ज्योति परमात्मा का अंश

By: Jun 4th, 2020 11:10 am

ओशो

अंधेरा कितना ही हो, चिंता न करो। अंधेरे का कोई अस्तित्व ही नहीं होता। अंधेरा कम और ज्यादा थोड़े ही होता है, पुराना-नया थोड़े ही होता है। हजार साल पुराना अंधेरा भी अभी दीया जलाओ और मिट जाएगा। और घड़ी भर पुराना अंधेरा भी, अभी दीया जलाओ और मिट जाएगा। अंधेरा अमावस की रात का हो तो मिट जाएगा और अंधेरा साधारण हो तो भी मिट जाएगा। अंधेरे का कोई बल नहीं होता। अंधेरा दिखाई बहुत पड़ता है मगर बहुत निर्बल है, बहुत नपुंसक है। ज्योति बड़ी छोटी होती है, लेकिन बड़ी शक्तिशाली है। क्योंकि ज्योति परमात्मा का अंश है, ज्योति में परमात्मा स्थित है। अंधेरा तो सिर्फ  नकार है, अभाव है अंधेरा है नहीं। इसीलिए तो अंधेरे के साथ तुम सीधा कुछ करना चाहो तो नहीं कर सकते। न तो अंधेरा ला सकते हो न हटा सकते हो। दीया जला लो, अंधेरा चला गया। दीया बुझा दो, अंधेरा आ गया। सच तो यह कहना है कि अंधेरा आ गया, चला गया ठीक नहीं, भाषा की भूल है। अंधेरा न तो है, न आ सकता न जा सकता। जब रोशनी नहीं होती है तो उसके अभाव का नाम अंधेरा है। जब रोशनी होती है तो उसके भाव का नाम अंधेरे का न होना है। अंधेरा कितना ही हो और कितना ही पुराना हो कुछ भेद नहीं पड़ता। जो दीया हम ला रहे हैं, जो रोशनी हम जला रहे हैं, वह इस अंधेरे को तोड़ ही देगी। बस रोशनी जलाने की बात है। इसलिए अंधेरे की चिंता न करो। रोशनी के लिए ईंधन बनो। इस प्रकाश के लिए तुम्हारा स्नेह चाहिए। स्नेह के दो अर्थ होते हैं, एक तो प्रेम और एक तेल। दोनों अर्थों में तुम्हारा स्नेह चाहिए। प्रेम के अर्थों में और तेल के अर्थों में, ताकि यह मशाल जले। अंधेरे की बिलकुल चिंता न करो। अंधेरे का क्या भय! सारी चिंता, सारी जीवन ऊर्जा प्रकाश के बनाने में नियोजित कर देनी है और प्रकाश तुम्हारे भीतर है, कहीं बाहर से लाना नहीं है। सिर्फ  छिपा पड़ा है, उघाड़ना है। सिर्फ  दबा पड़ा है थोड़ा कूड़ा-कर्कट हटाना है। मिट्टी में हीरा खो गया है जरा तलाशना है। प्रकाश के दुश्मन भी बहुत हैं सदा से हैं, कोई नई बात नहीं। मगर क्या कर पाए प्रकाश के दुश्मन प्रकाश के दुश्मन खुद दुःख पाते हैं और क्या कर पाते हैं। जिन्होंने सुकरात को जहर दिया तुम सोचते हो सुकरात को दुखी कर पाए, नहीं असंभव! खुद ही दुःखी हुए, खुद ही पश्चाताप से भरे खुद ही पीडि़त हुए। सुकारात को सूली की सजा देने के बाद न्यायाधीश सोचते थे कि सुकरात क्षमा मांग लेता। क्षमा मांग लेता तो हम क्षमा कर देते। क्योंकि यह आदमी तो प्यारा था, चाहे कितना बगावती हो इस आदमी की गरिमा तो थी। असल में सुकरात जिस दिन बुझ जाएगा, उस दिन एथेंस का दीया भी बुझ जाएगा। यह भी उन्हें पता था। सुकरात की मौत के बाद एथेंस फिर कभी ऊंचाइयां नहीं पा सका। आज क्या है एथेंस की हैसियत? आज एथेंस की कोई हैसियत नहीं है। इन अढ़ाई हजार सालों में सुकरात के बाद एथेंस ने फिर कभी गौरव नहीं पाया, कभी फिर स्वर्ण नही चढ़ा एथेंस पर और सुकरात के समय में एथेंस विश्व की बुद्धिमता की राजधानी थी। विश्व की श्रेष्ठतम प्रतिभा का प्राकट्य वहां हुआ था। एथेंस साधारण नगर नहीं था, जब सुकरात जिंदा था। सुकरात की ज्योति से ज्योतिर्मय था, जगमग था। अपने मन की गहराइयों में झांक कर देखो, उस प्रकाश रूपी ज्योति की झलक तुम्हें अपने भीतर ही दिखाई देगी। जिसकी तलाश में तुम बाहर  भटक रहे हो। जरूरत है तो बस अपने अंतर्मन में झांकने की।


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