अमरीकी इंडियन्स और भारत

By: Jul 18th, 2020 12:10 am

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

आज स्थिति यह है कि इनकी लड़कियों का अपहरण हो जाता है, लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती। आजकल यूएसए में जनगणना शुरू होने वाली है, लेकिन सरकार इनकी संख्या को दर्ज करने से बचती रहती है, ताकि रिकार्ड में इनकी संख्या कम दिखाई जा सके। लेकिन पिछले कुछ साल से इन नेटिव इंडियन्ज में भी अपनी जड़ों और विरासत को लेकर जागृति आई है। वे अपने उत्सव मनाने लगे हैं। अपनी भाषाओं को फिर जिंदा करने के प्रयासों में लगे हैं। यूएसए सरकार उस दिन को जिस दिन कोलम्बस अमरीका पहुंचा था, राष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाती है। लेकिन अब नेटिव इंडियन उस दिन को गुलामी दिवस के तौर पर मनाते हैं। कई बार कोलम्बस की मूर्तियों पर कालिख भी पोत देते हैं। लेकिन उनका दुख है कि उनके इस संघर्ष में भारत उनका साथ नहीं दे रहा है। ये नेटिव इंडियन्ज तो कोलम्बस के भारत न पहुंचने का भार ढो रहे हैं। उनको कोलम्बस के भारत न पहुंच पाने का जहर पीना पड़ रहा है। यदि कोलम्बस भारत पहुंच जाता तो यह जहर भारतीयों को पीना पड़ता…

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय ने पिछले दिनों अमरीका महाद्वीप के नेटिव इंडियन्ज की सामाजिक सांस्कृतिक स्थिति को लेकर एक तीन दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन किया था। इस आयोजन में अंतरराष्ट्रीय सेंटर फार कल्चरल स्टडीज और पैनसिलवानिया की संस्था सेंटर फार इंडजीनियस नेटिव अमेरिकन ने भी भागीदारी की। वक्ताओं में कनाडा, यूएस और मैक्सिको के नेटिव इंडियन्ज विद्वान शामिल थे। इस विचार गोष्ठी ने अमरीका के नेटिव इंडियन्ज को लेकर अनेक प्रश्नों को जन्म दिया। लेकिन पहले यह जान लेना जरूरी है कि अमरीका महाद्वीप में इंडियन किसे कहा जाता है। आम तौर पर अमरीका का अर्थ यूएसए से ही लिया जाता है, लेकिन ऐसा है नहीं। अमरीका एक विशाल महाद्वीप है जिसमें अस्सी के लगभग देश शामिल हैं। यूएसए उनमें से केवल एक है। अमरीका महाद्वीप को भूगोल के लिहाज से उत्तरी, दक्षिणी और मध्य अमरीका में भी बांटा जा सकता है।

यह महाद्वीप जनविहीन महाद्वीप कहलाता था। लेकिन आज से पच्चीस-तीस हजार साल पहले एशिया से अलास्का होते हुए कई चरणों में लोग इस महाद्वीप में पहुंचे । वे एक साथ नहीं गए, बल्कि कई चरणों में पहुंचे थे। इस महाद्वीप में जगह-जगह उन्होंने अपनी बस्तियां बसाईं और एशिया की संस्कृति और परंपराओं के अनुसार प्रकृति पूजा की विधियां सुरक्षित रखीं। उस युग में एशिया जम्बू द्वीप के नाम से भी जाना जाता था और भारत उसका सांस्कृतिक केंद्र था।  लेकिन पंद्रहवीं शताब्दी में यूरोप के विभिन्न देशों के लोग सागर के रास्ते एशिया और अफ्रीका के देशों पर कब्जा करने के लिए निकले। इन्हें यूरोपीय लुटेरों के गिरोह भी कहा जा सकता है जो अपने राज्यों के राजाओं की सहायता से इन अभियानों पर निकले थे।

