हमारा धैर्य और शक्ति

By: Apr 11th, 2020 12:05 am

श्रीश्री रवि शंकर

कोरोना वायरस महामारी ने सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से बड़ी मात्रा में प्रभाव डाल कर एक वैश्विक संकट पैदा कर दिया है। इस चुनौतीपूर्ण समय में हमारे धैर्य और शक्ति की परीक्षा है कि हम न सिर्फ  वायरस को फैलने से रोकें, बल्कि इस परिस्थिति से बेहतर तरीके से बाहर आएं। इस महामारी को गंभीरता से लेना और जिम्मेदारी से पालन करना, हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। निश्चित रूप से यह भयभीत होने का समय नहीं है। वायरस को हराने के लिए सामूहिक कार्यवाही की आवश्यकता होती है। यह बहुत आवश्यक है कि हर कोई साफ-सुथरा रहे, बार-बार हाथ धोने, सामाजिक दूरी आदि को बनाए रखने जैसे नियमों का पालन करे। आरंभ में ये हमें चुनौतीपूर्ण लग सकते हैं, पर इनका पालन करना मुश्किल नहीं है। यदि हमने ध्यान दिया, तो पाएंगे कि ये तौर तरीके हमारी अनेक पारंपरिक संस्कृतियों का हिस्सा रहे हैं। योग के प्राचीन दर्शन में न केवल शरीर का, बल्कि मन और आसपास के परिवेश की स्वच्छता पर भी बहुत जोर दिया जाता है। योग अथवा नियम का पहला सूत्र ही व्यक्तिगत स्वच्छता अर्थात शौच पर आधारित है। महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों में यौगिक जीवन के लिए एक महत्त्वपूर्ण आधार के रूप में शौच को पवित्रता और स्वच्छता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें पर्याप्त नींद लेना, व्यायाम करना, ध्यान करना और वह सब जो हमारे सिस्टम को शुद्धि की ओर ले जाता है, भी शामिल हैं। आसन, प्राणायाम और ध्यान को जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और कोरोना जैसे वायरस दूर रहते हैं। उथल-पुथल वाले इस समय में अपने आप को सब से अलग रख कर हम इस वायरस को एक-दूसरे में फैलने की संभावनाओं को कम कर सकते हैं। घर के भीतर रहें, यात्रा और सार्वजनिक समारोहों या सामुदायिक दावतों में जाने से बचें। यहां तक कि मैं समूहिक प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों से बचने की भी सलाह दूंगा। रीति-रिवाजों की तुलना में ध्यान और प्रार्थना ज्यादा श्रेष्ठ और प्रभावी हैं। आरोपित सामाजिक दूरी या स्व-संगरोध (कोरेंटाइन) को अपने आप को मद्धम करने और भीतर जाने के अवसर के रूप में लें। यह हमें अपने आप पर ध्यान देने तथा अपनी भूमिकाओं और लक्ष्यों पर चिंतन करने का समय देता है। यह हमारे भागते-दौड़ते जीवन के नीरस पैटर्न को तोड़ने और दाहिने मस्तिष्क की गतिविधियों जैसे कि कोई रचनात्मक लेखन, खाना पकाना, संगीत, चित्रकारी या भाषा सीखने का एक बहाना भी है। यह दृश्य से आगे बढ़ कर, खोए हुए द्रष्टा को ढूंढने का समय है। विश्राम और गतिविधि के बीच संतुलन बनाने का समय है। जो हमेशा विश्राम में रहता है, वह जीवन में कभी प्रगति नहीं कर पाता है और जो हमेशा गतिविधियों में लिप्त रहता है, उसे गहन विश्राम का आनंद नहीं मिलता। सामाजिक दूरी कोई दंड नहीं है। मौन और एकांतवास, व्यक्तिगत विकास और आत्म नवीकरण के लिए शक्तिशाली साधन हैं। एकांतवास के ही कारण संसार में अनेक महान कार्य घटित हुए हैं। अधिक से अधिक ध्यान करें तथा इस आरोपित एकांतवास को अपनी मानसिक शक्ति, रचनात्मकता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए उपयोग करें। हमें अपने परिवार के सदस्यों के साथ अधिक समय बिताने को मिल रहा है, तो उन्हें सुने।


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