवश्य परमार्श करें। आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति में इस वायरस के रोकथाम और इलाज की कारगर औषधियां उपलब्ध हैं। जहां आयुर्वेद में गिलोय, तुलसी, अणूस, काली मिर्च, हल्दी, मुलहठी इत्यादि से बनी हुई दवाएं एवं काढ़ा श्वसन तंत्र को मजबूत करने एवं रोग मुक्त करने वाली औषधियां हैं। वहीं होम्योपैथी में उपरोक्त आयुर्वेदिक औषधियों की मदर टिंक्चर क्रमशः टीनेस्पोरा कार्डिफोलिया, आसिमम सैंक्टम, जस्टिसिया अधाटोडा, पाइपर नाइग्रा, सोलेनम जैन्थोस्पर्मम एवं कुरकुमा लौंग इत्यादि के नाम से उपलब्ध हैं। आवश्यकता पड़ने पर इनका उपयोग उतना ही कारगर साबित होगा ।

-डा.एम डी सिंह, महाराज गंज, गाजीपुर (यूपी)


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