मंदार पर्वत
धार्मिक ग्रंथों में समुद्र मंथन का विस्तार से वर्णन है। ऐसा कहा जाता है कि जब राजा बलि तीनों लोकों के स्वामी बन गए थे। उस समय स्वर्ग के देवता इंद्र सहित सभी देवताओं और ऋषियों ने भगवान विष्णु जी से तीनों लोकों की रक्षा के लिए याचना की। तब भगवान विष्णु जी ने उन्हें समुद्र मंथन करने की युक्ति दी। भगवान नारायण ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, जिसके पान से आप देवता अमर हो जाएंगे। कालांतर में क्षीर सागर में वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए थे। भगवान शिव जी ने विष का पान किया, तो देवताओं ने अमृत पान किया। इसके बाद दानवों और देवताओं के बीच महासंग्राम हुआ। इस युद्ध में देवताओं को विजय प्राप्त हुई। कालांतर में जिस मंदार पर्वत से समुद्र मंथन हुआ है। वह वर्तमान में बिहार राज्य के बांका जिले में अवस्थित है। मंदार पर्वत के पृथ्वी पर अवस्थित होने की भी अनोखी कथा है। आइए जानते हैं।
चिरकाल में मधु और कैटभ नामक दो दैत्य थे। जो आसुरी प्रवृति के थे। इनके अत्यचार और दुःसाहस से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। इसके बाद भगवान विष्णु जी ने दोनों का वध कर दोनों के धड़ को दो विपरीत दिशा में फेंक दिया। हालांकि, धड़ एकजुट होकर फिर से मधु और कैटभ बन गए और तीनों लोकों में अपना आतंक मचाना शुरू कर दिया। इसके बाद भगवान विष्णु जी ने आदिशक्ति का आह्वान किया और मां दुर्गा ने दोनों का विध किया। कालांतर में भगवान श्रीहरि विष्णु जी ने मधु और कैटभ को पृथ्वी लोक पर लाकर मंदार पर्वत के नीचे उन्हें दबा दिया, ताकि वह फिर से उत्पन्न न हो सके। तब मधु और कैटभ ने मकर संक्रांति के दिन उनसे दर्शन देने का वरदान मांगा। दानवों के इस वरदान को विष्णु जी ने स्वीकार कर लिया। कालांतर से भगवान नारायण मकर संक्रांति के दिन मंदार पर्वत दानवों को दर्शन देने आते हैं।
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