हिमाचल का साहित्यिक माहौल और उत्प्रेरणा

By: Jun 21st, 2020 12:06 am

मो.- 9418010646

साहित्य के कितना करीब हिमाचल-7

अतिथि संपादक: डा. हेमराज कौशिक

हिमाचल साहित्य के कितना करीब है, इस विषय की पड़ताल हमने अपनी इस नई साहित्यिक सीरीज में की है। साहित्य से हिमाचल की नजदीकियां इस सीरीज में देखी जा सकती हैं। पेश है इस विषय पर सीरीज की सातवीं किस्त…

विमर्श के बिंदु

* हिमाचल के भाषायी सरोकार और जनता के बीच लेखक समुदाय

* हिमाचल का साहित्यिक माहौल और उत्प्रेरणा, साहित्यिक संस्थाएं, संगठन और आयोजन

* साहित्यिक अवलोकन से मूल्यांकन तक, मुख्यधारा में हिमाचली साहित्यकारों की उपस्थिति

* हिमाचल में पुस्तक मेलों से लिट फेस्ट तक भाषा विभाग या निजी प्रयास के बीच रिक्तता

* क्या हिमाचल में साहित्य का उद्देश्य सिकुड़ रहा है?

* हिमाचल में हिंदी, अंग्रेजी और लोक साहित्य में अध्ययन से अध्यापन तक की विरक्तता

* हिमाचल के बौद्धिक विकास से साहित्यिक दूरियां

* साहित्यिक समाज की हिमाचल में घटती प्रासंगिकता तथा मौलिक चिंतन का अभाव

* साहित्य से किनारा करते हिमाचली युवा, कारण-समाधान

* लेखन का हिमाचली अभिप्राय व प्रासंगिकता, पाठ्यक्रम में साहित्य की मात्रा अनुचित/उचित

* साहित्यिक आयोजनों में बदलाव की गुंजाइश, सरकारी प्रकाशनों में हिमाचली साहित्य

डा. विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’

 मो.-9811169069

हिमाचल प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में प्रदेश का साहित्यिक माहौल बहुत ही विचारोत्तेजक एवं विमर्श का विषय है जिसका सीधा-सीधा संबंध हिमाचल में साहित्य के लेखन से जुड़ा है। इस संदर्भ में मेरे कुछ प्रश्न हैं। हो सकता है कि कुछेक को नागवार गुजरे, पर इन विषाणुओं को कालीन के नीचे दबा देना विवेकहीन सरोकार होगा जो साहित्य से जुड़ी विसंगतियों को बल ही प्रदान करेगा, उनका निदान नहीं। वृहद हिमाचल का गठन एक नवंबर 1966 को हुआ। पुनर्गठन से पूर्व ही सबसे बड़ी विसंगति प्रदेश में भाषा को लेकर पनपी जिसका वास्तविक समाधान आज तक भी नहीं हो पाया है। पुनर्गठन में जोर-शोर से पहाड़ी भाषा पर मंथन हुआ ताकि भाषा के आधार पर वृहद हिमाचल का गठन हो सके। उस समय हमसे वृहद प्रदेश बनने के आनंदातिरेक में ग्रंथ अकादमी लेने का प्रस्ताव दरकिनार हो गया। हिमाचल में हिंदी भाषा के उत्थान के रास्ते हमने स्वयं बंद कर दिए जिसके लिए केंद्रीय सरकार सभी राज्यों को एक करोड़ रुपए दे रही थी जो उस समय काफी बड़ी राशि थी। नतीजा ‘न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे’- तात्पर्य कि न तो पहाड़ी भाषा शेड्यूल आठ में सुरक्षित हुई, न ही हिंदी के अस्तित्व एवं प्रचार-प्रसार को ग्रंथ अकादमी जैसी मूलभूत संस्था की सेवाएं मिली जो प्रदेश में लिखे जा रहे साहित्य के लिए एक मील का पत्थर साबित होती।

