कोरोना काल में सुरक्षा और शिक्षा, प्रो. मनोज डोगरा, लेखक हमीरपुर से हैं

By: Jun 25th, 2020 12:06 am

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प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं

डिजिटल पढ़ाई के विकल्प पर एक सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या यह डिजिटल शिक्षा सभी विद्यार्थियों तक पहुंच पा रही है या नहीं, क्योंकि हिमाचल एक ऐसा भौगोलिक विभिन्नता वाला प्रदेश है जिसके ऊंचाई वाले व दुर्गम क्षेत्रों में कॉल करने तक का सिग्नल नहीं होता है। ऐसे में इंटरनेट स्पीड के लिए सिग्नल होना एक सपने के बराबर है। साथ में ही गरीब लोगों के पास मोबाइल फोन तक नहीं हैं या किसी के पास है तो उनके घर में केवल एक मोबाइल फोन है, पढ़ने वाले बच्चे दो हैं और खुद भी मोबाइल प्रयोग करना है। इसके कारण पढ़ाई में दिक्कत आना तय है…

कोरोना के साथ शिक्षा की बात करें तो शिक्षा क्षेत्र कोरोना के चलते बहुत प्रभावित हुआ है। आने वाले समय में शिक्षा विभाग के सामने इस नुकसान से उबरना एक बड़ी चुनौती होगी। कोरोना महामारी के चलते देश में लॉकडाउन होने से पूर्व ही देश-प्रदेश में सबसे पहले जो संस्थान बंद किए गए थे, वे शिक्षण संस्थान ही थे। यह सुरक्षा के नजरिए से सरकार का एक सराहनीय कदम था क्योंकि इन संस्थानों में अत्यधिक भीड़ या कहा जाए तो विद्यार्थियों की संख्या रहती है जिस कारण अगर कोई व्यक्ति संक्रमित होता तो उस पूरी संस्था के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता था। डिजिटल शिक्षा को वर्तमान समय में अपनाया जा रहा है। ऑनलाइन शिक्षा विकल्प को अपनाने के सिवाय इस समय कोई अन्य विकल्प शिक्षा विभाग के पास उपलब्ध नहीं है। साथ में ही बात अगर कालेज विद्यार्थियों की शिक्षा की करें तो इनका तो भविष्य ही कोरोना के चलते अधर में अटक गया है। अभी कालेज विद्यार्थियों की वार्षिक परीक्षाएं होनी थीं जिसके बाद अंतिम वर्ष के छात्रों ने अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं देनी थीं, लेकिन अभी तो कालेज की परीक्षाएं ही होती नजर नहीं आ रही हैं। यहां तक कि कई विश्वविद्यालयों ने तो प्रथम व द्वितीय वर्ष के छात्रों को सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पदोन्नत करने का फैसला ले लिया है, लेकिन तब भी अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षाएं करवाना शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी  चुनौती होगी क्योंकि परीक्षा करवाते समय भी शारीरिक दूरी, सेनेटाइजेशन व मास्क इत्यादि की ओर विशेष ध्यान देना होगा। वर्तमान की परिस्थितियों को देखकर परीक्षाएं करवाना संभव नहीं लग रहा है तथा छात्रों की स्वास्थ्य रक्षा हेतु यह आवश्यक भी है।

