कोरोना से पिसी उच्च शिक्षा

By: May 6th, 2020 12:05 am

डा. वरिंदर भाटिया

पूर्व कालेज प्रिंसीपल

यूनेस्को के अनुसार आज 191 देशों में 25 करोड़ नौजवान उच्च शिक्षा से और लगभग 120 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा के पारंपरिक रूप से वंचित हो गए हैं। जाहिर है इस महामारी ने जितना नुकसान दुनिया की अर्थव्यवस्था, कारोबार, रोजगार, कृषि और आवागमन को पहुंचाया है, इससे कहीं ज्यादा नुकसान उसने उच्च शिक्षा और स्कूली शिक्षा का किया है। इस समय भारत में भी एक हजार विश्वविद्यालयों और 55 हजार महाविद्यालयों में सन्नाटा छा गया है। समाज के मध्य और निम्न वर्ग की समस्या इसलिए भी गहरा गई है क्योंकि इनके रोजगार और व्यवसाय पर कोरोना का भयंकर असर पड़ा है। ऐसे मां-बाप लंबे अरसे से रात-दिन मेहनत करके अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश करते रहे हैं। उन्हें उम्मीद रहती है कि उनकी संतान अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर अच्छी नौकरी हासिल करेगी…

कोरोना रूपी दैत्य ने देश में उच्च शिक्षा संतुलन बिगाड़ दिया है। अनेक प्रदेशों में पैसों की कमी के चलते व छात्रों की संख्या पर्याप्त न होने के कारण पहले से ही मुश्किल में चल रहे देश के अनेक छोटे और देहात व बार्डर और पहाड़ी एरिया कालेज बंद होने के कगार पर आ चुके हैं। यहां तक कि वित्तीय संसाधन न होने के कारण इनमें काम कर रहे अनेक रेगुलर कर्मियों की भी अनेक महीनों की सैलरी पेंडिंग हो गई है। देश के कुछ हिस्सों में ऐसा लग रहा है कि आर्थिक स्थितियां कमजोर होने के कारण कमजोर वर्ग से जुड़े अनेक छात्र कॉलेज शिक्षा से किनारा कर लेंगे क्योंकि आर्थिक संकटों के चलते उनके परिवारों के लिए घर की रोटी एक बड़ी प्राथमिकता होगी। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा भी सामान्य बात नहीं होगी क्योंकि अभी भी देश के सभी विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की पहुंच ‘इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों’ तक नहीं है। कोविड-19 के बीच दुनियाभर में शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने से 145 करोड़ से अधिक छात्र गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं और इनमें भी लड़कियों पर इसका सबसे अधिक असर पड़ेगा क्योंकि इससे पढ़ाई छोड़ने वाली छात्राओं की संख्या बढ़ेगी तथा शिक्षा में लैंगिक अंतर की खाई और गहरी होगी। यूनेस्को के अनुसार आज 191 देशों में 25 करोड़ नौजवान उच्च शिक्षा से और लगभग 120 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा के पारंपरिक रूप से वंचित हो गए हैं। जाहिर है इस महामारी ने जितना नुकसान दुनिया की अर्थव्यवस्था, कारोबार, रोजगार, कृषि और आवागमन को पहुंचाया है, इससे कहीं ज्यादा नुकसान उसने उच्च शिक्षा और स्कूली शिक्षा का किया है। इस समय भारत में भी एक हजार विश्वविद्यालयों और 55 हजार महाविद्यालयों में सन्नाटा छा गया है। समाज के मध्य और निम्न वर्ग की समस्या इसलिए भी गहरा गई है क्योंकि इनके रोजगार और व्यवसाय पर कोरोना का भयंकर असर पड़ा है।

ऐसे मां-बाप लंबे अरसे से रात-दिन मेहनत करके अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश करते रहे हैं। उन्हें उम्मीद रहती है कि उनकी संतान अच्छे कालेज या यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर अच्छी नौकरी हासिल करेगी। मगर अब ऐसे करोड़ों परिवारों में चिंता, संताप और निराशा की स्थिति है क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि उच्च शिक्षा का अब क्या होगा और कोविड-19 संकट की समाप्ति के बाद उच्च शिक्षा कैसे चलेगी? गरीब तबके के करोड़ों परिवारों को लगने लगा है कि जिंदा रहने के लिए ही जब जरूरी खर्चों का इंतजाम करना भारी पड़ रहा है, तो फिर पढ़ाई-लिखाई के लिए धन कहां से जुटाएंगे? हमारे शिक्षण संस्थानों में आपको ऐसे लाखों विद्यार्थी मिल जाएंगे जो छोटी-मोटी नौकरियां करके या ट्यूशन आदि पढ़ाकर अपनी पढ़ाई-लिखाई का खर्च जुटाते रहे हैं। आज इन युवक-युवतियों के छोटे-मोटे रोजगार और अंशकालिक कामकाज खतरे में पड़ गए हैं। लाखों ग्रामीण और कस्बाई नौजवानों का शहर में किराए के मकान में रहकर पढ़ाई-लिखाई करना मुश्किल हो गया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय, यूजीसी और एआईसीटीई ने कोविड-19 के कारण घोषित लॉकडाउन की अवधि में महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को ऑनलाइन माध्यम से बकाया कक्षाओं के संचालन, प्रैक्टिकल, मौखिक परीक्षा, प्रवेश-प्रक्रिया, कैंपस को खोलने और विद्यार्थियों, शिक्षकों व स्टाफ  को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

इन दिशा-निर्देशों से यह तो स्पष्ट है कि कक्षाएं, परीक्षाएं और प्रवेश-कार्य कैसे किए जाएंगे, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि भारत के दूरदराज के गांवों और कस्बों में रहने वाले गरीब परिवारों के नौजवान किस प्रकार स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी जुटा पाएंगे? क्या आज की परिस्थितियों में, जब 10 करोड़ से ज्यादा लोग अपने काम-धंधे और रोजगार से हाथ धो बैठे हैं, भारत में सिर्फ  ऑनलाइन शिक्षण से वंचित वर्ग के लोगों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा मिल पाएगी। भारत की उच्च शिक्षा और उसकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाए रखने के लिए गरीब विद्यार्थियों, शिक्षण संस्थानों और शिक्षकों को तुरंत आर्थिक राहत देने की जरूरत है। गरीब विद्यार्थियों को बैंकों से बिना ब्याज के शिक्षा-ऋण दिए जाने चाहिए। अभी इसकी ब्याज-दर 10-12 प्रतिशत है। क्या इसके लिए हमारे पास भविष्य की कोई वैकल्पिक कार्य योजना है? ऐसा लगता है कि कोरोना की काली छाया देश की उच्च शिक्षा पर भारी पड़ रही है।

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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