आर्थिकी का हाहाकार

By: Jul 29th, 2020 12:06 am

चीन के वुहान से आए कोरोना वायरस ने हिमाचल के कोने-कोने में जड़ें फैला दी हैं। महामारी ने एक तरह से ज़िंदगी ही रोक कर रख दी है। इसका सबसे ज्यादा असर अगर किसी पर सबसे ज्यादा पड़ा है, तो वह है हिमाचल का व्यापार। प्रदेश में हर तरह का कारोबार पूरी तरह चौपट होकर रह गया है। कोरोना महामारी से पहले प्रदेश भर में रोजाना 500 से 600 करोड़ का व्यापार होता था और अब यह 15 प्रतिशत तक ही सिमट कर रह गया है। इस दखल में अहम तथ्यों के साथ पेश है हिमाचल की आर्थिकी पर कोरोना का असर….

सूत्रधार : शकील कुरैशी, जितेंद्र कंवर व विपिन शर्मा

चौपट हो गया कारोबार

 हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्य को कोरोना महामारी ने इतना बड़ा झटका दिया है कि इसे उभरने में काफी ज्यादा समय लगेगा। कोरोना काल के दौरान हिमाचल को ओवरऑल दस से 12 हजार करोड़ की चपत लगी है। लॉकडाउन में हिमाचल प्रदेश की हर गतिविधि बंद हो गई, जिससे राज्य की आर्थिकी चलती है। अब जब कुछ चला ही नहीं, तो सरकार भी कैसे चलेगी। हिमाचल के कई सरकारी बोर्ड व निगम हैं, जिनके कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा। आर्थिकी को बड़ा नुकसान यहां हुआ है। इस नुकसान पर सरकार ने एक रिपोर्ट तैयार करवाई है, जिसमें सामने आया है कि तीन महीने यानी अप्रैल, मई और जून में सरकार को 30 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। हिमाचल सरकार पर 55 हजार करोड़ रुपए से ऊपर का कर्जा है, इस पर आर्थिकी को 30 हजार करोड़ रुपए का नुकसान तीन महीने में होना बेहद चिंताजनक है। हिमाचल प्रदेश को कई सेक्टर में नुकसान उठाना पड़ा है। इसमें मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के अलावा पर्यटन क्षेत्र काफी बड़े सेक्टर शामिल हैं। पर्यटन की गतिविधियां तो अभी भी शुरू नहीं हो सकी हैं, जिसके आगे तक उभरने के संकेत नहीं मिल पा रहे हैं। इसके अलावा सरकार को सबसे बड़ा नुकसान टैक्स कलेक्शन में उठाना पड़ा है, जो पूरी तरह बंद पड़ा था। टैक्स व नॉन टैक्स में पिछले साल के मुकाबले हिमाचल को काफी ज्यादा हानि हुई है।  प्रदेश सरकार को लॉकडाउन के समय में न तो जीएसटी आया और न ही एक्साइज व वैट। बिजली परियोजनाएं भी हिमाचल में एक तरह से बंद पड़ी थीं, क्योंकि उतनी बिजली नहीं बिकी। बिजली के कारोबार के लिए सबसे बड़ा माध्यम उद्योग हैं, जो कि बंद पड़े हुए थे। ऐसे में बिजली परियोजनाओं में उतना अधिक उत्पादन नहीं किया गया और यहां कामकाज काफी कम रहा। सरकार के सभी विभागों के काम रुके रहे, कोई योजना आगे नहीं बढ़ी, जिसका भी हिमाचल को नुकसान उठाना पड़ा है। कुला मिलाकर हिमाचल को अभी उभरने में काफी ज्यादा समय लगेगा।

कोरोना की मार

कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा असर व्यापार पर पड़ रहा है। प्रदेश में पूरी तरह से व्यापार चौपट होकर रह गया है। प्रदेश भर के व्यापारी मंदी की मार झेल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश व्यापार मंडल के प्रधान सुमेश शर्मा का कहना है कि पहले प्रदेश भर में रोजाना 500 से 600 करोड़ का व्यापार होता था, जो कि अब दस से 15 प्रतिशत तक सिमट कर रह गया है। हिमाचल में करीब पांच लाख छोटे-बड़े व्यापारी हैं, जो कि विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हैं। कोरोना काल के चलते सभी व्यापारी काम धंधा ठप हो जाने से मायूस होकर बैठे हैं। पर्यटकों के न आने का असर भी व्यापार पर पड़ता दिख रहा है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहली बार इस वर्ष टूरिज्म सीजन पूरी तरह शून्य रहा।

