सेना में प्राइवेट कांट्रैक्टर

By: Mar 14th, 2020 12:05 am

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

होली का त्योहार सदियों की विदाई के रूप में जाना जाता है, पर इस बार हिमाचल में होली तो हो गई पर ठंड जाने का नाम नहीं ले रही है। जहां हिमाचल में मौसम सर्द हो रहा है वहीं देश में दिल्ली हिंसा, कोरोना वायरस, शेयर मार्केट का फिसलना, यस बैंक का कंगाल होना आदि मुसीबतों से गर्मी बढ़ रही है। इसी बीच भारत की सबसे पुरानी पार्टी के एक युवा दिग्गज नेता का जनसेवा के लिए पाला बदलने से एक प्रदेश सरकार जिसकी विदाई लगभग लाजमी है पर फिर भी प्रदेश के दो प्रोड़ स्तंभ हिमाचली सर्दी की तरह टिके रहने का दम भर रहे हैं। इन सब मुद्दों की चर्चाओं में जब आम भारतीय व्यस्त है उसी दौरान पिछले सप्ताह सरकार में भारतीय सेना की बेस वर्कशॉप में रिपेयर को चलाने का जिम्मा प्राइवेट कांट्रैक्टर को देने का प्रोपोजल लाया गया। प्रोपोजल के अनुसार आर्मी बेस वर्कशॉप जो सेना के हर तरह के इक्विपमेंट, गन, व्हीकल, टैंक, हेलिकाप्टर को रिपेयर एवं ओवराल करते हैं उसका जिम्मा प्राइवेट काॅंन्ट्रैक्टर को दिया जाए। भारतीय सेना में आठ बेस वर्कशॉप हैं, जिनको द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्थापित किया गया था। इनका काम सेना के इक्विपमेंट एवं शस्त्रों को लड़ाई में इस्तेमाल के लिए हर वक्त तैयार रखना है। इन वर्कशॉप की काबिलीयत को कम खर्चे में बढ़ाने के लिए लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) डीबी शेकातकर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी द्वारा प्रस्तावित गोको मॉडल यानी गवर्नमेंट ओनड कांट्रैक्टर ऑपरेटेड मॉडल उसमें बेस वर्कशॉप सेना के ही अधीन रहेगी और कांट्रैक्टर उसके इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं मैन पावर का इस्तेमाल करते हुए, हर दिन की रिपेयर और ओवरहाल के टारगेट को  पूरा करने एवं स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध करवाने के लिए जिम्मेदार होगा। पर कांट्रैक्टर चाहता है कि अच्छे परिणाम के लिए दूसरे देशों की तर्ज पर मैन पावर एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर उसके ढंग से नया तैयार किया जाए। इससे पहले अमरीकन आर्मी में इसी तरह के मॉडल को अपनाया गया है। कमेटी चाहती है कि भारतीय सेना में भी उसी तरह से इसको सेटअप किया जाए। पर सरकार को यह निर्णय लेने से पहले जानना चाहिए कि  अमरीकन सेना की तर्ज पर वर्कशॉप को सेटअप करने के लिए भारत के पास इतना बजट नहीं है और मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं मैन पावर को कांटै्रक्टर द्वारा इस्तेमाल से इगो क्लैश व अन्य कई वजहों से समन्वय बैठाना मुश्किल होगा। इसलिए इसको प्राइवेट कान्ट्रैक्टर को देने से कुछ अच्छे परिणाम आने की उम्मीद बहुत कम है।


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