हिमाचल के कंधे पर श्रीनगर

By: Jul 3rd, 2020 12:05 am

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय ने एक अद्भुत सूचना पट्ट खड़ा करके यह साबित कर दिया कि शिक्षा कक्ष अब भविष्य की कल्पनाओं का मानचित्र भी बनाएंगे। धर्मशाला केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग ने ऊना-धर्मशाला,भद्रवाह,अनंतनाग से सीधे श्रीनगर को जोड़ते मानचित्र का रेखांकन कुछ इस तरह किया है कि भूतल परिवहन मंत्रालय भी अपनी प्राथमिकताएं भूल कर सीधे इसी परियोजना पर जुट जाए। ऐसा हो जाए तो यह हिमाचल के कंधे पर देश का नया नक्शा रख देगा। हालांकि ऐसे कई अन्य मानचित्र दशकों से केंद्रीय प्राथमिकताओं का पीछा कर रहे हैं,लेकिन हिमाचल से गुजरते लेह मार्ग पर स्थिति अस्पष्ट है। न पठानकोट- मंडी फोरलेन मार्ग के जरिए लेह को छूते इरादे फलीभूत हुए और न ही लेह रेल परियोजना का कोई अता-पता है। ऐसे में केंद्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान की आभा का सम्मान होना चाहिए जो क्लासरूम छोड़कर सड़कों पर सूचना पट्ट के जरिए शिक्षा के ऐसे आयाम समझा रहा है, भले ही यह उसके दायरे व बूते से बाहर हैं। यह इसलिए भी कि जो शिक्षण संस्थान अपने अस्तित्व के एक दशक में केवल औचित्य के संघर्ष की बुनियादी ईंटें ढूंढ रहा हो, उसका एक विभाग देश के भूगोल का नेतृत्व करने लगा। वैसे धर्मशाला विश्वविद्यालय के अपने सूचना पट्ट फिलहाल किराए के हैं या प्रस्तावित निर्माण स्थलों की सूचनाओं के सारे अक्षर मिट चुके हैं, फिर एक्सिस बैंक के सान्निध्य में अदृश्य मार्ग के सूचना पट्ट खड़े करने का तात्पर्य क्या रहा होगा, यह खासी चर्चा का विषय है। क्या विश्वविद्यालयों को मिल रही ग्रांट अब जनता के बीच ऐसे इश्तहार खड़े करेगी या यह शैक्षणिक राष्ट्रवाद का नया नारा है जो श्रीनगर को हमारे मध्य खड़ा कर देगा। बेशक सूचना पट्ट पर अंकित ‘जनतीर्थ’ मार्ग की कल्पना ऐसी निर्माण योजनाओं को प्रोत्साहित करेगी, लेकिन क्या इसका सर्वेक्षण भी विश्वविद्यालय ही कराएगा या यह अध्ययन की नई समीक्षा है। एक सूचना पट्ट के सहारे हम प्रचार के दस्तावेज बना सकते हैं, लेकिन यथार्थ की समीक्षा तो तथ्यों या किसी शोध के आधार पर ही होगी। सूचना पट्ट जाहिर तौर पर जनता से संबोधित होंगे, तो कल श्रीनगर वाया हिमाचल एक विषय बन कर उभरेगा। यह विचार अनेक उम्मीदों को जागृत कर सकता है, लेकिन इससे शिक्षा के संबोधन साबित नहीं होंगे। पर्यटन विभाग के मस्तिष्क से निकला यह विचार कितना भी परंपरावादी, सांस्कृतिक व मौलिक हो, लेकिन यह न शिक्षा का मार्गदर्शक और न ही परियोजना का प्रस्तोता सिद्ध हो पाएगा। आश्चर्य यह कि शिक्षा अब पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता के बजाय, तरह-तरह  खेतों में घास चरने निकल जाती है। इस समय जबकि कोरोना काल ने हिमाचल की आर्थिकी खास तौर पर पर्यटन क्षेत्र को पूरी तरह ध्वस्त किया है, तो हिमाचल के केंद्रीय विश्वविद्यालय से अपेक्षा की जा सकती है कि स्थिति का मूल्यांकन करते हुए आगे आए। जाहिर है विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग के लिए भी यह एक ऐसा अवसर है, जब पूरे व्यवसाय को नए संदर्भों में आशावान बनाया जाए। सार्वजनिक धन पर चलने वाले शैक्षणिक संस्थान केवल शिक्षा के उच्च स्तर के स्तंभ नहीं, बल्कि समय की गवाही में समाज के उत्प्रेरक भी होने चाहिएं। एक सूचना पट्ट के सहारे जो कदम विश्वविद्यालय उठा रहा है,वे शिक्षा की वास्तविक मंजिल के बजाय, परिकल्पनाओं के संसार को पार करने की अद्भुत परिक्रमा है। इसके बजाय अगर विश्वविद्यालय का पर्यटन विभाग बंद होटलों की परिक्रमा करता, तो मालूम हो जाता कि उसके पाठ्यक्रम का व्यावहारिक व शैक्षणिक पक्ष क्या है। बहरहाल श्रीनगर को केंद्रीय विश्वविद्यालय की आंख से देखने की कितनी जरूरत है और प्रस्तावित मार्ग को केंद्र सरकार कैसे देखती है, इस पर आशावादी हो सकते हैं, बशर्ते नीति आयोग अपनी सहमति व प्रश्रय दे।


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