राज्य में परिवहन की व्यवस्था इस कोरोना काल में बुरी तरह से प्रभावित हुई। हालांकि शुरुआती दौर में लॉकडाउन की वजह से वैसे ही लोगों का निकलना बंद था, मगर वर्तमान में भी लोगों को परिवहन की पर्याप्त सुविधा नहीं मिल रही। एचआरटीसी ने जो बसें चला रखी हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं। प्रबंधन का मानना है कि सवारियां नहीं हैं। लोग भयभीत हैं और डर के मारे बसों में नहीं बैठ रहे।

प्राइवेट बसें भी नाममात्र की चली हैं। लोग बसों में नहीं बैठ रहे। यही वजह है कि सरकार ने अब खस्ता होती स्थिति को ध्यान में रखकर 25 फीसदी तक बस किराया बढ़ा दिया है, वहीं न्यूनतम किराए में भी बढ़ोतरी की गई है। इससे शायद ट्रांसपोर्ट चलाने वालों को कुछ राहत मिले। इसके पीछे सरकार ने तर्क दिया है कि डीजल काफी महंगा हो चुका है। प्रदेश में 3300 प्राइवेट बसें चलाई जाती हैं और इसमें हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। यह रोजगार वर्तमान में छिन चुका है और बेरोजगारी का आंकड़ा बढ़ा है।

55 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्जा

सरकार पर 55 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्जा है। इस वित्त वर्ष में सरकार ने अभी तक 1120 करोड़ रुपए का कर्ज उठा लिया है। अप्रैल में ही इस कर्ज की शुरुआत कर दी गई थी और अब दोबारा से कर्जा लेने की तैयारी है। कर्ज की बैसाखियों के बीच इसी महीने सरकार ने 800 करोड़ रुपए के पुराने कर्जे को चुकता किया है, वहीं अब एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज इस महीने के अंत तक सरकार को लेना होगा। सरकार का काम फिलहाल केंद्र सरकार से मिलने वाली रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट और  जीएसटी के हिस्से से चल रहा है। अभी कुछ दिन पूर्व ही केंद्र सरकार से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के रूप में प्रदेश को 952 करोड़ रुपए की राशि आई है। इसके बाद अभी जीएसटी का हिस्सा केंद्र सरकार से मिलना बाकी है, जिसका इंतजार किया जा रहा है।

प्रदेश  में  पांच लाख व्यापारी

हिमाचल में पंजीकृत व गैर पंजीकृत पांच लाख व्यापारी हैं, जो विभिन्न व्यावसायों से जुड़े हैं। कोरोना महामारी के चलते जहां हर वर्ग प्रभावित हुआ है। वहीं सबसे ज्यादा नुकसान व्यापारी वर्ग को उठाना पड़ रहा है। कोरोना के भय के चलते दुकानों पर ग्राहक नहीं पहुंच रहे। व्यापारी वर्ग मांग उठा रहा है कि सरकार उन्हें राहत पैकेज दे।

सिमट कर रह गया उत्पादन

केंद्र व प्रदेश सरकार के र्निदेशों के बाद अप्रैल से औद्योगिक इकाइयों में चरणबद्ध ढंग से परिचालन शुरू हो गया था। लॉकडाउन के बीच सरकार ने दवा व खाद्य उत्पाद इकाइयों को ही उत्पादन की मंजूरी दी थी, लेकिन 21 अप्रैल से प्रशासन ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित उद्योगों को भी उत्पादन की सशर्त अनुमति दे दी गई। इसके बाद बद्दी, बरोटीवाला व नालागढ़ क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधियों ने दोबारा रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी। मौजूदा समय में 90 फीसदी उद्योगों में उत्पादन शुरू हो गया है, जिनमें दवा व सेनेटाइजर निर्माता उद्योग 60 से 80 फीसदी की दर से उत्पादन कर रहे हैं, जबकि अन्य सेक्टर के उद्योगों में उत्पादन 30 से 50 फीसदी पर सिमट कर रह गया है। हालांकि उद्योगपति धीरे-धीरे हालात सुधरने की उम्मीद लगाए हुए हैं। वहीं, लॉकडाउन के दौरान करीब दो लाख से ज्यादा प्रवासी कामगार यहां से अपने राज्यों को पलायन भी कर गए हैं।

