अहंकार का त्याग

By: Apr 11th, 2020 12:05 am

ओशो

यह असंभव है। अहंकार का त्याग नहीं किया जा सकता क्योंकि अहंकार का कोई अस्तित्व नहीं है। अहंकार केवल एक विचार है, उसमें कोई सार नहीं है। यह कुछ नहीं है। सिर्फ  शुद्ध कुछ भी नहीं है। तुम इस पर भरोसा करके इसे वास्तविकता दे देते हो। तुम भरोसा छोड़ सकते हो और वास्तविकता गायब हो जाती है, लुप्त हो जाती है। अहंकार एक तरह का अभाव है। अहंकार इसलिए है क्योंकि तुम स्वयं को नहीं जानते। जिस क्षण तुम स्वयं को जान लेते हो, कोई अहंकार नहीं पाओगे। अहंकार अंधकार के समान है, अंधकार का अपना कोई सकारात्मक अस्तित्व नहीं होता, यह बस प्रकाश का अभाव है। तुम अंधकार से लड़ नहीं सकते या लड़ सकते हो। तुम अंधकार को कमरे के बाहर नहीं फेंक सकते, तुम उसे बाहर नहीं निकाल सकते, तुम उसे भीतर नहीं ला सकते। तुम अंधकार के साथ सीधे-सीधे कुछ नहीं कर सकते, इसके लिए तुम्हें प्रकाश के साथ कुछ करना होगा। यदि तुम प्रकाश करो तब अंधेरा दूर हो जाएगा, यदि तुम प्रकाश बुझा दो, तब अंधेरा हो जाएगा। अंधकार प्रकाश का अभाव है, अहंकार भी ऐसा ही है ,आत्म ज्ञान का अभाव। तुम उसका त्याग नहीं कर सकते। तुम्हें बार-बार ये कहा गया है अपने अहंकार को मारो और यह वाक्य साफ  तौर पर बेतुका है, क्योंकि जिस चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं उसका त्याग भी नहीं किया जा सकता। यदि तुम उसका त्याग करने की कोशिश भी करोगे, जो उपस्थित ही नहीं है, तो तुम एक नया अहंकार पैदा कर लोगे। विनम्र होने का अहंकार, निरहंकार होने का अहंकार, उस व्यक्ति का अहंकार जो सोचता है कि उसने अपने अहंकार को त्याग दिया। यह फिर से एक नए प्रकार का अंधकार होगा। नहीं, मैं तुमसे अहंकार का त्याग करने के लिए नहीं कहता। इसके उलट मैं कहूंगा कि यह देखने की कोशिश करो कि अहंकार है कहां। इसकी गहराई में देखो, इसे पकड़ने की कोशिश करो कि आखिर यह है कहां, यह वास्तविकता में है भी या नहीं। किसी भी चीज का त्याग करने से पहले उसकी उपस्थिति को पक्का कर लेना चाहिए। पर आरंभ से ही इसके विरोध में न चले जाओ। यदि इसका विरोध करते हो, तो तुम इसको गहराई से नहीं देख सकोगे। किसी भी बात के विरोध में जाने की आवश्यकता नहीं है। अहंकार तुम्हारा अनुभव है। स्पष्ट दिख सकता है पर है तो तुम्हारा अनुभव ही। अपनी प्रतिभा के बल पर आप कितने ही लोकप्रिय और मान्य क्यों न हों, पर अहंकार के रहते अशांत जरूर रहेंगे। अहंकार छोड़ने का एक आसान तरीका है मुस्कराना। अहंकार का त्याग करके मनुष्य ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है। अहंकार मानव का सबसे बड़ा दुश्मन है। अगर मानव को अहंकार नहीं होता तो वो कभी भी गलत रास्ते पर नहीं जाता और उसका पतन नहीं होता है। अहंकार किसी भी तरह का हो वो उसको खा जाता है, जीवन में जो लोग इसका त्याग कर देते हैं वही लोग आगे चलकर एक महान व्यक्ति बन पाते है। रावण के पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी, वह बहुत बड़ा पंडित भी था, लेकिन अहंकार ने उसका और पुरे लंका का विनाश कर दिया। अगर रावण अहंकार का त्याग कर राम से माफी भी मांग लेता तो शायद श्री राम जी उसको माफ कर देते और लंका का विनाश रुक जाता। कहने का तात्पर्य यह है कि अहंकार ही मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। जीवन के पथ में आगे बढ़ने के लिए अहंकार का त्याग जरूरी है।


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