गरीबों तक पहुंचे कारपोरेट मदद

By: Apr 6th, 2020 12:06 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लॉकडाउन से देश के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और गरीबों की मुश्किलें सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। देश के करीब 45 करोड़ के वर्क फोर्स में से 90 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र से हैं। असंगठित क्षेत्र के लोगों को काम और वेतन की पूरी सुरक्षा नहीं होती है। इतना ही नहीं इन्हें अन्य सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती है…

यद्यपि 27 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वैश्विक महामारी कोरोना के कारण देशव्यापी लॉकडाउन से आर्थिक सामाजिक मुश्किलों का सामना कर रहे देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों को राहत देने के लिए एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए के सराहनीय आर्थिक पैकेज की घोषणा की है, लेकिन कोरोना के महाप्रकोप से निपटने के लिए बहुत बड़ी धनराशि और संसाधनों की जरूरत अनुभव की जा रही है।

ऐसे में सरकार ने कोरोना को प्राकृतिक आपदा घोषित करते हुए देश की कंपनियों को विकल्प दिया है कि वे कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व यानी सीएसआर का धन कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों और गरीबों के कल्याण पर खर्च कर सकती हैं। दरअसल सरकार की इस अच्छी पहल के साथ यह भी जरूरी दिखाई दे रहा है कि जिस तरह अमरीका और यूरोपीय देशों में अमीर वर्ग और विभिन्न क्षेत्रों की सेलेब्रिटीज ने जिस तरह लाखों करोड़ों रुपए का दान कोरोना पीडि़तों को राहत देने के लिए दिया है उसी तरह भारत के अमीर वर्ग और विभिन्न क्षेत्रों में चमकते हुए दिखाई दे रही सेलेब्रिटीज को भी भामाशाह बनकर आगे आना होगा।

यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लॉकडाउन से देश के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और गरीबों की मुश्किलें सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। देश के करीब 45 करोड़ के वर्क फोर्स में से 90 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र से हैं। असंगठित क्षेत्र के लोगों को काम और वेतन की पूरी सुरक्षा नहीं होती है। इतना ही नहीं इन्हें अन्य सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती है। देश में करीब 21 फीसदी लोग गरीबी की रेखा के नीचे हैं। देश में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक लोग प्रवासी मजदूर हैं। ये मजदूर इस समय बड़ी संख्या में शहरों से अपने-अपने गांव की ओर पलायन करते हुए दिखाई दे रहे हैं। वास्तव में ये वे लोग हैं, जो गरीबी, भूख और कुपोषण से संबंधित समस्याओं का लंबे समय से सामना करते आ रहे हैं। ऐसे में कोरोना प्रकोप के बाद इनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं।

यदि हम हाल ही में प्रकाशित वैश्विक खुशहाली, वैश्विक स्वास्थ्य, वैश्विक भूख और वैश्विक कुपोषण की रिपोर्ट को देखें तो भारत के संबंध में चिंताजनक तस्वीर उभरकर दिखाई देती है। हाल ही में 20 मार्च को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 156 देशों की हैप्पीनेस इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट में भारत पिछले वर्ष की तुलना में चार पायदान फिसलकर 144वें स्थान पर पहुंच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इन 156 देशों की खुशहाली मापने के लिए जिन मानकों के आधार पर रैंकिंग की गई है, उनमें संबंधित देश के प्रति व्यक्ति की जीडीपी, सामाजिक सहयोग, उदारता और भ्रष्टाचार, सामाजिक स्वतंत्रता, स्वस्थ जीवन की स्थिति शामिल है। गौरतलब है कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक में 195 देशों में भारत को 57वां स्थान दिया गया है। इसी तरह भारत में भूख की समस्या से संबंधित रिपोर्ट वैश्विक भूख सूचकांक ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ 2019 में 117 देशों की सूची में भारत की रैंकिंग सात स्थान फिसलकर 102वें स्थान पर रही है, जबकि वर्ष 2010 में भारत 95वें स्थान पर था।

