हिंदू नववर्ष का आगाज है गुड़ी पड़वा
भारत में छोटे बड़े ऐसे कई त्योहार हैं, जिनके साथ लोगों की सच्ची आस्था और अटूट विश्वास जुड़ा हुआ है। इन त्योहारों पर अलग-अलग देवी-देवताओं को पूजा जाता है। भारत के इन्हीं त्योहारों में शामिल है गुड़ी पड़वा। इस पर्व को हिंदू धर्म के नए वर्ष के आगाज के रूप में मनाया जाता है। खासतौर से महाराष्ट्र के लोगों में गुड़ी पड़वा उत्सव की अलग ही धूम देखने को मिलती है। वहीं दक्षिण भारत में ये दिन फसल उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। पूरे भारत में अलग-अलग नामों से इस त्योहार को मनाने के साथ ही अनुष्ठान भी कराया जाता है। गुड़ी पड़वा का पर्व हर वर्ष चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। सभी महीनों में चैत्र को बहुत पावन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। इसे लोग हिंदू समाज के नववर्ष के रूप में मनाते हैं। इस बार ये पर्व 25 मार्च को मनाया जाएगा। कहा जाता है कि इस दिन भगवन राम अयोध्या वापस लौटे थे और उनका राज्याभिषेक हुआ था। महाभारत काल में इसी शुभ दिन पर युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ था। ये भी माना जाता है कि इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी।
ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था और जीवन की शुरुआत की थी। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, तो आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ये दिन उगादि के रूप में मनाया जाता है। वहीं उत्तर भारत में इस शुभ दिन से चैत्र नवरात्र की शुरुआत होती है। इसलिए इस पर्व का उल्लास पूरे देश में अलग-अलग रूपों में देखने को मिलता है, जो दुर्गा पूजा के साथ रामनवमी के दिन समाप्त होता है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली, बंदनवार आदि से घर के आंगन व द्वार को सजाते हैं। घर के आगे एक गुड़ी यानी झंडा रखा जाता है। इसी में एक बरतन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर, उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर, उसे रखा जाता है। इसके साथ ही पारंपरिक वस्त्र भी पहने जाते हैं। सूर्यदेव की आराधना की जाती है। इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्तोत्र, देवी भगवती के मंत्रों का जाप भी किया जाता है।
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