मुझे कहने में संकोच नहीं कि प्रदेश की भाषा अकादमी प्रदेश में भाषा एवं संस्कृति का समुचित माहौल देने में असमर्थ है। प्रदेश में जिस राजनीतिक पार्टी की सरकार बनती है, उसी पार्टी के राजनीतिज्ञ और उनके हितैषी अकादमी का अपहरण कर लेते हैं। पितृसत्तात्मक हठधर्मितानुसार अकादमी के कर्ताधर्ता उनके आदेशों की पालना करने को बाध्य होते हैं। हिमाचल में हम आज तक भी यह तय नहीं कर पाए कि हमारी राष्ट्रीय पहचान किस भाषा में अपेक्षित है। पहाड़ी भाषा का दायरा बहुत छोटा है, मैं पहाड़ी के प्रचार-प्रसार के विरुद्ध नहीं, मैं पुश्तों से पुराने हिमाचल का निवासी हूं, पर राष्ट्रीय स्तर पर मैं समझता हूं कि हिंदी में उत्कृष्ट स्थान बनाने के बाद ही अगर पहाड़ी भाषा के लिए प्रयत्न किए जाते तो बहुत सार्थक नतीजे निकलते। परिणामस्वरूप हिंदी भाषा के प्रदेश में ही साहित्यिक माहौल बनाने में बहुत देर हो गई। इसी संदर्भ में आगे अगर मैं यह भी कहूं कि संगठित तौर पर अस्सी के दशक में माहौल बनना शुरू हुआ तो यह असत्य नहीं होगा। हिंदी में लेखन शुरू करते ही मेरी पहली प्राथमिकता रही कि हिंदी साहित्यिक समाज को जोड़ा जाए, चाहे वो किसी भी ‘वाद’ से जुड़े हों। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मैंने हमारी सामाजिक संस्था ‘नवल प्रयास’ का पुनर्गठन किया और सामाजिक दायित्वों के साथ-साथ कला, भाषा, संस्कृति एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार एवं साहित्यिक आयोजनों/सम्मान समारोहों की ओर मोड़ दिया।

नवल प्रयास के आयोजन देश के विभिन्न बड़े शहरों में- शिमला, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि में- दूसरी साहित्यिक संस्थाओं के संयुक्त तत्त्वावधान में भी किए गए। जाने-माने साहित्यकारों से मेरा उठना-बैठना है और कइयों से घनिष्ठ आत्मीय संबंध भी। हिमाचल के बहुत से साहित्यकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, जो हर्ष का विषय है। हिमाचल में उचित साहित्यिक माहौल बनाने के लिए मेरा मानना है कि अगर हिमाचल में पंजीकृत साहित्यिक संस्थाएं एकजुट हो साहित्यिक आयोजन आयोजित करें तो प्रदेश की आने वाली पीढ़ी में समुचित साहित्यिक उत्प्रेरणा सृजित की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर नवल प्रयास ने साहित्यकार हरनोट जी की संस्था व हिमाचल अकादमी के साथ मिल कर दिसंबर 2017 में एक कहानी एवं काव्य समारोह का आयोजन गेयटी थियेटर में आयोजित किया और स्कूल-कालेज के कुछ विद्यार्थियों को भी निमंत्रित किया। इस अभूतपूर्व आयोजन की सफलता देखते हुए नवल प्रयास शिमला ने 12 मई, 2018 को शिमला के दयानंद पब्लिक स्कूल में, साहित्य की विभिन्न विधाओं में, एक दिवसीय राज्य स्तरीय साहित्य एवं सम्मान समारोह आयोजित किया जो 12 घंटे अनवरत चला। इसमें स्कूली बच्चों की काव्य प्रतियोगिता, कहानी सत्र, सम्मान सत्र एवं 10 खंडों में काव्य सत्र का भव्य आयोजन हुआ जिसमें 16 साहित्यकारों को सम्मान राशि सहित सम्मानित किया गया।

इस सबके पीछे मेरी कहने की मंशा यह नहीं कि संस्था ने क्या किया, आशय है कि इस प्रकार के भव्य एवं निष्पक्ष आयोजन के बिना साहित्य को आमजन से नहीं जोड़ा जा सकता। आशय तो ये भी है कि प्रदेश में एक साहित्य पत्रिका का प्रकाशन किया जाए और नए लेखकों की पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए कुछ अनुदान का प्रबंध भी किया जाए। …और संस्था अपने स्तर पर यह सब करने को प्रयासरत भी है।


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