आत्मा की झलक

By: Jun 15th, 2020 11:05 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

अतः यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यक्ति जब मिटता है, तब उसका अहम नहीं रह जाता तब वह पाता है कि ‘हूं’ है ही नहीं, जो है यह मैं नहीं है, जबकि जो है यह सब है। तब दीवार टूटती है और द्वार खुलता है, तब वह गंगा बहती है जो भीतर छुपी है और तैयार है, वह शून्य की प्रतीक्षा कर रही होती है कि कोई शून्य हो जाए, तो इससे वह बह उठे। महात्मा ठीक फरमाते हैं कि धर्म के श्रेष्ठतम अनुभव में ‘मैं’ पूर्णता मिट जाती है। अहंकार पूर्ण रूप से शून्य हो जाता है क्योंकि आत्मा की झलक उपलब्ध होते ही अहंकार लोप हो जाता है।

कबीर तू-तू करता तू भया मुझ में रहा न हूं।

जब आपा पर का मिटि गया जत देखउ तत तू।

उदाहरण के तौर पर हम एक कुआं खोदते हैं, पानी भीतर है, पानी कहीं से लाना नहीं होता। परंतु बीच में मिट्टी-पत्थर पड़े हैं, इनको निकाल कर बाहर कर देते हैं। इसके अतिरिक्त हम और क्या करते हैं? बस हम इतना ही करते हैं कि एक शून्य बनाते हैं, एक खाली जगह बनाते हैं। कुआं खोदने का मतलब है खाली स्थान बनाना ताकि खाली स्थान में जो भीतर छुपा हुआ पानी है वह प्रकट होने के लिए जगह पा जाए। वह जो भीतर है इसको जगह चाहिए प्रकट होने की, जगह मिल नहीं रही है, तो वह भरा हुआ है मिट्टी-पत्थरों से। जैसे ही हमने वह मिट्टी-पत्थर हटाकर अलग कर दिए वह पानी निकल कर बाहर आ गया। इस प्रकार मनुष्य के भीतर प्रेम भरा हुआ होता है और उसे भी बाहर आने के लिए जगह चाहिए होती है, जहां वह प्रकट हो पाए। जबकि हमने उसे अपनी मैं रूपी मिट्टी से दबा रखा है और चिल्लाए जा रहे हैं मैं…मैं। अतः याद रहे कि जब तक हमारा मन मैं…मैं चिल्लाता रहता है, तब तक हम मैं…मैं की मिट्टी-पत्थर से भरे हुए कुएं की तरह ही हैं। हमारे मन रूपी कुएं में यह प्रेम रूपी पानी के झरने नहीं प्रवाहित हो सकते। अंत में कहना पड़ेगा कि यदि हम खोजें कि कहां है हमारा ‘मैं’ तो हम पाएंगे कि हम अनंत संज्ञाओं का एक जोड़ हैं जहां ‘मैं’ कहीं भी नहीं है। यदि एक-एक अंग के विषय में हम सोचते चले जाएं तो एक-एक अंग समाप्त होता चला जाता है, फिर अंत में केवल शून्य रह जाता है और फिर इस शून्य से प्रेम का जन्म होता है। अब इस शून्य के दर्शन पूर्ण सद्गुरु के द्वारा करके ही मनुष्य का ‘मैं’ हूं का भाव विसर्जित हो सकता है और कोई उपाय नहीं है। संपूर्ण अवतार बाणी का भी कथन है।

मन दी हंगता सतगुरु लै के अनगिनत एहसान करे।

पल-पल याद करो इस रब नूं माण का भांडा चूर करो।

सिमर सिमर के इस रब नूं दूर दिलों हंकार करो।

लै अवतार गुरु पग धूड़ी अग दा सागर पार करो।


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