स्वास्थ्य पर फोकस बेहद तुच्छ

By: Mar 25th, 2020 12:05 am

कुछ तथ्य और हकीकतें गौरतलब हैं। संभव है कि यह यथार्थ आपने भी किसी स्तर पर महसूस किया होगा! ये तथ्य हमारे देश की अभी तक की प्रगति की व्याख्या भी करते हैं। एक अंतहीन बहस जारी रही है कि जीडीपी का एक निश्चित हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाए, लेकिन हम अभी तक 2 फीसदी तक भी नहीं पहुंच पाए हैं। अब भी हम सार्वजनिक खर्च का मात्र 1.28 फीसदी ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च कर पाते हैं। हालांकि 2025 तक यह औसत 2.5 फीसदी तक ले जाने का मोदी सरकार का लक्ष्य है। यदि 2009-10 में यूपीए सरकार के आंकड़े देखें, तो मात्र 621 रुपए प्रति व्यक्ति ही स्वास्थ्य पर खर्च किए जाते थे। हालांकि 2017-18 तक प्रति व्यक्ति खर्च 1657 रुपए किया गया, लेकिन यह भी ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ समान है। अमरीका की तुलना में हम बेहद बौने हैं, क्योंकि उस देश में जीडीपी का 18 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है। इतना विकसित स्वास्थ्य क्षेत्र होने के बावजूद अमरीका में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 550 पार कर चुकी है। चूंकि भारत में भी कोरोना वायरस का आतंक और फैलाव विकराल होता जा रहा है, लिहाजा हमारी तैयारियों की एक तस्वीर देखना बेहद जरूरी है। भारत में करीब 6 लाख डाक्टर कम हैं और करीब 20 लाख नर्स, मेडिकल स्टाफ आदि की भी जरूरत है। औसतन 11,600 लोगों पर एक ही डाक्टर है, करीब 10,000 लोगों पर 16 नर्स हैं। औसतन 84,000 लोगों पर एक आइसोलेशन (अलगाव) बेड है और 1826 लोगों पर एक अस्पताल बेड है। कोरोना के अभी तक के प्रसार के दौरान 15-16 हजार टेस्ट ही किए जा सके हैं, जबकि आईसीएमआर का दावा है कि 10,000 टेस्ट रोजाना करने की हमारी क्षमता है। तो अभी तक टेस्ट को प्राथमिकता क्यों नहीं दी जाती रही, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का बुनियादी मंत्र एक ही है-टेस्ट, टेस्ट और टेस्ट! अभी तक करीब 1700 लोगों को ही क्वारेंटीन में रखा जा सका है। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का दावा है कि एजेंसियों की निगरानी में करीब 1.87 लाख लोग हैं, जिनमें कोरोना संदिग्ध है। बहरहाल विशेषज्ञों का आशंकित आकलन है कि भारत में कोरोना संक्रमित लोगों का आंकड़ा अप्रत्याशित हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की भारत के संदर्भ में टिप्पणी है कि वहां लॉकडाउन पर्याप्त नहीं है। कोरोना के विस्तार को रोकना जरूरी है, लिहाजा क्वारेंटीन और सामाजिक दूरी भी अनिवार्य है, लेकिन भारत में अफवाहों का बाजार भी गरम है। हालांकि अब देश के कुल 640 में से 548 जिले लॉकडाउन अथवा कर्फ्यू की स्थिति तले हैं। करीब 100 करोड़ आबादी को उनके घरों तक सीमित करके रखना एक महत्त्वपूर्ण कोशिश है। फिर भी कोरोना का संक्रमण 517 लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और 11 की मौत भी हुई है। बेशक चीन, इटली, ईरान, स्पेन और अमरीका की तुलना में हम अपेक्षाकृत सुरक्षित लग रहे हैं। हम खुशकिस्मत हैं कि हमारे सामने इन देशों की त्रासदियों और उपायों के विभिन्न उदाहरण हैं, हम सबक सीख सकते हैं और कोरोना वायरस हमारे देश में देरी से आया, लिहाजा युद्ध स्तर पर काम करके और सावधानियां बरत कर हम कोरोना की चुनौतियों को झेल सकते हैं, लेकिन इसके फलितार्थ बेहद व्यापक  और तकलीफदेह होंगे, यह तय है। भारत 210 लाख करोड़ रुपए से अधिक की अर्थव्यवस्था है। यदि इसका एक निश्चित हिस्सा गरीबों, दिहाड़ीदारों, मजदूरों के बैंक खातों में डाल दिया जाए, तो भारत सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन किसी के घर का चूल्हा नहीं बुझेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठकों के दौर हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी बार राष्ट्र को संबोधित किया है। बेशक दौर और सरोकार चिंतित करने वाला है। प्रधानमंत्री संबोधन का विश्लेषण कल करेंगे।


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