औंधे मुंह गिरा टूरिज़्म

हिमाचल प्रदेश में टूरिज्म सबसे बड़ा सेक्टर है, जो आर्थिकी से जुड़ा हुआ है। हालांकि सीधे रूप से सरकार को टूरिस्ट से उस कद्र लाभ नहीं मिलता, लेकिन बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी इससे जुड़ी है। होटल इंडस्ट्री की बात करें, तो हिमाचल में हजारों की संख्या में होटल हैं, जिसमें लाखों लोग काम करते हैं। वर्तमान में कोरोना के कारण होटल इंडस्ट्री बंद पड़ी हुई है और ये लाखों लोग, जो इसमें काम करते हैं, वे भी घरों में बैठे हैं। हिमाचल में होटल-रेस्तरां इंडस्ट्री को 2500 करोड़ रुपए तक के नुकसान का अनुमान है। इतने बड़े नुकसान से निपटने के लिए सरकार को करीब एक साल तो लगेगा ही, वह भी यदि सब कुछ खुला रहता है तो।

पहुंचते थे लाखों सैलानी, करोड़ों कमाती थी होटल इंडस्ट्री

प्रदेश में 15 अप्रैल से समर सीजन शुरू हो जाता है। 20 मार्च के बाद से प्रदेश में सैलानियों की आवाजाही आरंभ हो जाती थी। वहीं, अप्रैल और मई में समर सीजन पूरे चरम पर रहता है। मैदानी राज्यों में तपती गर्मी से निजात पाने और स्कूल में छुट्टियों के चलते हर वर्ष लाखों सैलानी प्रदेश में आते थे। इसके अलावा विदेशों से भी हजारों पर्यटक हिमाचल प्रदेश पहुंचे थे। शिमला, कुल्लू, मनाली, डलहौजी, खजियार, धर्मशाला, कसौली सहित अन्य पर्यटन स्थल मार्च से मई तक सैलानियों से गुलजार रहते थे। इस दौरान प्रदेश में होटल, रेस्तरां, होम स्टे सहित अन्य कारोबारी करोड़ों रुपए कमाते थे, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस व्यवसाय को करोड़ों की चपत लगी है।

टैक्स कलेक्शन 54त्न कम

राज्य सरकार को पिछले साल अप्रैल, मई व जून महीने में 2200 करोड़ रुपए का टैक्स जुटा था। इस बार यह इन्कम केवल एक हजार करोड़ रुपए की रही। इन तीन महीनों में सरकार को टैक्स व नॉन टैक्स रेवेन्यू के रूप में जो राशि मिली है, वह पिछले साल के मुकाबले में 54 फीसदी कम है। गुड्ज एंड सर्विस टैक्स में जो आकलन हिमाचल ने किया है, उसमें प्रदेश को 500 करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है। यह राशि इन तीन महीनों में कम हुई है।

आबकारी के 200 करोड़ गए

आबकारी में सरकार को तीन महीने में 200 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। यहां शराब पूरी तरह बंद रखी गई थी, जिसकी लाइसेंस फीस व दूसरे टैक्स से सरकार को पैसा मिलता था, उसकी पूरी हानि हुई।

पेट्रोल-डीजल के वैट से 40 करोड़ का घाटा

वैट जो कि  पेट्रोल व डीजल में मिलता है, उसमें भी सरकार को नुकसान हुआ है, क्योंकि यहां परिवहन व्यवस्था पूरी तरह बंद रही है और केवल एसेंशियल सर्विसेज के वाहन ही यहां चलाए जा रहे थे। जरूरी सामान लेकर आ रहे ट्रकों व छोटे वाहनों की आवाजाही चल रही थी, जिसमें उतना अधिक वैट नहीं मिल पाया। इसमें सरकार को 40 करोड़ रुपए की कमी दर्ज की गई है।

