मुख्यधारा में हिमाचली साहित्यकारों की उपस्थिति

By: Jun 28th, 2020 12:03 am

अरुण कुमार शर्मा, मो.- 8988316100

हिमाचल प्रदेश के साहित्यकारों में चंद्रधर शर्मा गुलेरी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। यह निर्विवाद है कि हिमाचल प्रदेश में हिंदी कहानी की शुरुआत चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘सुखमय जीवन’ से होती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने गुलेरी जी को अमर कथा शिल्पी कहा है। उनकी कहानी ‘उसने कहा था’ कथा जगत का ऐसा अनमोल रत्न है जिसे विश्व कथा साहित्य की चुनिंदा और आकर्षक रचनाओं में सम्मिलित किया गया है। गुलेरी जी के बाद क्रांतिकारी यशपाल के रूप में दूसरा व्यक्तित्व हिंदी साहित्य के राष्ट्रीय फलक पर प्रकाश में आया। राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकार निर्मल वर्मा का संबंध भी हिमाचल से रहा है। इसीलिए उनकी रचनाओं में  हिमाचली परिवेश की अनुगूंज सहज ही पाठकों को मिल जाती है। हिंदी साहित्य में इन लेखकों का अविस्मरणीय  योगदान है और मुख्यधारा में इनकी उपस्थिति सदैव बनी रही है। यद्यपि हिमाचल में देश के अन्य प्रांतों के रचनाकारों के साथ ही निरंतर सृजनात्मक कार्य होता रहा है, परंतु साहित्य इतिहास में गुलेरी, यशपाल और निर्मल वर्मा को छोड़ किसी साहित्यकार का उल्लेख नहीं किया गया है। यशपाल के बाद हिमाचल के साहित्य में  योगेश्वर गुलेरी का आगमन हुआ। सन् 1947 से लेकर 1952 की  अवधि में उनकी रचनाएं विशाल भारत, नया समाज, सरस्वती आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। स्वतंत्रता के बाद प्रारंभिक दौर के रचनाकारों में खेमराज गुप्त, किशोरी लाल वैद्य, आरसी शर्मा, श्रीनिवास श्रीकांत प्रभृति रचनाकार अपनी लेखनी के बल पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। इन्हीं के समकालीन हिमाचल में कहानी लेखन परंपरा में सुंदर लोहिया और योगेश्वर शर्मा ने  प्रेमचंद की कहानी परंपरा को आगे बढ़ाया। इसी बीच रत्न सिंह हिमेश का नाम भी हिमाचल के वरिष्ठ साहित्यकारों में शुमार हुआ और किशोरीलाल वैद्य, ताराचंद संतोषी, आरसी शर्मा आदि अनेक कहानीकार अपनी कहानी विधा की मौलिक शैली को लेकर प्रकाश में आए। हिमाचल हिंदी कहानी लेखन के क्षेत्र में साठ के दशक में कृष्ण कुमार नूतन चर्चित साहित्यकार रहे। हिमाचली कहानी के सातवें दशक में सुशील कुमार फुल्ल की गद्दियों के जनजीवन पर कहानी ‘बढ़ता हुआ पानी’ प्रकाशित हुई। इसके उपरांत विजय सहगल, केशव, श्रीनिवास जोशी, महाराज कृष्ण काव तथा अनेक रचनाकारों की कहानियां राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं।

कुल मिलाकर सन् 1961 से कहानी जगत में हिमाचल की हिंदी कहानी की सक्रिय उपस्थिति बनी हुई है। हिमाचल के कथा साहित्य में नौवां दशक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसी दशक में सुशील कुमार फुल्ल ने हिंदी कहानी के सौ वर्ष (हिमाचल भाषा कला  संस्कृति  अकादमी ) कहानियों का संपादन किया। परंतु यह विडंबना ही कही जाएगी कि हिमाचल के कहानीकारों की कहानियां गत 60 वर्षों से बड़े गिने जाने वाले लेखकों के समकक्ष उन्हीं बड़ी पत्रिकाओं में छपती रही हैं जिनमें दूधनाथ सिंह, गोविंद मिश्र, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, रविंद्र कालिया आदि की रचनाएं छपती थीं। लेकिन हिमाचली लेखकों का उल्लेख उसमें नगण्य ही रहा। शांता कुमार, संतोष शैलजा, सरोज परमार, रेखा वशिष्ठ, गंगाराम राजी, गुरमीत बेदी, पीयूष गुलेरी, कैलाश आहलूवालिया, साधु राम दर्शक, सत्यपाल शर्मा, पीसीके प्रेम, जयदेव विद्रोही,  त्रिलोक मेहरा,  रत्न चंद रत्नेश,  आचार्य भगवान देव चैतन्य, मदन गुप्ता स्पाटू, प्रत्यूष गुलेरी आदि अनेक रचनाकारों ने हिंदी साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध  किया है। चंद्ररेखा ढडवाल व हंसराज भारती ने कविता के साथ कहानी के क्षेत्र में अपनी पहचान बरकरार रखी है। रजनीकांत, मुरारी शर्मा निरंतर कहानियां लिखे रहे हैं एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छप रहे हैं। बद्री सिंह भाटिया, अरुण भारती, राजेंद्र राजन ने कहानी लेखन में नाम कमाया है। आज प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने वाले राज कुमार राकेश, सुदर्शन वशिष्ठ एवं एसआर हरनोट सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनकी कहानियां देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छप रही हैं। कविता के क्षेत्र में प्रदेश के कवियों की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान की बात की जाए तो ओप्रकाश सारस्वत, गौतम व्यथित, कुमार कृष्ण, वरयाम सिंह, सतीश धर, अनूप सेठी, मधुकर भारती, दीनू कश्यप, तेज राम शर्मा आदि ने कविताओं के माध्यम से हिंदी कविता को नई दिशा देने का स्तुत्य कार्य किया है। उनके साथ ही साथ डा. कुंवर दिनेश, राजीव त्रिगर्ती, गणेश गनी, अजय, सुरेश सेन निशांत व आत्मा रंजन ने कविताओं के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। इसी समय में मस्तराम कपूर वरिष्ठ कथाकार, नाटककार, निबंध लेखक के रूप में चर्चित हुए। हिमाचल प्रदेश में व्यंग्य लेखन की बात की जाए तो व्यंग्य को मुख्यधारा से जोड़ने में अशोक गौतम, गुरमीत बेदी, अजय पराशर सफल रहे हैं। गज़ल को मुख्यधारा में शामिल करने में नलिनी विभा नाज़ली, विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’, मुनीश तन्हा व द्विजेंद्र द्विज प्रमुख हैं। समीक्षा के क्षेत्र में डा. सुशील कुमार फुल्ल व डा. हेमराज कौशिक के नाम उल्लेखनीय हैं।


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