चीन को मजबूत आर्थिक जवाब : डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

By: Jul 6th, 2020 12:07 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

गौरतलब है कि एक ओर भारतीय अर्थव्यवस्था की चमकीली विशेषताएं और दूसरी ओर चीन की आर्थिक प्रतिकूलताएं भी भारत को चीन के साथ आर्थिक मुकाबला करने में ताकत देते हुए दिखाई दे रही हैं। चाहे चीन की अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था से करीब पांच गुना बड़ी है, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था भी दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी 501 अरब डॉलर की ऐतिहासिक ऊंचाई पर दिखाई दे रहा है। इसी तरह देश में बढ़ते हुए आर्थिक सुधारों एवं देश के मध्यम वर्ग की चमकीली क्रयशक्ति के कारण दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत की ओर तेजी से कदम आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रही हैं। निःसंदेह चीन की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट है…

तीन जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लेह में सेना के जवानों को संबोधित किए जाने से जहां एक ओर सेना का मनोबल बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर देश के द्वारा आर्थिक मोर्चे पर चीन से निपटने के मद्देनजर देश के करोड़ों उपभोक्ताओं और उद्यमियों और कारोबारियों का भी मनोबल बढ़ा है। गौरतलब है कि हाल ही में 29 जून को सरकार ने चीनी ऐप टिकटॉक, शेयरइट समेत 59 चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही केंद्र सरकार ने सरकारी विभागों और मंत्रालयों को चीन के आपूर्तिकर्ताओं के किसी सामान के चयन या खरीदारी से दूर रहने का अनौपचारिक निर्देश दिया है। ऐसे में चीनी ऐप पर प्रतिबंध और चीनी सामान के बहिष्कार जैसे कदमों से चीन बौखला गया है। दो जुलाई को चीन ने कहा है कि वह चीन की कंपनियों के खिलाफ  भारत में लगाई गई पाबंदी पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दरवाजे खटखटाएगा। 30 जून को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाए जाने पर चीन की चिंताएं जाहिर की हैं। ज्ञातव्य है कि भारत का बाजार दुनिया का चौथा सबसे बड़ा चमकीला बाजार है और भारत की वर्चुअल स्ट्राइक चीन को जोरदार आर्थिक आघात देते हुए दिखाई दे रही है।

