ब्रह्मवादिनी सुलभा

By: Apr 4th, 2020 12:05 am

हमारे ऋषि-मुनि, भागः 33

जब सुलभा राजा जनक से मिलने गई, तो उसके मन में था कि वह धर्मात्मा राजा बहुत बड़े ब्रह्मज्ञानी हैं। साधु समुदाय में उनका नाम आदर से लिया जाता है। जब महाराज को ब्रह्मवादिनी सुलभा के आने की सूचना मिली,तो वह स्वयं आगे गए। उन्होंने सुलभा का विधिवत स्वागत व सत्कार किया। अच्छे मन से पूजा की। प्रेमपूर्वक भोजन करवाया। उनके साथ ब्रह्मज्ञान पर विस्तृत चर्चा भी की…

सुलभा परम विदुषी तथा ब्रह्मवादिनी हुई हैं। उन्होंने राजा जनक की बहुत प्रशंसा सुन रखी थी। अतः भिक्षा पाने का बहाना बनाकर उनके राजमहल भी पहुंची। वह संन्यास धर्म का विधिवत पालन किया करती थी। मगर जब मिथिलापुरी महाराज जनक के पास जाना था, तो उन्होंने संन्यासिनी का भेष त्याग दिया। योगबल का सहारा लिया। अति सुंदरी का रूप धारण कर राजा जनक के पास पहुंची।

ब्रह्मवादिनी थी सुलभा

भले ही सुलभा का थोड़ा बहुत जिक्र कई स्थानों पर आता है, फिर भी उनके विषय में बहुत कम जानकारियां उपलब्ध हैं। उन्होंने राजा जनक से कहा था, मेरा कुल एक उत्तम क्षत्रिय कुल है। हमारे एक पूर्वज प्रधान नाम के ऋषि थे। कुछ उन्हें राजर्षि कहते हैं। हमारा परिवार, हमारे पूवर्ज समय-समय पर  बड़े-बड़े यज्ञ त्याग करते रहे हैं।

जनक तथा सुलभा में ब्रह्मज्ञान की चर्चा

जब सुलभा राजा जनक से मिलने गई, तो उसके मन में था कि वह धर्मात्मा राजा बहुत बड़े ब्रह्मज्ञानी हैं। साधु समुदाय में उनका नाम आदर से लिया जाता है। जब महाराज को ब्रह्मवादिनी सुलभा के आने की सूचना मिली,तो वह स्वयं आगे गए। उन्होंने सुलभा का विधिवत स्वागत व सत्कार किया। अच्छे मन से पूजा की। प्रेमपूर्वक भोजन करवाया। उनके साथ ब्रह्मज्ञान पर विस्तृत चर्चा भी की। दोनों ने अपने-अपने विचार रखें। अच्छा संवाद हुआ। महाराज जनक ने अपने इस मेहमान को अपनी सब दशा सुना दी।

मान-सम्मान की चिंता नहीं

राजा जनक ने सुलभा से कहा था, मैं राजा हूं। राज्य कार्य करता हूं,मगर मुझे राज्य का जरा भी मोह नहीं। मेरे सम्मुख अग्नि तथा चंदन समान हैं। मेरा अपमान हो रहा हो या मुझे मान मिल रहा हो, मैं इन्हें एक जैसा मानता हूं। ऐसी अनेक बातें उन्होंने कही। राजा जनक ने अपने दिल को खोलकर रख दिया।

सुलभा पूरी तरह सहमत न थी

राजा जनक ने जब अपनी मनःस्थिति बताई, तो सुलभा ने कहा, आप ठीक कहते हैं,मगर मेरा मानना है कि जिसे सच्चा ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो जाता है, वह मौन हो जाता है। वे सब कामों से उदासीन,सदा शांत बना रहता है। मुझे लगता है कि अभी आपमें कुछ कमी है,क्योंकि आपको वादी-प्रतिवादी, विजय-पराजय, स्वपक्ष-परपक्ष का अच्छा ज्ञान है, जो नहीं होना चाहिए था। शास्त्रार्थ भी करते हैं। विजय पाना तथा पराजित करने की भावना भी बनी हुई है। अंततः महाराज जनक ने ब्रह्मज्ञानी सुलभा के विचारों से सहमति जताई।

– सुदर्शन भाटिया 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App