घर में आयुर्वेद

By: Jun 12th, 2020 11:00 am

– डा. जगीर सिंह पठानिया

सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक,

आयुर्वेद, बनखंडी

हरड़ के औषधीय गुण

हरड़ का वृक्ष काफी बड़ा होता है जो कि प्रायः सारे भारत वर्ष में पाया जाता है। औषधि में इसके फल का प्रयोग किया जाता है। इसका हिंदी नाम हरड़, संस्कृत नाम हरीतकी तथा बोटेनिकल नाम टर्मिनेलीआ चेबुला है। इसमें चेबुलिक एसिड व ग्लाइकोसाइड रासायनिक तत्त्व पाए जाते हैं।

मात्रा : 3 से 6 ग्राम चूर्ण रूप में।

गुण व कर्मः हरड़ दस्तकारक, पेट दर्द निवारक, दीपन पाचक, रोगप्रतिरोधी क्षमता वर्धक व दिल दिमाग के लिए टॉनिक के रूप में कार्य करती है।

मलबंध में- हरड़ नई व पुराणी कब्ज को दूर करती है। 3 से 6 ग्राम चूर्ण गर्म पानी के साथ लिया जा सकता है। रोगी के बल व आयु के अनुसार मात्रा निर्धारण की जानी चाहिए।

मुख स्वाद के लिए- कई बार रोगी या किसी अन्य व्यक्ति के मुख में कोई स्वाद न हो, तो इसका 2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेना चाहिए।

अपचन व क्षुधा वर्धक  में- हरड़ अपचन को दूर करती है, भूख को बढ़ाती है तथा खाए हुए भोजन का पाचन करती है। यह वातानुलोमक भी है तथा अफारा को भी दूर करती है।

बवासीर में– हरड़ चूर्ण का सेवन करने से कब्ज दूर हो जाती है। इसका कुछ दिन सेवन करने से बवासीर की दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।

रोगप्रतिरोधी क्षमता वर्धक- हरड़ के नियमित प्रयोग से रस रक्तादि धातुओं की वृद्धि होती है, जिस से शरीर में रोगप्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ती है तथा कोई भी बीमारी बार-बार आक्रमण नहीं कर सकती। हरड़ दिल व दिमाग की टॉनिक के रूप में भी कार्य करती है।हरड़ के कई शास्त्रीय योग भी हैं जो की प्रायः हर दवा विक्रेता के पास उपलब्ध हो जाते हैं, जिनमें से तीन प्रमुख हैं।

त्रिफला चूर्ण -हरड़ बहेड़ा आंवला का गुठली रहित बराबर मात्रा में चूर्ण पेट के रोगों, प्रमेह व आंखों के रोगों में प्रयोग किया जाता है।

त्रिफला घृत- 10 से 12 ग्राम मात्रा में घृत गर्म दूध में डाल कर लेना चाहिए। इसका प्रयोग पीलिया, मोतियाबिंद, आंखों के रोगों व बाल झड़ने पर उपयोगी है।

अभयारिष्ट- इसका प्रयोग कब्ज, बवासीर व पेट के रोगों में प्रयोग किया जाता है।


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