पर्यावरण की समस्या

By: Mar 28th, 2020 12:19 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

एक समय था, जब सारी दुनिया में, जब लोगों के पास कोई काम नहीं होता था तब वे मौसम की चर्चा किया करते थे। लेकिन आजकल कोई मौसम की चर्चा नहीं करता। आप चाहे जहां जाएं, आप की दादी, नानी से ले कर आप के नाती-पोतों तक, हर कोई केवल अर्थव्यवस्था के बारे में बात करता है। सभी की बातचीत में, अर्थव्यवस्था ही मुख्य मुद्दा बन गया है। अर्थव्यवस्था हमारे जीवन जीने की प्रक्रिया का एक अधिक पेचीदा रूप है। साधारण रूप से जीवन जीने का मतलब है बस खाना, सोना, बच्चे पैदा करना और एक दिन मर जाना। इसे अब बहुत ज्यादा जटिल बना दिया गया है। मैं इसके खिलाफ  नहीं हूं पर लोग सोचते हैं कि अर्थव्यवस्था आज की चिंता है और पर्यावरण भविष्य का मुद्दा है। ये विचार बदलना जरूरी है। पर्यावरण आज की समस्या है और आज की ही चिंता का विषय भी। अगर आज हमारा जीवन अद्भुत है, तो इसलिए नहीं कि शेयर बाजार में उथल-पुथल हो रही है या फिर किसी विशेष देश या समाज में विकास दर का प्रतिशत अच्छा है। हमारा जीवन अच्छा इसलिए है कि हम पोषक खाना खा रहे हैं, स्वच्छ जल पी रहे हैं और शुद्ध हवा में सांस ले रहे हैं। ये पूरी तरह से भुला दिया गया है। आज जो भोजन हम खा रहे हैं वह रसायनों से भरा हुआ है। जो पानी हम पी रहे हैं वह जहर से भरा है और हवा तो जहरीली है ही। मुझे लगता है कि तकनीक की सहायता से हम अगले 10 से 15 वर्षों में हवा का शुद्धिकरण कर लेंगे। इस दिशा में एक बड़ा आंदोलन चल रहा है। लेकिन मिट्टी और पानी, ये बड़ी समस्याएं हैं। मिट्टी में ही जीवन पनपता है। मैं और आप कुछ और नहीं, बस थोड़ी सी मिट्टी हैं। जो मिट्टी थी वह भोजन बन गया, जो भोजन था वह मांस और रक्त बन गया। अगर ये बात हमें आज समझ नहीं आती तो उस दिन समझ में आ ही जाएगी जब हम दफना दिए जाएंगे। अधिकतर लोगों को ये बहुत देर से समझ आता है, लेकिन हर किसी को कभी न कभी तो आ ही जाता है। दुर्भाग्यवश, मिट्टी एक ऐसी चीज है जिसे अधिकतर लोग पर्यावरण की दृष्टि से नजरअंदाज कर देते हैं। हमने अपनी धरती की उपजाऊ मिट्टी को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है। बर्फ  का पिघलना शायद जल्दी नजर आ जाता हो, पर हमने मिट्टी को जो नुकसान पहुंचाया है वह ज्यादा खतरनाक है। पोषक तत्त्वों में गिरावट- जो सब्जियां और फसलें हम अपने देश में उगा रहे हैं, उनके पोषक तत्त्वों में, पिछले 25 वर्षों में, लगभग 30 प्रतिशत गिरावट आई है। यही कारण है कि लोग चाहे जो खाएं, वो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो रहे हैं। शाकाहारी भोज्य पदार्थ जिस ढंग से उगाए जा रहे हैं, उससे उनके पोषक तत्त्वों का नाश हो गया है। वे पौधों में कुछ ऐसा डाल रहे हैं जो सिर्फ  भोजन जैसा दिखता है, पर वह भोजन नहीं है। वे आप को बस कचरा बेच रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि मिट्टी की गुणवत्ता नाटकीय ढंग से बहुत नीचे आ गई है। आप अपनी मिट्टी को बस रासायनिक खादों और ट्रैक्टर से समृद्ध नहीं रख सकते। आप को जमीन पर पशुओं की आवश्यकता होती है। प्राचीन समय से, जब से हम फसलें उगा रहे हैं, हम सिर्फ  फसल ही काटते थे। बाकी का वनस्पति और पशुओं का कचरा जमीन में जाता था। आज हम सब कुछ बाहर खींच रहे हैं और जमीन में कुछ भी जाने नहीं दे रहे। हमें लगता है कि थोड़ी बहुत रासायनिक खाद डालने से काम हो जाएगा। यही कारण है कि भोजन और उनके पोषक तत्त्वों की गुणवत्ता जबरदस्त रूप से नीचे आ रही है। हमारी भोजन उगाने की योग्यता ही समाप्त हो रही है, क्योंकि हम अपनी उपजाऊ जमीन को रेगिस्तान बनाए जा रहे हैं। अगर हम अगले 5 से 10 साल तक सही कदम उठाएं, तो फिर अगले 25 से 30 सालों में हम जमीन को ठीकठाक ढंग से बदल कर उपजाऊ बना पाएंगे।


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