उपनिषदों की व्याख्या

By: Apr 11th, 2020 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

उसका भाव यही था कि वेदांत दर्शन पवित्र नीतियों की सुदृढ़ आधारभूमि है और जीवन तथा मृत्यु के दुःख समूह के लिए परम सांत्वना का स्थल है। हे भारतवासी इसे कभी नहीं भूलना। प्राध्यापक डॉयसन की जिज्ञासा पर स्वामी जी ने उपनिषदों के कुछ गूढ़ मंत्रों की व्याख्या बताई। उसी रोज डॉयसन की लड़की का जन्म दिन था। इसलिए उन्होंने दोपहर का भोजन स्वामी जी से वहीं करने का आग्रह किया। डॉयसन और उनकी पत्नी अपनी भारत यात्रा के संस्मरण सुनने लगे। दोनों में कुछ ही घंटों में गहरी मित्रता हो गई। इसी प्रकार वार्तालाप चलता रहा। श्री डॉयसन कुछ देर के लिए उठकर बाहर गए। वहां पड़ी एक पुस्तक उठाकर इसी बीच स्वामी जी पढ़ने लगे। श्री डॉयसन तुरंत ही लौट आए,लेकिन पुस्तक पड़ने में स्वामी जी को पता ही न चला। कुछ देर बाद जब उन्होंने पुस्तक रखी,तो देखा कि श्री डॉयसन पीछे बैठे हुए उन्हीं की ओर देख रहे हैं। स्वामी जी ने उनसे इस बात की माफी मांगी कि पुस्तक पढ़ने की वजह से उन्हें उनके आने का पता भी न चला। श्री डॉयसन को उनके इस तरह किताब पढ़ने में थोड़ी शंका हुई,लेकिन उन्होंने कहा कुछ नहीं,मगर उनके चेहरे पर शंका के भाव उत्पन्न हो रहे थे। स्वामी जी ने बातचीत के दौरान ही इस पुस्तक के अंशों के उदाहरण देने शुरू कर दिए। श्री डॉयसन एकदम चौंकते हुए कहने लगे,जरूर आपने यह पुस्तक बड़े ध्यान के साथ पढ़ी होगी,नहीं तो चार सौ पेज की पुस्तक को कुछ मिनटों में पढ़ना और फिर उसका पाठ जैसे का तैसे याद कर लेना कठिन ही नहीं है,अपितु असंभव है। स्वामी जी विनम्रता के साथ बोले, इसमें असंभव कुछ भी नहीं है। मन संयम कर लेने पर कोई भी इस काम को कर सकता है। अखंड ब्रह्मचर्य के फलस्वरूप शतावधान की शक्ति प्राप्त हो जाती है। पश्चिम संभवतः इस पर विश्वास न करें,लेकिन भारत में कम होने पर भी इस शक्ति से संपन्न लोगों का अभाव नहीं है। हमेशा ही स्वामी जी अखंड ब्रह्मचर्य के पालन में अपने भाइयों और शिष्यों को प्रवत्त रखते थे। खुद भी पूरी तरह जागरूक होकर वे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते थे। उनका मानना था कि शरीर और मन की उच्चतम शक्तियों के विकास के लिए ब्रह्मचर्य विद्युत शक्ति का प्रवाह नस-नस में प्रवाहित होना चाहिए। एकांतवास, इंद्रिय संयम और मन की एकाग्रता इन तीनों के मिल जाने से गठित छात्र जीवन ही ब्रह्मचर्य का आदेश है। तरुण छात्रों को वे ब्रह्मचर्य के लाभों का ब्यौरा बताते हुए दृढ़तापूर्वक कहा करते थे अगर तुम मनोयोगपूर्वक ब्रह्मचर्य का व्रत कर पालन करो,तो तुम्हारी सोई शक्तियां जागृत हो जाएंगी और उन्नति का मार्ग खुल जाएगा। तुम शुद्ध बुद्धि से जिस कार्य को करना चाहोगे, उसके मार्ग की बाधाएं खुद दूर हो जाएंगी। धर्म कार्य के लिए किसी अन्य महान आदर्श से अनुप्राणित होकर अविवाहित जीवन बिताने वालों को स्वामी जी बड़े आदर से देखते थे। पर इसका यह मतलब नहीं कि गृहस्थ आश्रम को वे बुरी नजर से देखते थे। हां वे उनके विरोधी अवश्य थे कि जो लोग यह मानते थे कि प्राकृतिक ढंग का जीवन बिताना ही उचित है और शादी करना बहुत जरूरी है।                         


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