अनासक्त कर्म

By: Jul 25th, 2020 12:20 am

बाबा हरदेव

महात्माओं का कथन है कि प्रत्येक आसक्त कर्म मनुष्य के द्वारा किए गए कर्मों से ही निकलता है और मनुष्य ही इन आसक्त कर्मों को अनासक्त कर्म बनाना चाहता है, तो हो सकता है कि जाहिर तौर पर इसका कर्म अनासक्त कर्म दिखने लगे, लेकिन वास्तविकता में यह अनासक्त कर्म नहीं हो सकता। इस कर्म में आसक्ति बनी ही रहेगी। उदाहरण के तौर पर एक साधु जिसका चित्त अशांत है, वह जो भी कर रहा है इसमें आसक्ति होती है। यह आसक्ति चाहे मोक्ष की हो, चाहे भक्ति का फल पाने की, क्योंकि यह सब प्रक्रियाएं वासना अथवा लालसाओं के विस्तार की है।

यह साधु चेष्टा कर रहा है, उपवास कर रहा है, सेवा कर रहा है या कुछ और कर रहा है, इन सब कर्मों के पीछे वासनाएं एवं लालसाएं छिपी हुई हैं कि किसी तरह मन शांत हो जाए, मोक्ष मिल जाए, यह हो जाए या वह हो जाए। यह सब वासना के ही रूप हैं। इस अवस्था में फिर कर्म अनासक्त कैसे होगा? अतः अनासक्त कर्म करने से चित्त कभी शांत नहीं हो सकता, क्योंकि जब तक चित्त शांत न हो तब तक अनासक्त कर्म तो किया ही नहीं जा सकता। केवल शांत चित्त से ही अनासक्त कर्म निकलता है,क्योंकि शांत चित्त से कभी आसक्त कर्म नहीं निकल सकते। अब प्रश्न मनुष्य के कर्म का नहीं है क्योंकि कर्म इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना मनुष्य के चित्त की दशा महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य का चित्त जिस मात्रा में शांत होगा, उसी मात्रा में कर्म से आसक्ति होती चली जाएगी क्योंकि चित्त की अशांति ही आसक्ति का मूल उद्गम है।

इसीलिए विद्वान कभी भी मनुष्य के कर्म को बदलने की बात नहीं कहते, वे सदा मनुष्य के चित्त को शांत करने का ही उपाय बताते चले आए हैं। जो मनुष्य कर्म को बदलने की बात सोच रहा है, वास्तव में वह बहुत बड़ी भ्रांति का शिकार है, क्योकि वह तो अभिव्यक्ति को बदलने की बात सोच रहा है। जहां चीजें प्रकट हो रही हैं वहां कुछ नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर अगर एक घर में छप्पर के ऊपर से धुआं निकल रहा है और हम छप्पर पर बैठकर धुएं को रोकने की कोशिश शुरू कर दें कि हमने धुआं नहीं निकलने देना और जो नीचे आग जल रही हो, उस आग के जलने की कोई चिंता न करें तो इस अवस्था में अगर हम धुएं को एक ओर रोकने की कोशिश करेंगे भी तो धुआं दूसरी ओर से निकलना शुरू हो जाएगा।

यह धुआं तो निकलेगा ही, इसे कैसे दबाया जा सकता है? इस धुएं को समाप्त करने के लिए तो हमें उस घर के भीतर की लगी हुई आग को ही बुझाना होगा। इसी प्रकार यदि एक व्यक्ति हमारे पास भागा-भागा आता है और सूचना देता है कि उसके घर में आग लग गई है और हम उस व्यक्ति के ऊपर ही पानी डालना शुरू कर दें, तो हमें लोग मूर्ख ही कहेंगे। उस व्यक्ति ने तो हमें घर में लगी आग की सूचना दी है और हम उस व्यक्ति पर ही पानी डालते रहेंगे, तो उस व्यक्ति के घर में लगी हुई आग थोड़े बुझ जाएगी?


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