मुझे इस देश में मास्क लगाकर आना पड़ा

By: Jun 21st, 2020 12:04 am

 व्यंग्य

मृदुला श्रीवास्तव, मो.-9418539595

अब तक आपने पढ़ा: कोरोना शमशानी भारत में घुस आए हैं। फटीचर टाइम्स के संपादक उनसे जानना चाहते हैं कि वह किस उद्देश्य से आए हैं और कब तक वापस जाएंगे। अब उससे आगे की कहानी पढ़ें:

-गतांक से आगे…

‘अरे जनाब आपकी पत्नी हो सकती है तो मेरी क्यों नहीं? मेरी पत्नी का नाम कोविदाबानो है। शी इज वेरी स्मार्ट एंड ब्यूटीफुल वायरस। उसके चीनी पिता ने हमारे ब्याह के समय 19 रुपए का शगुन मेरे हाथ पर रखा था, इसलिए मैं उसको कोविदा-19 के नाम से बुलाता हूं। मेरी पत्नी मेरी कंपनी की चीफ  एडवाइजर है। इसलिए उसे भी फील्ड में रहना पड़ता है।’ कोरोना शमशानी पान चबाते मोबाइल को एक कान से हटाते दूसरे कान पर लगाते आगे बोला। ‘आप मेरा स्टेटस पूछेंगे तो आप मुझे बस अपनी पत्नी की जगह रखें।’ ‘क्या मतलब सर।’ ‘मतलब ये कि जब आप ब्याह कर अपनी पत्नी को घर लाए थे तो आपको लगा था कि अरे ये तो बीवी है, इसकी क्या बिसात कि चूं भी करे। आपको लगा था कि इसे तो कंट्रोल करना बहुत आसान है। पर चार ही महीने बीते होंगे कि…। आपकी पत्नी ने आपको वैसी ही पलटी देनी शुरू की होगी जैसी मैं आज हर पति टाइप डरे हुए इनसान को दे रहा हूं। और अब पत्नी है कि जाने का नाम ही नहीं लेती और अब आप उसके साथ देखिए न कितने खुश हैं। और अपनी जिंदगी काट रहे हैं। मतलब पत्नी को आपने अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया है। और देखिए न मुझे पता चला था कि पिछले दिनों आपने अपनी शादी की पैंतीसवीं सालगिरह तक मना डाली। मेरी सालगिरह भी आपको कुछ ऐसे ही मनानी पड़ेगी।’