निःसंदेह वर्तमान परिवेश में चीन को आर्थिक टक्कर देने के लिए जहां देश के लोगों द्वारा चीनी सामानों का बहिष्कार किया जा रहा है, वहीं सरकारी विभागों में भी चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्वदेशी उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अब इसके साथ-साथ चीन को आर्थिक चुनौती देने और अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर मजबूत बनाने के लिए नई आर्थिक रणनीति भी अपनाई जाना जरूरी है। इसके तहत चीन पर निर्भरता कम करने के लिए चीन से आयात किए जाने वाले उत्पादों को देश में ही उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहन, चीन को कच्चे माल के निर्यातों पर सख्ती और उन पर उपकर लगाया जाना, अमरीका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और जापान जैसे अनेक देशों में चीनी सामानों का विकल्प बनने का अवसर मुठ्ठियों में लेना, देश के उद्योगों को नई शोध से लाभान्वित करने वाले संगठनों को प्रभावी बनाना, भ्रष्टाचार व अकुशलता पर नियंत्रण तथा तकनीकी विकास व बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाते हुए आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़ने जैसे कदम शामिल किए जाने होंगे। गौरतलब है कि एक ओर भारतीय अर्थव्यवस्था की चमकीली विशेषताएं और दूसरी ओर चीन की आर्थिक प्रतिकूलताएं भी भारत को चीन के साथ आर्थिक मुकाबला करने में ताकत देते हुए दिखाई दे रही हैं। चाहे चीन की अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था से करीब पांच गुना बड़ी है, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था भी दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी 501 अरब डॉलर की ऐतिहासिक ऊंचाई पर दिखाई दे रहा है। इसी तरह देश में बढ़ते हुए आर्थिक सुधारों एवं देश के मध्यम वर्ग की चमकीली क्रयशक्ति के कारण दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत की ओर तेजी से कदम आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रही हैं। निःसंदेह चीन की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट है। चीन से निर्यात घट गए हैं। दुनिया भर में कोविड-19 के बीच चीन के प्रति नकारात्मकता बढ़ी है। कई देशों ने चीन से आयात किए जाने वाले कई सामानों पर एंटी डंपिंग शुल्क लगा दिया है। हाल ही में विश्व व्यापार संगठन के नए फैसले के बाद अब यूरोपीय संघ भी चीन के कई उत्पादों पर एंटी डंपिंग शुल्क लगाने की तैयारी करते हुए दिखाई दे रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 28 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में चीन के साथ गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चल रहे गतिरोध पर कहा कि इस समय देश कुछ पड़ोसियों द्वारा पेश की गई जिन चुनौतियों से निपट रहा है, उसके लिए अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर था और दुनिया के कई देशों से आगे था। अब फिर यदि देश के लोग स्थानीय उत्पाद खरीदेंगे और लोकल के लिए वोकल होंगे तो वे देश को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभाएंगे और यह भी एक तरह से देश की सेवा ही होगी। ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष 2019 में भारत का विदेश व्यापार घाटा कम हुआ है। पिछले वर्ष 2019 में चीन से भी आयात घटे हैं और भारत का चीन से व्यापार घाटा भी कम हुआ है। अब चूंकि देश भर में चीन के प्रति नकारात्मकता है, अतएव इस वर्ष 2020 में चीन से आयात और घटेंगे। हाल ही में सी-वोटर सर्वे में 68 फीसदी लोगों ने चीनी उत्पादों के बहिष्कार का मत व्यक्त किया है। देश के उद्यमियों के द्वारा चीन से आयात की जाने वाली ऐसी वस्तुएं चिन्हित की जा रही हैं जो देश के उद्योग-कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। यह उल्लेखनीय है कि चीन के द्वारा भारत की करीब 2800 से अधिक वस्तुओं पर नॉन-टैरिफ बैरियर लगाया गया है। इसके कारण ये वस्तुएं चीन को निर्यात करना मुश्किल हैं। जबकि भारत ने करीब 430 वस्तुओं के आयात पर ही नॉन-टैरिफ बैरियर लगाया है। निश्चित रूप से चीन को आर्थिक चुनौती देने के लिए हमें उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना होगा। सरकार के द्वारा भारतीय उत्पादों को चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू किया जाना होगा। उन ढांचागत सुधारों पर जोर दिया जाना होगा, जिसमें निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके। हमें अपनी बुनियादी संरचना में व्याप्त अकुशलता एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर अपने प्रॉडक्ट की उत्पादन लागत कम करनी होगी। भारतीय उद्योगों को चीन के मुकाबले में खड़ा करने के लिए उद्योगों को नए अविष्कारों, खोज से परिचित कराने के मद्देनजर औद्योगिक शोध से संबद्ध शीर्ष संस्थानों को प्रभावी और महत्त्वपूर्ण बनाना होगा। हम उम्मीद करें कि सरकार ने जिस तरह टिकटॉक समेत चीन के 59 ऐप पर रोक के आदेश दिए हैं और सरकारी विभागों को चीनी उत्पादों की खरीददारी से दूर रहने का जो अनौपचारिक निर्देश दिया है, उससे चीन पर डिजिटल स्ट्राइक जैसा असर होगा। हम उम्मीद करें कि जहां पूरे देश के करोड़ों लोग चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को जीवन का मूलमंत्र बनाएंगे, वहीं देश के उत्पादक चीनी उत्पादों के स्थानीय विकल्पों को विकसित करने का हरसंभव प्रयास करेंगे। हम उम्मीद करें कि सरकार आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित किए गए बुनियादी ढांचे के विकास, तकनीकी विकास और आर्थिक सुधारों के ठोस क्रियान्वयन की डगर पर तेजी से आगे बढे़गी। सरकार इस समय चीन से निकलती हुई अनेक वैश्विक कंपनियों के कदमों को भारत की ओर आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास करते हुए दिखाई देगी। हम उम्मीद करें कि चीन को आर्थिक टक्कर देने के लिए देश के करोड़ों उपभोक्ताओं, उद्यमियों व कारोबारियों का मनोबल बढ़ा है, उससे चीन पर भारी आर्थिक दबाव बढ़ेगा।


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