काल को भी रोक देता है भैरवाष्टमी का व्रत

By: May 9th, 2020 12:17 am

कालाष्टमी अथवा काला अष्टमी का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान इसे मनाया जाता है। कालभैरव के भक्त वर्ष की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं। सबसे मुख्य कालाष्टमी, जिसे कालभैरव जयंती के नाम से जाना जाता है, उत्तरी भारतीय पूर्णीमांत पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में पड़ती है, जबकि दक्षिणी भारतीय अमांत पंचांग के अनुसार कार्तिक माह में पड़ती है। हालांकि दोनों पंचांग में कालभैरव जयंती एक ही दिन देखी जाती है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे…

व्रत विधि

भगवान भोलेनाथ के भैरव रूप के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। भैरव की पूजा व उपासना से मनोवांछित फल मिलता है। अतः भैरव जी की पूजा-अर्चना करने तथा कालाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कालभैरव का दर्शन एवं पूजन मनवांछित फल प्रदान करता है। भगवान शिव के भैरव रूप की उपासना करने वाले भक्तों को भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए और उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। रात्रि के समय जागरण करके शिवशंकर एवं पार्वती की कथा एवं भजन-कीर्तन करना चाहिए। भैरव कथा का श्रवण और मनन करना चाहिए। मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भगवान भैरवनाथ का वाहन श्वान है। अतः इस दिन प्रभु की प्रसन्नता हेतु कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन प्रातःकाल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करके पितरों का श्राद्ध व तर्पण करके भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं तथा दीर्घायु प्राप्त होती है। भैरव जी की पूजा व भक्ति करने से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं।

कथा

भैरवाष्टमी या कालाष्टमी की कथा के अनुसार एक समय श्रीहरि विष्णु और ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि समाधान के लिए भगवान शिव एक सभा का आयोजन करते हैं। इस सभा में महत्त्वपूर्ण ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे। सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रुद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। भैरव जी श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दंड होने के कारण वे दंडाधिपति कहे गए। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह भगवान भोलेनाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे। भैरव जी ब्रह्मा एवं अन्य देवताओं और साधुओं द्वारा वंदना करने पर शांत हो जाते हैं।


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