…..ट्रांसपोर्ट सेक्टर बुरी तरह धड़ाम

एचआरटीसी हर रोज गंवा रही 35 लाख

एचआरटीसी के कर्मचारियों को महीने की 15 तारीख को तनख्वाह मिल रही है और वे भी सरकार से पैसा लेकर। तीन-चार महीने से सरकार से इक्विटी शेयर के रूप में एचआरटीसी हर महीने कभी 43 करोड़, कभी 52 करोड़, तो कभी 56 करोड़ रुपए लेती रही, जिससे कर्मचारियों का वेतन दिया गया। कोविड के दौरान एचआरटीसी को 35 लाख रुपए प्रतिदिन का नुकसान उठाना पड़ा है। मासिक 60 से 70 करोड़ रुपए की राशि का नुकसान एचआरटीसी को झेलना पड़ा है।

कॉमर्शियल व्हीकल भी नहीं चले

परिवहन सेक्टर में एक टूरिस्ट से जुड़े वाहन भी हैं। इसे भी नुकसान हुआ है। कॉमर्शियल व्हीकल यहां उस कद्र नहीं चल पाए हैं, क्योंकि बाहर से टूरिस्ट नहीं आ रहे। बिना टूरिस्ट के यहां टैक्स व मैक्सी कैब का काम भी पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है। सरकार ने कॉमर्शियल व्हीकल मालिकों को राहत देने के लिए रोड टैक्स में कुछ माफी की थी, वहीं उनके द्वारा देय टैक्स को आगे भी बढ़ा दिया गया था, मगर इससे उतनी राहत नहीं मिली है। लाखों रुपए के लोन लेकर लोगों ने टैक्सी डाल रखी है जिसकी किस्त वे नहीं निकाल पा रहे।

आंकड़े छिपा रहा अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग

राज्य के अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग को सरकार ने आंकड़े जुटाने का जिम्मा दे रखा है, लेकिन आंकडे़ जुटाने से ज्यादा यह विभाग इन्हें छिपाने में अधिक दिलचस्पी दिखाता है। विभाग की गतिविधियों के बारे में न तो यहां से कोई जानकारी मिलती है और न ही यह पता है कि यह विभाग क्या कुछ कर रहा है। कोविड के दौरान किस तरह से नुकसान हुआ है या किस तरह से अर्थव्यवस्था को उभारा जा सकता है इसके बारे में अब तक विभाग सरकार के सामने कोई दस्तावेज नहीं रख सका है। इससे विभाग की निष्क्रियता सामने आ रही है। साल में केवल आर्थिक सर्वेक्षण करने तक ही विभाग सीमित हो गया है।

फार्मा सेक्टर में दिक्कतें हजार

हिमाचल की सालाना 40 हजार करोड़ के कारोबार वाले फार्मा सेक्टर ने दोबारा उत्पादन तो शुरू किया है, लेकिन कच्चे माल का अभाव, एपीआई के ऊंचे दाम, बाजारों में ग्राहकों की किल्लत, लॉजिस्टिक्स की समस्या, महंगा मालभाड़ा और अस्पतालों में पूरी तरह उपचार शुरू न होने से इस सेक्टर को खासी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। मसलन बाजार में दवा की बिक्री नहीं हो रही और इससे दवा उत्पादन भी खासा प्रभावित हो रहा है। लॉकडाउन के समय से ही दवा और आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण और विपणन को निरंतर जारी रखने की अनुमति दी गई है, लेकिन श्रमिकों और लॉजिस्टिक्स की समस्या को लेकर दवा बनाने वाली कंपनियों का कारोबार अभी भी प्रभावित हो रहा है।