शमशानी जी कुछ रुके तो संपादक जी बोल पड़े ‘तो क्या आपका प्लान इधरिच 35 साल टिकने का है?’ ‘अरे नहीं मैं तो ग्रास रूट लेवल की बात समझाने की कोशिश कर रहा था।’ ‘अब स्टेटस के अगले मुद्दे पर आते हैं’ – अब शमशानी जी आगे बोले – ‘भटनागर जी कोरोना को आपने समझा क्या है? आपने अपनी पत्नी का तो मजाक बना दिया, पर मैं इतना सरल नहीं। आप पिछले छह महीने से मुझे बेहद हल्के से लेते रहे। और बस गाते रहे- सावन आयो रे, होली आयो रे, की तरह ‘कोरोना आयो रे कोरोना आयो रे।’ और अब डर रहे हो, कह रहे हो, जा रे जा हो हरजाई। अरे भैया, मैं हरा-भरा सावन नहीं आषाढ़ का चक्रवाती तूफान हूं। इतनी आसानी से जाने वाला नहीं। बता दूं कोरोना शमशानी भी अपनी चीनी मां का सगा बेटा है। इसलिए मेरी इम्युनिटी बहुत स्ट्रांग है। आप अपनी इम्युनिटी स्ट्रांग बनाएंगे तो निभ जाएगा। वरना भूल जाओ कि मैं जाऊंगा। अभी तो आप जानते हैं कि मैं मैन टू मैन ट्रांसमिट हो रहा हूं। पर वो दिन दूर नहीं कि जब मैं कुत्ते-बिल्ली के अलावा मोबाइल और केबल की वायर के थ्रू भी ट्रांसमिट होना शुरू हो जाऊंगा। जिस चीज में ज्यादा रमोगे मैं वहीं उपस्थित रहूंगा।’ ‘नहीं नहीं कोरोना सर, हम आपको ठीक करने का इलाज ढूंढ रहे है।’ संपादक डर सा गया। ‘मुझे ठीक करने का इलाज? अरे तुम लोग मुझे क्या ठीक करोगे। ठीक करने तो मैं आया हूं तुम लोगों को। जानते हो न कि तुम लोग इस सदी में आते-आते अपने संस्कार, संस्कृति, सफाई-सुथराई सब कुछ भूल रहे थे। गंदे जूते पहने अंदर घुसे चले जाते थे। बिना साबुन से हाथ धोए हर कुछ किया तुमने। खांसते-छींकते समय कभी हाथ मुंह पर नहीं धरा। बस लिया और धम्म से छींक दिया। पान खाओ इधर थूको। खैनी खाओ उधर थूको। बलगम आए गले में, तो कहीं भी डिजाइन बना दो। सड़क न हो गई खाला जी का घर हो गया। जिधर चाहें आक थू। आक छीं। और तो और वहां भी थूकते थे जहां लिखा होता था ‘यहां थूकना मना है।’ मतलब मुझे तो शर्म आ रही थी। चीन और  इटली, अमरीका घूमकर आने के बाद तुम्हारे इस देश में आते हुए चीन-अमरीका तो मुझे फिर भी जंचे, पर तुम्हारे देश में आते समय तो मुझे खुद को ही मास्क लगाना पड़ा। सेनेटाइज करना पड़ा खुद को। ग्लब्ज पहनने पड़े। तब कहीं जाकर मैं यहां सरवाइव कर पा रहा हूं। पर यह सही है।

मेरे सरवाइवल के लिए यह देश मुझे बेहद बढि़या भी लगा। सो मैंने प्लान बना लिया कि कब कैसे आगे बढ़ना है। मैंने शुरुआत केरल से की। फिर इसे मारा उसे मारा। बीस, चालीस, पांच सौ और अब हजारों में। मैं काफी प्रगति पर हूं। पर सर्वव्यापी हूं। जब मैंने देखा कि तुम लोगों की सुधरने की स्पीड बहुत कम है तो हमारी कंपनी ने अपना तांडव दिखाना शुरू कर दिया।’ कोरोना शमशानी बिना संपादक महोदय की प्रतिक्रिया सुने एक तरफा बोले जा रहे थे। ‘अब देखो न। तुम लोग ट्रेन के डिब्बे और रेलवे स्टेशन की सीढि़यां तक भी नहीं छोड़ते। बलगम इधर चिपका। नाक का मल उधर चिपका। तुमने सुना ही होगा ‘यदा यदा हि धर्मस्य…। इस शताब्दी में मेरा आना इसी तरह का है। कृष्ण न सही कोरोना सही। भगवान तो फिर किसी भी रूप में आ सकते हैं। हालांकि ज्यादा दिन नहीं रुकूंगा मैं यहां, बस यही एक-दो साल का प्लान है मेरा। जिसे मुझे तुम्हारे और अपने लिए यादगार बनाना है मुझे। अभी भी सुधर जाओ पार्थ, वरना तुम बहुत पछताओगे। अभी पत्नी जी कोविदा बानो-19 साइट पर गई हुई हैं। उनका टारगेट आज कम से कम एक दिन में 300 को स्वर्ग पहुंचाने का है। कल मैं जाऊंगा, मेरा टारगेट 4000 का है। नोट कर लीजिए भटनागर जी मेरा यह भी डाटा। अभी तो बहुत बढ़ेगा। कुल मिलाकर मैं आया हूं आपको याद दिलाने आपको आपकी संस्कृति, इतिहास और संस्कार।…अब पूछिए और क्या पूछना चाहते थे आप।’ कोरोना शमशानी अब खुद को थका सा महसूस कर रहे थे।        -क्रमशः


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