श्री गोरख महापुराण

By: Apr 18th, 2020 12:02 am

गतांक से आगे…

इधर पटरानी विचार मग्न थी। उधर राजा स्नान ध्यान से निबटे। उनके मुख पर उल्लास नहीं था। वह इसी सोच विचार में थे कि राजा रहना ठीक है या दीक्षा लेकर योगी बनना। उनकी मुख मुद्रा देख सभी रानियां समझ गईं कि जरूर दाल में कुछ काला है इसलिए स्वामी इतने अधीर हैं। कुछ समय बाद राजा दरबार को चले गए। तब सब रानियां लोमावंती को घेर कर खड़ी हो गइर्ं और बोलीं जीजी, जल्दी कुछ उपाय करो। वरना सभी का जीवन नष्ट हो जाएगा। लोमावंती बोली, घबराओ नहीं। बिना त्रिया चरित्र रचे यह संकट दूर नहीं होगा। अगले दिन जब राजा गोपीचंद सोकर उठे और पटरानी लोमावंती के अंतपुर में पधारे, तो पटरानी राजा को देखकर रोने लगी। राजा ने अपनी पटरानी के नकली आंसूओं को असली समझा और पूछने लगे महारानी तुम्हारे रोने का कारण समझ में नहीं आया। अपने प्रीतम की बात सुनकर लोमावंती ने उत्तर दिया कि मैं भाग्य को रो रही हूं। गोपीचंद बोले, मैं अब भी कुछ समझ नहीं पाया। महारानी त्रिया चरित्र दिखाती हुई बोली, जान बख्शी की क्या जरूरत है और वह भी पटरानी के लिए जिनका चंद्र मुख देखकर मैं जीता हूं। जो कहना हो, निःसंकोच कहो। पटरानी बोली बात कुछ ऐसी है जिसे सुनकर आपको अति क्रोध आ सकता है। मुझे यह भी पता है कि मेरी बात पर आपको विश्वास आएगा भी या नहीं। राजा बोले, सत्य बात सुनकर भी मैं क्रोध करूंगा। यह तुमने कैसे मान लिया। जो कहना है निश्चिंत होकर कहो। इस प्रकार बंदिश बांधना ठीक नहीं। लोमावंती बोली, मेरे देवता स्वरूप प्राणनाथ मैं काफी दिनों से जासूसी कर रही थी और अब इस निश्चय पर पहुंची हूं कि यह योगी हमारी नगरी में आया है उसका और राजमाता का नाजायज संबंध है।

राजमाता हम सबके सो जाने के पश्चात अर्द्धरात्रि के समय नित्य जालंधरनाथ की कुटिया पर पहुंच जाती है। इन दोनों ने मिलकर षड्यंत्र रचा है कि राजा को दीक्षा के बहाने राजपाट छुड़वाकर दूर भगा दें और हम दोनों मिलकर राज्य सुख का आनंद लूटें। मेरे रोने का यही कारण था। मेरी बात सच है या झूठ, आप जैसे चाहें इसकी जांच करवा सकते हैं। अपनी पटरानी की बात सुनकर राजा को पूर्ण विश्वास हो गया कि राजमाता योगी के जाल में फंस गई है। राजा ने सोचा कि अब मैं इस धूर्त योगी को गड्ढे में दबा दूंगा। पटरानी की बात में सार है तभी तो राजमाता मुझे दीक्षा दिलवाने के लिए इतनी बेचैन है। अमर तत्व तो बहाना मात्र है। इस प्रकार मन में विचार कर गोपीचंद बोले महारानी तुम चिंता मत करो। मैं आज ही उस धूर्त योगी को जमीन में दबा दूंगा। ऐसा कह और नित्य कर्मों से फारिग होकर राजा दरबार में जा पहुंचा। वह अपनी पटरानी के त्रिया जाल में फंस गया था और अपनी सुध-बुध खो बैठा था। गोपीचंद गुस्से में भरे राज दरबार में बैठे थे। उन्होंने अपने मंत्री को बुलवाकर एकांत में सलाह की। हमारे नगर में जो जालंधरनाथ योगी आया हुआ है वह महाधूर्त है। मैंने उसे उसकी धूर्तता का दंड देने का निश्चय किया है। तुम गुप्त रूप से एक गहरा गड्ढा ख्ुदवा कर और उस धूर्त को उसमें पटक कर ऊपर से घोड़ों की लीद भरवा कर गड्ढे को भरवा दो।  यह सब कार्य गुप्त रूप से ही होना चाहिए वरना नगर में बवाल मचने की आशंका है। राजा गोपीचंद की आज्ञा  के अनुसार मंत्री ने कर्मचारियों को साथ ले जाकर योगी की कुटिया के नजदीक कुएं की तरह एक गहरा गड्ढा खुदवाया। जालंधरनाथ उस समय समाधि लगाए उपासना कर रहे थे। मंत्री ने उन्हें उसी अवस्था में उठवा कर गड्ढे में रखवा दिया और कूड़े-कचरे तथा घोड़ों की लीद से गड्ढे को भरवा दिया।              – क्रमशः

 


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