मुश्किल से संभल पाएगा बिगड़ा उद्योग जगत

कोरोना के कहर ने उद्योगों को हिलाकर रख दिया है। लॉकडाउन के बीच आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह लडखड़ा चुके उद्योग जगत के लिए अनलॉक-1, 2 के बीच कामगारों की कमी, कोरोना से बचाव, कच्चे माल की किल्लत और तैयार माल को खरीददार न मिलने जैसी कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। हालांकि औद्योगिक क्षेत्र में धीरे-धीरे औद्योगिक गतिविधियों ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी है, लेकिन लॉकडाउन से पहले की स्थिति में आने के लिए अभी लंबा वक्त लगने की संभावना है। मौजूदा समय में बीबीएन में आवश्यक व गैरआवश्यक वस्तुओं के उत्पादन से जुडे़ 2400 से ज्यादा उद्योगों में करीब 2100 ने उत्पादन शुरू कर दिया है। इनमें दवा, कॉस्मेटिक, सेनेटाइजर, खाद्य उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, पैकेजिंग स्पेयर पार्ट्स निर्माता व ऑटोमोबाइल सेक्टर की इकाइयां शामिल हैं। कोरोना काल में हालांकि कारोबारी गतिविधियां शुरू हो गई हैं, लेकिन उद्यमियों को श्रमिकों की कमी जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा घरेलू बाजार सहित वैश्विक स्तर पर भी  बाजार में अभी तक सुस्ती का आलम है। नतीजतन चालू वित्त वर्ष के दौरान अप्रैल से लेकर जुलाई तक तकरीबन हर सेक्टर के निर्यात में खासी कमी आई है। उद्यमियों का तर्क है कि कोरोना ने औद्योगिक उत्पादन को सीमित कर दिया है।

कामगारों पर झपटा कोरोना

औद्योगिक गतिविधियों का सुचारू संचालन उद्योग जगत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। हालात इसलिए बेहद चिंताजनक हो गए हैं कि जब से अनलॉक 1 व 2 के बीच बाहरी राज्यों से धड़ल्ले से कामगारों की आवाजाही शुरू हुई, इस औद्योगिक गलियारे में कोरोना ने भी उछाल मारना शुरू कर दिया। मौजूदा समय में बीबीएन में कोरोना के जितने भी मामले आए है, उनमें उद्योग कर्मियों की तादाद सबसे ज्यादा है।  क्षेत्र की मल्टीनेशनल कंपनियों की इकाइयों से लेकर छोटे उद्योगों तक के कामगार कोरोना का शिकार बन चुके हैं और दिन-ब-दिन यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। आंकड़ो पर गौर फरमाएं, तो पता चलता है कि बद्दी, बरोटीवाला व नालागढ़ में अब तक कोरोना के कुल 503 केस आ चुके हैं, जिनमें से वर्तमान में 378 एक्टिव केस हैं, जबकि 125 मरीज कोरोना को मात देकर स्वस्थ हो चुके हैं।

स्टील इंडस्ट्री बर्बादी के कगार पर

कोरोना से उपजे संकट ने हिमाचल की स्टील इंडस्ट्री को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है। हालात ये हैं कि आज स्टील इंडस्ट्री दिवालिया होने की दहलीज पर खड़ी है। दरअसल पहले से ही लड़खड़ाकर चल रही स्टील इंडस्ट्री के लिए लॉकडाउन इस कद्र सितमगर साबित हुआ है कि रोजाना करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ा है, वहीं टैक्स की मार, फिक्स्ड चार्जेस और बिजली की दरों ने इस सेक्टर की कमर तोड़ दी है। बता दें कि 30 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाली प्रदेश की स्टील इंडस्ट्री सालाना आईजीएसटी व एसजीएसटी के तौर पर एक हजार करोड़ से ज्यादा का टैक्स अदा करती है। यही नही बिजली की 40 प्रतिशत खपत भी स्टील इंडस्ट्री में होती है।

…चोरी-छिपे आने वालों पर भी केस दर्ज…

बीबीएन में बाहरी राज्यों से बिना अनुमति व चोरी-छिपे आने वालों के अलावा प्रशासन के निर्देशों की अवहेलना के अब तक 189 केस दर्ज कि ए जा चुके हैं। पुलिस विभाग के अनुसार अब तक बिना अनुमति बीबीएन में आने वाले 1332 लोगों को पकड़कर क्वारंटाइन सेंटर भेजा जा चुका है।


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