श्री गोरख महापुराण

By: Apr 4th, 2020 12:05 am

मैनावती की बात सुनकर गोपीचंद बोले जननी,तुम्हारा रोना वृथा है। जो मृत्युलोक में जन्मा है उसकी मृत्यु अवश्य होगी। अपने बेटे की बात सुनकर मैनावती बोली, इस संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। अमर तत्व प्रदान करने वाले योगी जालंधरनाथ हमारी नगरी में पधारे हैं। तुम भक्ति भाव से उनकी शरण में जाओ और उन्हें अपना गुरु मान स्वयं चेला बन जाओ तथा अमर तत्व प्राप्त करो। अपनी जननी की बात सुनकर गोपीचंद बोले, उनके उपदेश सुनकर मेरी सुख संपत्ति, राज्य-वैभव, बाल-बच्चे सभी मुझसे जुदा हो जाएंगे। यह सब  कुछ मैं इतनी शीघ्र नहीं कर पाऊंगा…

गतांक से आगे…

जहां वह विचार मग्न बैठी अपने बेटे को देख रही थी। जब रानी बांदियों के शोर की आवाज मैनावती के कानों में पड़ी, तो वह अपने बेटे का गठीला वदन देख और अपने पति राजा त्रिलोचन चंद को याद कर जो अपनी युवा अवस्था में राजा गोपीचंद के समान थे। काल की चपेट में आकर उनका सुंदर शरीर चंदन की चिता की भेंट हो गया। उसी प्रकार मेरे बेटे की यह सुंदर काया भी अग्नि की भेंट हो जाएगी। मन में ऐसा विचार आते ही आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे और बरसात की माणिक गर्म-गर्म बूंदें देख राजा की निगाह एकदम ऊपर उठ गई। तब अपनी माता को रोते हुए अति अधीर पाया और जान गए कि माता के आंसूओं की ही ये बूंदें थीं। जब गोपीचंद ने अपनी माता को रोते हुए देखा तो नहाना-धोना भूल मैनावती के पास जा पहुंचा। आगे-आगे राजा उसके पीछे-पीछे पटरानी लोमावंती भी आ पहुंची। गोपीचंद ने अपने दोनों हाथ जोड़कर जननी से पूछा,हे मातेश्वरी आप किस दुःख से दुःखी होकर रोई हो। क्या किसी ने आपको कोई अपशब्द कहे,आपका अपमान किया है? अपने बेटे से साफ-साफ कहो। राजा गोपीचंद की बात सुनकर मैनावती बोली,बेटा मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा है। आज तुम्हारे पिता का ख्याल आ गया। इसलिए मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े। उनका शरीर तुम्हारे समान ही सुंदर और स्वस्थ था। परंतु काल बलि ने उन्हें राख की ढेरी बना दिया। इसी तरह मेरे बेटे के शरीर का भी नाश होगा। गोपीचंद तुम इस क्षणभंगुर सुख का त्याग करके अपने हित अहित पर ध्यान दो। मैं चाहती हूं तुम्हारी मृत्यु ही न हो और तुम अमर हो जाओ। मैनावती की बात सुनकर गोपीचंद बोले जननी,तुम्हारा रोना वृथा है। जो मृत्युलोक में जन्मा है उसकी मृत्यु अवश्य होगी। अपने बेटे की बात सुनकर मैनावती बोली, इस संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। अमर तत्व प्रदान करने वाले योगी जालंधरनाथ हमारी नगरी में पधारे हैं। तुम भक्ति भाव से उनकी शरण में जाओ और उन्हें अपना गुरु मान स्वयं चेला बन जाओ तथा अमर तत्व प्राप्त करो। अपनी जननी की बात सुनकर गोपीचंद बोले, उनके उपदेश सुनकर मेरी सुख संपत्ति, राज्य-वैभव, बाल-बच्चे सभी मुझसे जुदा हो जाएंगे। यह सब  कुछ मैं इतनी शीघ्र नहीं कर पाऊंगा। अभी मुझे राज्य सुख भोगने दो। बारह वर्ष बाद मैं गुरु शरण में जाऊंगा और धु्रव भक्त के समान सारे संसार में यश फैलाऊंगा। इस पर मैनावती बोली अरे बेटा तुम बारह वर्ष की बात करते हो। एक पल का तो भरोसा है नहीं। माता ने जो-जो उपदेश अपने बेटे को दिए उन्हें पटरानी लोमावंती बड़े ध्यान से सुनती रही। उसके हृदय को बड़ा दुःख हो रहा था कि मेरी सास अपने बेटे की मां नहीं हम सबकी दुश्मन है। इसका कुछ न कुछ उपाय मुझे करना ही पड़ेगा। गोपीचंद ने अपनी मां को उत्तर दिया जननी मैं आपकी आज्ञा से विमुख नहीं हूं। परंतु जालंधरनाथ योगी का प्रताप कैसा है। इसकी तसल्ली हो जाने पर ही मैं गुरु शरण जाऊंगा। अब आप चिंता मत करो। इस तरह माता को समझाकर वह स्नान करने चला गया। उधर सास के उपदेश से पटरानी लोमावंती की बेचैनी बराबर बढ़ रही थी। उसने अपनी सभी सौतों को इकट्ठा कर अपनी सास की करतूत भलीभांति समझाई और बोली, अगर बालम ने संत से दीक्षा ले ली, तो हम सबके साथ-साथ हमारी कन्याओं का भाग्य भी फूट जाएगा। इसलिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए कि हमारे स्वामी योगी न बनें।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App