मूलभूत सुविधाएं जुटाने वाला हो बजट

By: Mar 4th, 2020 12:06 am

सुखदेव सिंह

लेखक, नूरपुर से हैं

युवा किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी समान होते हैं जिन्हें समाज और राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभानी होती है। अफसोस इस बात का कि आज पहाड़ के बेरोजगार युवा नशा तस्करी करने में अपना भविष्य तलाशने के लिए आखिर क्यों मजबूर हुए जा रहे हैं। जरूरत आज ऐसे युवाओं को सरकारी, गैर-सरकारी और लघु उद्योगों से जोड़कर उन्हें आजीविका कमाने के लिए प्रेरित करने की है…

प्रकृति पर सारा दोष मढ़कर अपनी नाकामियों को छुपाकर आखिर कब तक हम बजट की बर्बादी करते रहेंगे। जयराम ठाकुर की सरकार को इस पर अब गौर करना चाहिए। उस बजट को खर्च करने का क्या लाभ जिसका जनता को कोई लाभ ही नहीं मिल पा रहा हो। बढ़ती जनसंख्या की वजह से यह संभव नहीं हो सकता कि अब हर युवा को सरकारें रोजगार मुहैया करवा पाएं। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य जनता को सही मिल पाएं, सरकारों को बजट अत्यधिक इन्हीं पर खर्च किए जाने पर फोकस करना चाहिए। हिमाचल प्रदेश की पवित्र भूमि आज नशा माफिया के चंगुल में है। युवा किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी समान होते हैं जिन्हें समाज और राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभानी होती है। अफसोस इस बात का कि आज पहाड़ के बेरोजगार युवा नशा तस्करी करने में अपना भविष्य तलाशने के लिए आखिर क्यों मजबूर हुए जा रहे हैं। जरूरत आज ऐसे युवाओं को सरकारी, गैर-सरकारी और लघु उद्योगों से जोड़कर उन्हें आजीविका कमाने के लिए प्रेरित करने की है। प्रदेश में बढ़ती आपराधिक घटनाओं की रोकथाम के लिए पुलिस के पास पर्याप्त स्टाफ  और अन्य आधुनिक तकनीक की मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। सुविधा विहीन पुलिस कभी भी जनता के जान-माल की रक्षा सही तरह से नहीं कर सकती है। सभी को सुरक्षा मिले, इसलिए जरूरी है की सरकार पुलिस को मूलभूत सुविधाएं जुटाने में बजट का प्रावधान अवश्य करे। अपनी गुणवत्ता में सुधार किए जाने की बजाय हर साल सड़कें बारिश के पानी में बहकर चली जाती हैं और हम लोग प्रकृति पर ही इसका दोषारोपण करके पाप के भागीदार बनते जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने की वजह से अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशेष पहचान बना चुका है। सरकार बेशक सड़कों का विस्तारीकरण किए जाने को लेकर काम कर रही, मगर अभी तक भी पूर्णतया सफल नहीं हो पाई है। जंगलों को काटकर सड़कों का निर्माण करके भू-स्खलन की घटनाओं को न्योता दिए जा रहे हैं। ऐसी सड़कों में पक्के ढंगे, पुलियां और पानी की सही निकासी किए जाने पर बजट खर्च करके जनता को सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिए। विद्युत विभाग को कम्प्यूटरकृत बनाए जाने के दावे पिछले दो सालों से सरकार की ओर से किए जा रहे हैं। सच्चाई तो यह कि बिजली कार्यालयों में बिल जमा करवाने आने वाले लोगों के लिए बैंच, पंखें और पानी की व्यवस्था तक नहीं होती है। घंटों लोग लंबी कतारों में खड़ा होकर अपनी बारी का इंतजार करने के लिए मजबूर होकर रह जाते हैं। विद्युत विभाग में स्टाफ  की भारी कमी चल रही जिसके चलते जनता को समय पर सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। बिजली मीटरों की रीडिंग नोट करके सही बिल जनता को कौन थमाए सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। हिमाचल प्रदेश में बनने वाली बिजली दिल्ली सरकार की ओर से मुफ्त लोगों को उपलब्ध करवाई जा रही और यहां की जनता को इस तरह अतिरिक्त बिजली बिलों के नाम पर लूटा जा रहा है।

दिल्ली में विधानसभा चुनावों के समय हिमाचल प्रदेश में भी सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को सस्ता किए जाने की मांग उठी थी। मगर जयराम ठाकुर की सरकार ने जनता की इन मांगों पर गौर करने की बजाय शराब सस्ती करके लोगों को इस फैसले का विरोध करने के लिए मजबूर कर दिया था। प्रदेश सरकार अपने बजट सत्र में जनता की इन मांगों पर अपनी मुहर लगाकर बजट का प्रावधान कर दे तो विरोध की चिंगारी थम जाएगी। जल के स्रोत जितने बड़े ठीक उतनी ही अत्यधिक समस्याएं अब गांवों में पानी की पनपती जा रही हैं। सरकारों का करोड़ों रुपए का बजट मानों जमीन के अंदर दफन होकर रह गया जिसका जनता को कोई लाभ नहीं पहुंच रहा है। जल शक्ति विभाग में स्टाफ  की भारी कमी की वजह से नलकूप, वाटर सप्लाइयों में पर्याप्त स्टाफ  न होने की वजह से लोगों को पीने और फसलों को सिंचित किए जाने के लिए पानी समय पर नहीं मिल पा रहा है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि नलकूप तो बनकर तैयार हैं मगर उन्हें  चलाने के लिए पंप आपरेटर कहां से लाए जाएं। सरकार अभी तक यह सही फैसला नहीं ले पा रही कि स्टाफ  अब आउट सोर्सेज पर रखा जाए या फिर विभाग की ओर से सीधी भर्ती की जाए। सरकार को नए नलकूप और हैंडपंप लगाए जाने की बजाय पहले से शोपीस बन चुके जल स्रोतों पर बजट खर्च करने को पहल देनी होगी। गलत खान-पान और रहन-सहन सही न होने की वजह से अधिकांश लोग बीमार बनकर अस्पतालों की लंबी कतारों में खड़े देखने को मिलते हैं। अस्पतालों को अपग्रेड करके तालियां तो बटोरी जा रही हैं, मगर वहां स्टाफ  तैनात न करके और अन्य असुविधाओं की वजह से लोगों को निजी अस्पतालों की खाक छाननी पड़ रही है। सरकारी अस्पतालों की दयनीय हालत शायद किसी से छुपी नहीं थी। स्वास्थ्य मंत्री पूर्व विपिन परमार की ओर से सख्ती दिखाए जाने पर कुछेक अस्पतालों का कामकाज रूटीन में  चल पड़ा था। मगर अब उनके विधानसभा अध्यक्ष मनोनीत किए जाने पर अस्पताल फिलहाल राम भरोसे ही रह गए हैं। कर्जा उस दीमक की तरह होता है अगर पेड़ को भी लग जाए तो उसे भी चाट जाती है। कर्जदारी के बोझ तले दबी प्रदेश सरकार को अब बजट भी सोच समझकर ही खर्च करना होगा जिससे उसकी बर्बादी पर रोकथाम लग सके। जनता की छोटी सी समस्याएं भी अगर मुख्यमंत्री कार्यालय के माध्यम से निपटाई जाएं तो ऐसे में विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर भी कई सवाल उठते हैं। जयराम ठाकुर की सरकार को जनता को मूलभूत सुविधाएं मिलें उस पर ही ज्यादा बजट खर्च किए जाने का प्रावधान करना चाहिए।


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