इस तरह इन विभिन्न रिपोर्टों से यह स्पष्ट हो रहा है कि देश के करोड़ों लोग आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में इतिहास की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा के रूप में कोरोना संकट भारत के सामने खड़ा हो गया है। इससे निपटने के लिए बड़े प्रभावी और अभूतपूर्व उपायों की जरूरत है। ऐसे विभिन्न उपायों में सीएसआर खर्च भी एक तात्कालिक और सार्थक भूमिका निभा सकता है। ऐसे में इस समय कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के परिपालन के तहत स्वास्थ्य, कुपोषण और भूख की चिंताएं कम करने के लिए सीएसआर व्यय बढ़ाने के लिए प्राथमिकता दी जानी जरूरी है। उल्लेखनीय है कि 500 करोड़ रुपए या इससे ज्यादा नेटवर्थ या पांच करोड़ रुपए या इससे ज्यादा मुनाफे वाली कंपनियों को पिछले तीन साल के अपने औसत मुनाफे का दो प्रतिशत हिस्सा हर साल सीएसआर के तहत उन निर्धारित गतिविधियों में खर्च करना होता है, जो समाज के पिछड़े या वंचित लोगों के कल्याण के लिए जरूरी हों। इनमें प्राकृतिक आपदा, भूख, गरीबी और कुपोषण पर नियंत्रण, कौशल प्रशिक्षण, शिक्षा को बढ़ावा, पर्यावरण संरक्षण, खेलकूद प्रोत्साहन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, तंग बस्तियों के विकास आदि पर खर्च करना होता है। विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में पाया गया कि बड़ी संख्या में कंपनियां सीएसआर के उद्देश्य के अनुरूप खर्च नहीं करती हैं। वे सीएसआर के नाम पर मनमाने तरीके से खर्चे कर रही हैं। विगत अगस्त 2019 में सरकार ने जिस कंपनी संशोधन विधेयक 2019 को पारित किया है उसके तहत उन कंपनियों पर जुर्माना लगाने के प्रावधान भी शामिल हैं, जो कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए अनिवार्य दो फीसदी का खर्च नहीं करती हैं। नए संशोधनों से कंपनियों की सीएसआर गतिविधियों में जवाबदेही तय करने में आसानी होगी। कंपनी अधिनियम की धारा 135 के नए सीएसआर मानकों के मुताबिक यदि कोई कंपनी अपने मुनाफे का निर्धारित हिस्सा निर्धारित सामाजिक गतिविधियों पर खर्च नहीं कर पाए, तो जो धनराशि खर्च नहीं हो सकी उसे कंपनी से संबद्ध बैंक में सोशल रिस्पांसिबिलिटी अकाउंट में जमा किया जाना होगा। कंपनियों को सीएसआर का बगैर खर्च किया हुआ धन स्वच्छ भारत कोष, क्लीन गंगा फंड और प्रधानमंत्री राहत कोष जैसी मदों में डालना होगा। ऐसे में अभी तक जो कंपनियां सीएसआर को रस्मअदायगी मानकर उसके नाम पर कुछ भी कर देती थीं, उनके लिए अब मुश्किल हो सकती है। सीएसआर के मोर्चे पर सरकार सख्ती करने जा रही है। अब कंपनियां केवल यह कहकर नहीं बच पाएंगी कि उन्होंने सीएसआर पर पर्याप्त रकम खर्च की है। अब उन्हें बताना पड़ेगा कि खर्च किस काम में किया गया। उसका नतीजा क्या निकला और समाज पर उसका कोई सकारात्मक असर पड़ा या नहीं। यह बताना होगा कि क्या यह खर्च कंपनी से जुड़े किसी संगठन पर हो रहा है। अब सरकार के द्वारा कंपनियों के सीएसआर के बारे में नए नियमों को ध्यान में रखना होगा। इन नियमों के तहत सीएसआर खर्च के तहत निचले स्तर पर शामिल कंपनियों के लिए खुलासे की न्यूनतम बाध्यता होगी, खर्च की रकम बढ़ने के साथ-साथ अधिक से अधिक जानकारी देनी होगी। निश्चित रूप से कोरोना वायरस के वर्तमान चुनौतीपूर्ण दौर में कारपोरेट जगत का सामाजिक उत्तरदायित्व बढ़ गया है। देश में कारपोरेट जगत के सामाजिक उत्तरदायित्व की नई जरूरतें उभरकर सामने आई हैं। ज्ञातव्य है कि सीएसआर किसी तरह का दान नहीं है। दरअसल यह सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ कारोबार करने की व्यवस्था है। कारपोरेट जगत की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय समुदाय और समाज के विभिन्न वर्गों के बेहतर जीवन के लिए सकारात्मक भूमिका निभाए। खासतौर से देश में स्वास्थ्य, कुपोषण एवं भूख की चिंताओं को कम करने के लिए सीएसआर व्यय बढ़ाया जाना देश की प्रमुख आर्थिक-सामाजिक जरूरत है। हम उम्मीद करें कि कोरोना की महामारी से आर्थिक-सामाजिक मुश्किलों का सामना कर रहे देश के करोड़ों लोगों को राहत देने एवं उनके जीवन की चिंताओं को कम करने जैसे दायित्वों के निर्वहन के लिए कारपोरेट क्षेत्र सीएसआर खर्च के माध्यम से अधिक प्रभावी भूमिका निभाने के लिए आगे बढ़ेगा। हम यह भी उम्मीद करें कि भारत का अमीर वर्ग और भारत के विभिन्न क्षेत्रों की सेलेब्रिटीज कोरोना से जंग में देश के करोड़ों लोगों के आर्थिक-सामाजिक मुश्किलों को कुछ कम करने में अपनी सार्थक भूमिका निभाते हुए दिखाई देंगे। जिस तरह टाटा, महिंद्रा और जिंदल जैसे बड़े उद्योगपति कोरोना से जंग के लिए सहयोग के हाथ बढ़ाकर आगे बढ़े हैं उसी तरह उद्योग और कारोबार क्षेत्र के ऊंचाई पर दिखाई दे रहे उद्यमियों और कारोबारियों को भी आगे बढ़ने की जरूरत दिखाई दे रही है।


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