घर वापसी की कवायद शुरू करे सरकार

By: Apr 15th, 2020 12:06 am

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला से हैं

प्रशासन व प्रदेश सरकारों ने भी लॉकडाउन में फंसे आवाम की हर सुख-सुविधा का ध्यान रखा, लेकिन 21 दिन के इस लंबे अंतराल में फंसे हुए लोगों के लिए उनके परिजन चिंतित हैं। हालांकि मध्यम वर्ग के साथ निम्न वर्ग, गरीबी रेखा से नीचे के लोग, दिहाड़ीदार, मजदूरों ने इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा सहा है जो यातायात ठप्प होने के बावजूद पैदल परिवार सहित अपने घर-गांव की ओर पैदल निकल पड़े। कुछ मजदूरों के पास घर वापसी का न कोई विकल्प था और न ही बंदी की वजह से जीवन यापन की सुविधा…

25 मार्च को अगर कोरोना वायरस से जंग में भारत को लॉकडाउन नहीं किया गया होता तो शायद अब तक भारत में लाखों लोग कोरोना संक्रमित हो जाते और स्थिति अब तक भयावह हो जाती, लेकिन ठीक समय पर प्रधानमंत्री मोदी जी ने लॉकडाउन घोषित कर सूझबूझ व दूरदर्शिता का परिचय दिया और आज स्थिति कुछ और है।  देखने वाली बात  है कि 22 मार्च को देश के 75 जिले कोरोना संक्रमित थे और लॉकडाउन के बावजूद 10 अप्रैल को संक्रमित जिलों की संख्या 364 हो गई है जबकि देश में 700 से अधिक जिले हैं। स्थिति  बेहतर हो सकती थी अगर जमातियों द्वारा मरकज का आयोजन कर उत्पात न मचाया जाता और हम एक बार फिर संकट में फंस गए।

कोरोना संक्रमित जमातियों को ढ़ूंढने, उनका इलाज करने, उन्हें निगरानी में रखने के लिए न केवल हमारी ऊर्जा व समय का नुकसान हुआ अपितु इनके द्वारा फैलाए गए अनाचार, नर्सों के सामने निर्वस्त्र होना, चिकित्सकों पर थूकना, शौच करना, पेशाब की बोतलें फेंकना, अस्पताल से भाग जाना, दवाई खाने से मना करना इनके नापाक इरादों को साफ  उजागर कर रहा था और अभी भी इनसे संक्रमित लोगों को ट्रेस करने में खासी मेहनत करनी पड़ रही है जो हमारे आस-पास कहीं भी खतरा बन मंडरा सकते हैं।

यह तो लॉकडाउन का एक पहलू है। दूसरा  पहलू अचानक लॉकडाउन की स्थिति में जो जहां था वो वहीं फंस गया। इससे अभी तक बड़ी असमंजस वाली स्थिति बनी हुई है। अच्छी बात यह है कि लोगों ने हर हाल में लॉकडाउन का पालन किया। प्रशासन व प्रदेश सरकारों ने भी लॉकडाउन में फंसे आवाम की हर सुख-सुविधा का ध्यान रखा, लेकिन 21 दिन के इस लंबे अंतराल में फंसे हुए लोगों के लिए उनके परिजन चिंतित हैं। हालांकि मध्यम वर्ग के साथ निम्न वर्ग, गरीबी रेखा से नीचे के लोग, दिहाड़ादार, मजदूरों ने इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा सहा है जो यातायात ठप्प होने के बावजूद पैदल परिवार सहित अपने घर-गांव की ओर पैदल निकल पड़े। कुछ मजदूरों के पास घर वापसी का न कोई विकल्प था और न ही बंदी की वजह से जीवन यापन की सुविधा और हमें सोशल मीडिया द्वारा हजारों मजदूरों की दयनीय स्थिति के समाचार मिलते रहे हालांकि बहुत सारी स्वंयं सेवी संस्थाएं, समाजसेवी इस वर्ग की सहायता के लिए आगे आए, मगर सवा अरब की आबादी वाले देश में सारे लोगों तक आपात की स्थिति में सहायता मुहैया करवाना काफी मुश्किल कार्य है। यह वर्ग जैसे-तैसे करके अपने घर-गांव पहुंच भी जाते हैं तो ऐसे में इनके गांवों में पहुंचने से न केवल संक्रमण लाने का  खतरा है बल्कि इनसे आगे भी इनके परिजनों व इनके संपर्क में आए लोगों के संक्रमित होने की संभावना है। ऐसे में लॉकडाउन बंद होने की स्थिति में हालात बिगड़ सकते हैं। यही नहीं एक-दूसरे राज्यों में फंसे लोगों  व  छात्र-छात्राओं को  अपने-अपने घर पहुंचाने के लिए भी किसी ठोस व सुरक्षित प्रबंधन की आवश्यकता है। बाहर से आए परिजनों का टेस्ट करना तो जरूरी होगा ही, साथ में उन्हें कुछ दिन क्वारंटाइन में रखने की भी आवश्यकता होगी ताकि उनकी सुरक्षा के साथ उनके परिजनों व आगे की शृंखला में भी लगाम लग सके। पर किसी भी स्थिति में हमें यह नहीं भूलना है कि भले ही लॉकडाउन के दूसरे चरण में सरकार व प्रशासन की जो भी योजना है आमजन की योजना केवल घरों में रहने की होनी चाहिए। सोशल डिस्टेंसिंग की अनुपालना एक लंबे समय तक करनी होगी। मास्क लगाकर घर से बाहर निकलने की आदत डालनी होगी। ऐसे में जबकि रबी की फसल कटाई का काम शुरू हो रहा है, लॉकडाउन के चलते किसानों को छूट तो देनी होगी, साथ में उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का भी ध्यान रखना होगा। हालांकि जिस समय संपूर्ण  मानवता की जान पर आन पड़ी है ऐसे में  प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा दी गई नसीहत ही काम आएगी कि जान है तो जहान है।  

 


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