आयुर्वेद में महामारी का अवधारणा

By: Apr 9th, 2020 12:02 am

आयुर्वेद यानि जीवन का विज्ञान मानव सभ्यता का प्राचीनतम चिकित्सा सिद्धांत है। इसमें बताए गए कुछ मूलभूत सिद्धांत आज के चिकित्सा विज्ञान में भी ज्यों के त्यों हैं। आयुर्वेद में जनपदोध्वंस का वर्णन है, जिसे सीधे महामारी से जोड़ा जा सकता है। सुखद तथ्य यह है कि आयुर्वेद में महामारी से पार पाने के तरीके भी बताए गए हैं। इनके अंतर्गत कारणों पर नियंत्रण पाया जाता है। जैसे वायु, पानी, स्थान और ऋतु का शुद्धिकरण। उदाहरणार्य, वायु को नीम के सूखे पत्तों, तुलसी, हरिद्र, वाचा और गुग्गुल आदि के धुएं से शुद्ध किया जा सकता है। तपेदिक जैसी बीमारी से पीडि़त रोगी को वाचा के धुएं से आराम पहुंचाया जाता था। इसी प्रकार वर्षा ऋतु में कीटों और फंगस पर नियंत्रण पाने के लिए घर में गुग्गुल और नीम के पत्तों पर घी डालकर उन्हें सुलगाया जाता है, जिनसे उत्पन्न धुआं राहत दिलाता है। यही नहीं चंदन, लौंग, इला और कपूर के धुएं से मंदिरों से ूमहक हटाई जाती थी। इसका मस्तिष्क पर भी अच्छा प्रभाव होता था, जिससे मानसिक और आत्मिक बल में नियंत्रण बनता था। इसके अतिरिक्त नीम, शर्शपा और सफेदे की पत्तियां कपड़ों और पलंगों को कीड़ों से बचती थीं। क्रमशः


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