ध्वस्त होंगे चीन के घातक मंसूबे : प्रताप सिंह पटियाल, लेखक बिलासपुर से हैं

By: Jul 6th, 2020 12:06 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं

1962 में अरुणाचल तथा लद्दाख आदि क्षेत्रों में हमला करके चीन ने बुद्ध की धरती को युद्ध में तब्दील करके अपनी इस नीति का पुख्ता प्रमाण भारत को भी दे दिया था। यहीं से दोनों देशों की अदावत की पटकथा शुरू हुई थी। चीन तथा तिब्बत की लगभग 240 किलोमीटर लंबी सरहद हिमाचल प्रदेश के किन्नौर व लाहुल-स्पीति जिलों के साथ भी लगती है। इन दोनों जिलों के लगभग 48 गांव चीन की सीमा से सटे हैं। युद्ध के मुहाने पर खडे़ डै्रगन के साथ तनाव भरे माहौल में लाहुल-स्पीति जिले में चीन बार्डर तक जाने वाले 205 किलोमीटर लंबे ग्राफू  समदो हाई-वे की सामरिक उपयोगिता और बढ़ गई है…

समूचे विश्व में यह स्पष्ट हो चुका है कि जिस देश की सरहदें शातिर चीन तथा दहशतगर्दी के मरकज पाकिस्तान से लगती हों, वहां अमन की शम्मा नहीं जल सकती। 15 जून 2020 को गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ खूनी सैन्य संघर्ष में 20 भारतीय जांबाजों ने देश रक्षा में शहादत देकर अपनी सेना के हौसले की बुनियाद को और मजबूत कर दिया। पूरे देश ने तिरंगे में लिपट कर आए अपने शूरवीरों के जज्बे को सलाम किया। वहीं चीन अपने मरहूम सैनिकों का खामोशी से मातम मना रहा है, लेकिन उस खामोशी के पीछे अब आवाजें उठ रही हैं। चीन ने आक्रांता बनकर 23 मई 1950 को तिब्बत पर हमला करके इस बात के संकेत दे दिए थे कि भौगौलिक विस्तारवाद की प्रवृत्ति उसकी फितरत में शामिल है। 1962 में अरुणाचल तथा लद्दाख आदि क्षेत्रों में हमला करके चीन ने बुद्ध की धरती को युद्ध में तब्दील करके अपनी इस नीति का पुख्ता प्रमाण भारत को भी दे दिया था। यहीं से दोनों देशों की अदावत की पटकथा शुरू हुई थी। चीन तथा तिब्बत की लगभग 240 किलोमीटर लंबी सरहद हिमाचल प्रदेश के किन्नौर व लाहुल-स्पीति जिलों के साथ भी लगती है। इन दोनों जिलों के लगभग 48 गांव चीन की सीमा से सटे हैं। युद्ध के मुहाने पर खडे़ डै्रगन के साथ तनाव भरे माहौल में लाहुल-स्पीति जिले में चीन बार्डर तक जाने वाले 205 किलोमीटर लंबे ग्राफू समदो हाई-वे की सामरिक उपयोगिता और बढ़ गई है। चीन के साथ मौजूदा हालात के मद्देनजर राज्य में मनाली को लेह से जोड़ने वाली 8.8 किलोमीटर निर्माणाधीन रोहतांग टनल की रक्षा क्षेत्र के लिए अहमियत महसूस हो रही है। भविष्य में यह टनल सेना के लिए लद्दाख व सियाचिन जैसे क्षेत्रों के लिए सहायक सिद्ध होगी। 1996 में भारत व चीन के मध्य ‘कान्फिडेंस बिल्डिंग मीजर्स’ समझौता भी हुआ था, जिसके मुताबिक दोनों सेनाएं गश्त के दौरान आमने-सामने होने पर फायर आर्म्स का इस्तेमाल नहीं करेंगी। मगर गलवान के संघर्ष से साबित हो गया कि चीन किसी नियम को नहीं मानता। अपने पड़ोसी देशों की जमीनों को हड़पने के लिए चीन जिस ‘सलामी स्लाइसिंग रणनीति’ का प्रयोग करता आया है, वह उसे उसके अजदाद माओत्से तुंग से विरासत में मिली है। 14 देशों के साथ सरहदी तनाजा तथा 23 देशों के साथ अन्य विवाद पैदा कर चुका चीन अपनी ताकत की नुमाइश करके अपने हमसाया मुल्कों को गुलाम बनाने की कोशिश में लगा है, लेकिन चीन को 1967 में नाथुला, 1986 में अरुणाचल में ‘आप्रेशन फाल्कन’, 2014 में चुमार व 2017 में डोकलाम तथा जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय सेना ने स्पष्ट कर दिया कि हम नुमाइश नहीं, बल्कि आजमाईश भी करते हैं। भारतीय सेना की कैफियत को चीनी सेना के सिपहसालार पूरी तफसील से जानते हैं कि उनका मुकाबला जमीनी युद्धों में माहिर विश्व की सर्वोत्तम ‘क्वीन ऑफ  दि बैटल’ कही जाने वाली भारत की उस थलसेना से है, जिसने 1971 में पाकिस्तान को तकसीम करके बांग्लादेश की तमहीद लिख दी थी तथा 1999 में दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र कारगिल में पाक फौज को मार भगाकर पुनः तिरंगा फहरा दिया था। इसलिए पाकिस्तान का पीओके तथा डै्रगन का अक्साई चिन को लेकर हलक सूख रहे हैं। भारतीय सैन्य शक्ति के सामने अतिक्रमण करके अपनी लाल सल्तनत को बढ़ाने की डै्रगन की रणनीति सफल नहीं हो रही। 1962 का परिणाम जो भी हो, मगर उस युद्ध में पूर्वी लद्दाख की इसी गलवान घाटी को चीनी सेना के कब्जे से बचाने में भारत के 33 जांबाजों ने अपनी शहादत दी थी। बहरहाल गलवान के गुनाहगार चीन के विश्वासघात के बाद भारतीय सेना ने भी एलएसी पर अपने सैन्य कम्बैट नियमों में बदलाव किया है, अतः बेहतर होगा कि चीन अपनी हदूद में रह कर एलएसी के नियमों को तस्लीम करे। यदि सरहद पर साजिश रचने को कोई हिमाकत बेकाबू हुई तो अंजाम का मंजर 1967 से भी खौफनाक होगा। भारतीय सेना अपनी अचूक मारक क्षमता से डै्रगन का भूगोल तथा इतिहास बदल कर उसकी हरारत व तकब्बुर उतारने में कोई परहेज नहीं करेगी।

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-संपादक


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