स्वर्ण मंदिर का महत्त्व

By: Apr 11th, 2020 12:06 am

भारतीय संस्कृति में बैसाखी ऐसा महत्त्वपूर्ण त्योहार है, जिसका राष्ट्रीय चेतना, प्रकृति, इतिहास, जलवायु और कृषि के साथ गहरा जुड़ाव है। हरित क्रांति के पर्याय रूपी इस पर्व को सिर्फ  पंजाब के किसान ही नहीं मनाते, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी बैसाखी का त्योहार समान उत्साह से मनाया जाता है। पंजाब के किसान इस दिन रबी की तैयार फसल की कटाई शुरू करते हैं। नई फसल की आमद का उत्साह ऐसा होता है कि वे भांगड़ा और गिद्दा लोकनृत्यों का आयोजन करके अपनी खुशी प्रकट करते हैं। जब तक गेहूं की फसल कटकर खलिहानों में नहीं आ जाती, तब तक इनकी धूम मची रहती है। बैसाखी सूर्य गणना का भी पर्व है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। विक्रमी संवत् का नया साल भी इसी दिन से शुरू होता है। इस पर्व पर नई फसल के आगमन की खुशी में जगह-जगह मेले लगते हैं। श्रद्धालुजन नदियों, सरोवरों में स्नान करके गुरुद्वारों और मंदिरों में जाते हैं। बैसाखी के आगमन पर गढ़मुक्तेश्वर, हरिद्वार आदि स्थानों पर गंगा तट के किनारे मेले लगते हैं। रावी के तट पर प्राचीनकाल से बैसाखी का मेला लगता आ रहा है। इसके पीछे एक मान्यता यह भी है कि बैसाखी के पवित्र दिन ही भगीरथ गंगा को धरती पर लाने में सफल हुए थे। बैसाखी का त्योहार आते ही पूरे देश में हरियाली व खुशहाली छा जाती है।

बैसाखी मुख्यतः पंजाब या उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। सिखों के लिए बैसाखी का धामिर्क महत्त्व भी है। दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी और सैनिक संप्रदाय के रूप में सिखों का प्रवर्तन किया था। आनंदपुर साहिब में आज भी इस याद को जीवंत बनाए रखने के लिए विशाल मेला लगता है। यह त्योहार अकसर 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। इस बार  बैसाखी 13 अप्रैल को मनाई जाएगी। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में  जब भी कोई त्योहार मनाया जाता है, तो रात को दीपमाला की जाती है। अकाशगंगा के निम्र आकीर्ण सरोवर तथा बीच मंदिर का अस्तित्व आध्यात्मिक होकर आदि शक्ति देवलोक को पर्याय हो जाता है। मान्यता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने वैशाख माह की षष्ठी को खालसा पंथ की स्थापना की थी, जिस कारण बैसाखी पर्व मनाया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह ने इस मौके पर शीशों की मांग की, जिसे दया सिंह, धर्म सिंह, मोहकम सिंह, साहिब सिंह व हिम्मत सिंह ने अपने शीशों को भेंट कर पूरा किया। इन पांचों को गुरु के पंज प्यारे कहा जाता है, जिन्हें गुरु ने अमृत पान कराया था। अमृतसर का इतिहास गौरवमयी है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अमृतसर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बडा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। 1919 में बैसाखी के दिन घटित जलियांवाला बाग कांड आजादी के लिए दी गई कुर्बानी का सबसे मार्मिक दस्तावेज है। शहीदों की याद में हर साल बैसाखी वाले दिन यह त्योहार यहां पर मनाया जाता है। बैसाखी का महत्त्व केवल धार्मिक नजरिए से ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना के पर्व के रूप में यह पूरे देश का पर्व है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App