लाभकारी है अमावस्या का व्रत

By: Apr 18th, 2020 12:06 am

अमावस्या की तिथि का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। जिस तिथि में चंद्रमा और सूर्य साथ रहते हैं, वही ‘अमावस्या’ तिथि है। इसे ‘अमावसी’ भी कहा जाता है। अमावस्या माह की तीसवीं तिथि होती है। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को कृष्ण पक्ष प्रारंभ होता है तथा अमावस्या को समाप्त होता है। अमावस्या पर सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है।

नामकरण : अमावस्या के नामकरण हेतु मत्स्य पुराण के 14वें अध्याय में एक रूपक कथा आती है, जिसके अनुसार प्राचीन काल में पितरों ने ‘आच्छोद’ नामक एक सरोवर का निर्माण किया था। इन देव पितरों की एक मानसी कन्या थी, जिसका नाम था ‘अच्छोदा’। अच्छोदा ने एक बार एक सहस्त्र दिव्य वर्षों तक कठिन तप किया। अतः उसे वर देने के लिए पितरगण पधारे। उनमें से एक अतिशय सुंदर ‘अमावसु’ नामक पितर को देखकर ‘अच्छोदा’ उन पर अनुरक्त हो गई और अमावसु से प्रणय याचना करने लगी। किंतु अमावसु इसके लिए तैयार नहीं हुए। अमावसु के धैर्य के कारण उस दिन की तिथि पितरों को अतिशय प्रिय हुई। उस दिन कृष्ण पक्ष की पंचदशी तिथि थी, जो कि तभी से ‘अमावसु’ के नाम पर ‘अमावस्या’ कहलाने लगी।

महत्त्व : अमावस्या के स्वामी ‘पितर’ होते हैं। इस तिथि में चंद्रमा की सोलहवीं कला जल में प्रविष्ट हो जाती है। चंद्रमा का वास अमावस्या के दिन औषधियों में रहता है, अतः जल और औषधियों में प्रविष्ट उस अमृत का ग्रहण गाय, बैल, भैंस आदि पशुचारे एवं पानी के द्वारा करते हैं, जिससे वही अमृत हमें दूध, घी आदि के रूप में प्राप्त होता है और उसी घृत की आहुति ऋषिगण यज्ञ के माध्यम से पुनः चंद्रादि देवताओं तक पहुंचाते हैं। वही अमृत फिर बढ़कर पूर्णिमा को चरम सीमा पर पहुंचाता है।

अमावस्या पर व्रत : धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि अमावस्या को व्रत करना चाहिए। अमावस्या के दिन ऐसे ही कार्य करने चाहिएं जो परमात्मा के पास में ही बिठाने वाले हों। सांसारिक खेती-बाड़ी, व्यापार आदि कर्म तो परमात्मा से दूर हटाने वाले हैं। संध्या हवन, सत्संग, परमात्मा का स्मरण, ध्यान कर्म परमात्मा के पास बैठाते हैं। इसलिए माह में एक दीन उपवास अवश्य ही करना चाहिए और वह दिन अमावस्या का ही श्रेष्ठ मान्य है क्योंकि सूर्य और चंद्रमा ये दोनों शक्तिशाली ग्रह अमावस्या के दिन एक ही राशि में आ जाते हैं। इसलिए अमावस्या का व्रत करना चाहिए। उस दिन अन्न खाना वर्जित किया गया है और व्रत का विधान किया गया है।


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