महान सामाजिक क्रांतिकारी
वीरेंद्र कश्यप
पूर्व सांसद
यदि हम 19वीं एवं 20वीं सदी या इससे पूर्व की भारतीय धार्मिक, सामाजिक व्यवस्था का अवलोकन करें तो वह असमानताएं, ऊंच-नीच, अस्पृश्यताएं तथा गरीबी से भरपूर रही है। इसी दौर में कई सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक आंदोलन चले जिसमें कई पुरोधा अग्रणी नेता के रूप में उभरकर सामने आए।
राजनीतिक आंदोलन के माध्यम से भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए एक बड़ा आंदोलन चला। इसी तरह धार्मिक तथा सामाजिक सुधार आंदोलन में चाहे वह राजा राममोहन राय का ब्रह्म समाज हो, चाहे दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज या ज्योतिबा फूले द्वारा सत्यशोधक समाज या फिर महात्मा गांधी द्वारा हरिजन सेवक संघ की स्थापना। इन सभी धार्मिक-सामाजिक सुधार के पीछे हिंदू धर्म में आई रूढि़वादी सोच के खिलाफ एक आंदोलन रहा है। सामाजिक आंदोलन में अस्पृश्यता के खिलाफ ज्योतिबा फूले और उन से प्रेरित होकर फिर डा. भीमराव अंबेडकर ने अछूतोद्धार के लिए जोरदार संघर्ष करके इस आंदोलन का नेतृत्व किया और उसी का परिणाम है कि हिंदू धर्म का वो अछूत वर्ग जिन्हें कोई अधिकार नहीं थे और किस प्रकार के व्यवहार से यह वर्ग परेशान था, उसे आज हमारे भारतीय संविधान में समानता का अधिकार प्राप्त है।
उन्हें हर क्षेत्र में कानूनी तौर से किसी भी प्रकार की असमानता नहीं है। इसके लिए यदि आज हम किसी को इसका श्रेय देते हैं तो वह है- डा. भीमराव अंबेडकर जिन्होंने भारत के प्रथम विधि मंत्री के रूप में भारत के संविधान को बनाए जाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें कोई दोराय नहीं कि जिस प्रकार डा. अंबेडकर को संविधान निर्माण के लिए प्रारूप समिति के अध्यक्ष पद के लिए चयनित किया गया था, वह भी भारत के इतिहास में उल्लेखनीय है। इस पर टिप्पणी करते हुए क्रांतिकारी स्वाधीनता सेनानी, विनायक दामोदर सावरकर ने अपने संदेश में कहा था- ‘संविधान रचना समिति के लिए अंबेडकर को अध्यक्ष नियुक्त करने का अत्यंत उचित निर्णय लिया समिति ने, शायद इससे अच्छा निर्णय और कोई हो नहीं सकता था।
उन्होंने अपने कर्त्तव्य को न केवल दक्षता से पूर्ण किया अपितु उसको अधिक ऊंची गुणवत्ता प्रदान की। इस पद के समर्थ निर्वाह से यह सिद्ध हो चुका है कि उनका चुनाव सभी प्रकार से सुयोग्य है। डा. अंबेडकर निःसंदेह एक सामाजिक क्रांति के पुरोधा थे क्योंकि उन्होंने अपने सामाजिक अन्याय, ऊंच-नीच व अछूतों के साथ जिस प्रकार अमानवीय व्यवहार किया जाता था उस अपमान व अन्याय के वह स्वयं कोप-भाजक रहे हैं। बचपन में जिस गरीबी में पले-बढे़, कदम-कदम पर सामाजिक रूढि़यों का शिकार हुए, पढ़ाई में होशियार होते हुए भी उन्हें अध्यापक कोई तवज्जो नहीं देते थे, यहां तक कि उन्हें अछूत होने के कारण कमरे से बाहर ही रखा जाता था।
पर वही व्यक्ति अपने संघर्ष और बुद्धि से एक महान शिक्षाविद, अर्थशास्त्रज्ञ, ग्रंथकार, प्राध्यापक, विधिज्ञ, नेता, दलित-पिछड़ों का उद्धारक, समाज संजीवक, भारत के संविधान निर्माता के रूप में अपनी पहचान बनाई। प्रसिद्ध जीवन चरित्रकार धनंजय कीर ने अपने शब्दों में इस प्रकार वर्णित किया है- ‘डा. अंबेडकर का जीवन इतना मनोहारी, अलौकिक, अनेकविध और अद्भुत था कि इस देश के या विदेश के किसी भी मानव के साथ उनकी तुलना नहीं हो सकेगी’।
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