भारत के धन-धान्य की खबरें यूरोप के देशों तक भी पहुंच रही थीं। ऐसा ही एक गिरोह इटली से भारत पहुंचने के लिए निकला। इसका नेतृत्व कोलम्बस कर रहा था। इसकी सहायता स्पेन का राजा कर रहा था। लेकिन भारत के सौभाग्य से और अमरीका महाद्वीप के दुर्भाग्य से कोलम्बस अमरीका पहुंच गया। लेकिन उसने समझा कि वह इंडिया पहुंच गया है। इसलिए अमरीका महाद्वीप में हजारों साल पहले पहुंचे एशियायी इंडियन कहलाने लगे। लेकिन कोलम्बस ने अमरीका महाद्वीप जाने का जो रास्ता तलाश लिया था, उसका पीछा करते हुए यूरोप के विभिन्न देशों से यूरोपीयायी अमरीका के विभिन्न हिस्सों में पहुंचने लगे। लेकिन उनका कहर भोले-भाले परिश्रमी इन एशियायी इंडियन्ज पर उतरा। यूरोप के इन लोगों की शुरू में इन इंडियन्ज ने बहुत सहायता की। उनका अतिथि सत्कार किया। परंतु यूरोप के लोगों ने इन्हें गुलाम बनाया। इनकी हत्याएं कीं। इनमें महामारियां फैलाईं। इनकी भाषाओं को नष्ट किया। उन्नत हथियारों के बल पर इनका नरसंहार किया। यूरोप की मिशनरियों ने इन्हें बाइबिल पढ़ाना शुरू कर दिया। इनकी संख्या बहुत कम रह गई और इनका एशिया से संबंध टूट गया।

इसीलिए मैंने इन्हें लोस्ट चायल्ड आफ एशिया कहा। लेकिन जब अमरीका महाद्वीप के वे तेरह राज्य, जिनमें इंग्लैंड से गए लोग रहते थे, इकट्ठे हो गए और उन्होंने यूनाइटिड स्टेट्स आफ  अमेरिका के नाम से एक अलग देश का गठन कर लिया तो इन नेटिव इंडियन्ज का संकट और गहरा हो गया। नई सरकार ने उनके लिए कुछ क्षेत्र सुरक्षित कर दिए। लेकिन वहां ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि ये नेटिव इंडियन्ज नशेड़ी और ड्रग एडिक्ट्स बन गए। उनकी भाषाओं और लोक साहित्य को नष्ट कर दिया। नशेड़ी हो जाने के कारण नेटिव इंडियन्ज के बच्चे पढ़ते नहीं थे। आज स्थिति यह है कि इनकी लड़कियों का अपहरण हो जाता है, लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती। आजकल यूएसए में जनगणना शुरू होने वाली है, लेकिन सरकार इनकी संख्या को दर्ज करने से बचती रहती है, ताकि रिकार्ड में इनकी संख्या कम दिखाई जा सके। लेकिन पिछले कुछ साल से इन नेटिव इंडियन्ज में भी अपनी जड़ों और विरासत को लेकर जागृति आई है। वे अपने उत्सव मनाने लगे हैं।

अपनी भाषाओं को फिर जिंदा करने के प्रयासों में लगे हैं। यूएसए सरकार उस दिन को जिस दिन कोलम्बस अमरीका पहुंचा था, राष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाती है। लेकिन अब नेटिव इंडियन उस दिन को गुलामी दिवस के तौर पर मनाते हैं। कई बार कोलम्बस की मूर्तियों पर कालिख भी पोत देते हैं। लेकिन उनका दुख है कि उनके इस संघर्ष में भारत उनका साथ नहीं दे रहा है। ये नेटिव इंडियन्ज तो कोलम्बस के भारत न पहुंचने का भार ढो रहे हैं। उनको कोलम्बस के भारत न पहुंच पाने का जहर पीना पड़ रहा है।

यदि कोलम्बस भारत पहुंच जाता तो यह जहर भारतीयों को पीना पड़ता। हमारे हिस्से का वह जहर आज अमरीका के ये नेटिव इंडियन्ज पी रहे हैं। इसलिए भारतीयों का इतना कर्त्तव्य तो बनता है कि हम नेटिव इंडियन्ज के दर्द को समझने का प्रयास करें। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय की विचार गोष्ठी इसी कर्त्तव्य पूर्ति की ओर पहला कदम था। भारतीयों का फर्ज है कि इन नेटिव इंडियन्ज की संस्कृति के संरक्षण में उनका सहयोग किया जाए। भारत को नेटिव इंडियन्ज के पहचान के मसले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने चाहिए। आशा की जानी चाहिए कि ये नेटिव इंडियन्ज अपनी संस्कृति को बरकरार रखने में कामयाब होंगे तथा अमरीका के भीतर सरकार से वे अपनी मांगें मनवा पाएंगे।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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