यह तो बात रही परीक्षाएं करवाने की, लेकिन स्कूली स्तर की शिक्षा की ओर ध्यान दें तो डिजिटल माध्यम से पढ़ाई करवाई जा रही है। इस डिजिटल पढ़ाई के विकल्प पर एक सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या यह डिजिटल शिक्षा सभी विद्यार्थियों तक पहुंच पा रही है या नहीं, क्योंकि हिमाचल एक ऐसा भौगोलिक विभिन्नता वाला प्रदेश है जिसके ऊंचाई वाले व दुर्गम क्षेत्रों में कॉल करने तक का सिग्नल नहीं होता है। ऐसे में इंटरनेट स्पीड के लिए सिग्नल होना एक सपने के बराबर है। साथ में ही गरीब लोगों के पास मोबाइल फोन तक नहीं हैं या किसी के पास है तो उनके घर में केवल एक मोबाइल फोन है, पढ़ने वाले बच्चे दो हैं और खुद भी मोबाइल प्रयोग करना है। इसके कारण पढ़ाई में दिक्कत आना तय है, जिसको देखते हुए सरकार ने ई-पाठशाला भी आरंभ की है जिसमें दूरदर्शन पर कक्षाएं लगेंगी। लेकिन सोचने की बात है कि जिसके पास मोबाइल फोन नहीं है, क्या उसके पास टीवी होगा? बात अगर इन माध्यमों से ही उत्पन्न समस्याओं की करें तो आने वाले समय में स्पष्ट है कि शिक्षा क्षेत्र में बडे़ सुधारों की आवश्यकता रहेगी क्योंकि कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 से आर्थिक एवं शिक्षा के क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। देश के लोगों की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अर्थ के बिना काम नहीं चल सकता। इस अर्थ का देश में अभाव एवं अति प्रभाव भी न हो, यह कार्य बिना शिक्षा के संभव नहीं। पिछले दो-अढ़ाई माह से अधिक समय से देश के सभी शैक्षणिक संस्थान ठप हैं। ऑनलाइन शिक्षा समाधान भी है और चुनौती भी है। इसे किस प्रकार समझना है, यह एक बहुत बड़ा सवाल शिक्षा जगत के सामने कोरोना संकट ने खड़ा कर दिया है। महामारी के प्रकोप के चलते विश्वविद्यालयों में शोध-अनुसंधान कार्य बंद हैं। छात्रों के व्यक्तित्व के समग्र विकास हेतु चलने वाली खेल, सांस्कृतिक गतिविधियां, कला संबंधी कार्यक्रम आदि भी रुके हुए हैं। कोरोना का यह संकट जल्दी समाप्त होने वाला नहीं है। विश्व में यह मत बन रहा है कि कोरोना भी चलेगा और जिंदगी भी। हमारे देश में शिक्षा क्षेत्र में लंबे समय से ऑनलाइन शिक्षा की बात चर्चा में रहती थी जो अब कोरोना महामारी से व्यवहार में आई है। ऑनलाइन शिक्षा को चलाने के लिए कुछ छुटपुट प्रयास हुए, परंतु इस महामारी के कारण आज बड़े पैमाने पर ऑनलाइन शिक्षा प्रारंभ होनी चाहिए थी, वह तकनीकी  समस्याओं से नहीं हो पाई या कहें तो विद्यार्थियों को डिजिटल माध्यम से शिक्षा प्राप्त करना एक चुनौती बन गई है। इस चुनौती में विद्यार्थियों को आ रही समस्याओं से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। इस समय विद्यार्थियों को आ रही समस्याओं से प्रत्येक व्यक्ति भली-भांति परिचित है, जिसकी वजह से कई प्रदेशों द्वारा इस समस्या से बचने के लिए गर्मियों की छुट्टियों को अभी तत्काल  प्रभाव से लागू करना पड़ा ताकि कोरोना के समाप्त होते ही क्रमबद्धता से शिक्षा को सुचारू किया जा सके। लेकिन विभाग को ऐसी व्यवस्थाएं करनी होंगी जिससे कि शारीरिक दूरी की आवश्यकता भी पूरी हो जाए और ट्रैफिक भी कम रहे। वाहन कम चलने से प्रदूषण भी कम होगा और साथ में ही ऑनलाइन शिक्षा की जो समस्याएं हैं, उनका समाधान दो माह में ढूंढना होगा। इसके लिए शिक्षकों का शिक्षण करना आवश्यक होगा। गांवों, जनजातीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी की समस्या होगी, यह तय है। साथ में ही गरीब छात्रों को मोबाइल डाटा खर्च की भी समस्या हो सकती है। इन सबके समाधान की तैयारी के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ऑनलाइन शिक्षा मातृभाषा में ही दी जाए। साथ में ही लंबे समय से शिक्षण संस्थान बंद होने के कारण कोरोना संकट के चलते छात्र भी तनाव में हैं। उनके सामने स्वास्थ्य का संकट भी है। इसके लिए स्वास्थ्य एवं योग शिक्षा को हर स्तर पर अनिवार्य करना होगा। उधर प्रधानमंत्री ने देश के स्वावलंबन एवं स्थानीय उत्पादों को महत्त्व देने की बात कही है। इसके लिए हमारे अर्थशास्त्र के पाठ्यक्रम में स्वदेशी एवं स्वावलंबन का समावेश करना होगा।


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