डिजीटल आर्थिकी बढ़ने का परिदृश्य: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

By: Jul 27th, 2020 12:07 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

डिजिटल भुगतान ने भी डिजिटल दौर को भारी प्रोत्साहन दिया है। देश में जो डिजिटल पेमैंट कोरोना के पहले जनवरी 2020 में करीब 2.2 लाख करोड़ रुपए के थे, वे जून 2020 में 2.60 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। इन सबके अलावा टिकटॉक जैसे चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगने के बाद भारतीय डिजिटल क्षेत्र और अधिक बढ़ा है। गौरतलब है कि भारत में बढ़ते हुए डिजिटलीकरण से ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ा है। हाल ही में विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल डेटा एजेंसी स्टेटिस्टा के द्वारा लॉकडाउन और कोविड-19 के बाद जिंदगी में आने वाले बदलाव के बारे में जारी की गई वैश्विक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 46 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वे अब खरीददारी के लिए भीड़भाड़ में नहीं जाएंगे। वे ई-कॉमर्स के माध्यम से घर बैठे उपभोक्ता वस्तुएं प्राप्त करना चाहेंगे…

यकीनन कोविड-19 के चलते आर्थिक सुस्ती के बीच भारत में डिजिटलीकरण के लिए तेजी से विदेशी निवेश आने से डिजिटल अर्थव्यवस्था के छलांगें लगाकर बढ़ने का सुकूनभरा परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। इस वर्ष जनवरी 2020 की शुरुआत से अब तक अमरीकी टेक कंपनियां भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि तथा रिटेल सेक्टर के ई-कॉमर्स बाजार की चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में करने के लिए करीब 17 अरब डॉलर के निवेश के साथ आगे बढ़ी हैं। 22 जुलाई को अमरीका-भारत बिजनेस काउंसिल की इंडिया आयडियाज समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अमरीका से भारत में निवेश की नई संभावनाएं निर्मित हुई हैं। अमरीका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने भी कहा कि अमरीका जैसे तमाम देश भारत पर भरोसा करते हैं।

निश्चित रूप से इस समिट के बाद अमरीका से भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए निवेश और बढ़ेगा। ऐसे में चीनी डिजिटल कंपनियों की जगह अमरीकी डिजिटल कंपनियों का भारत में बढ़ता प्रौद्योगिकी निवेश और बढ़ती साझेदारी डिजिटल भारत, आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान के लिए अधिक लाभप्रद दिखाई दे रहा है। हाल ही में 13 जुलाई को दुनिया की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी गूगल की होल्डिंग कंपनी अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई ने भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में कहा कि गूगल फॉर इंडिया डिजिटाइजेशन फंड के जरिए भारत में अगले 5 से 7 साल में 10 अरब डॉलर (करीब 75000 करोड़ रुपए) का निवेश किया जाएगा।

गूगल द्वारा जियो में 33737 करोड़ रुपए के निवेश से 7.7 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा भी हो चुकी है। इस तरह गूगल भी भारत में बड़े निवेश के मद्देनजर फेसबुक, सॉवरिन फंड, क्वालकॉम तथा विभिन्न वेंचर कैपिटल की तरह अपने कदम आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रही है। उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के बीच रिलायंस जियो और फेसबुक में ई-रिटेल शॉपिंग में उतरने को बड़ी डील हुई है। फेसबुक ने जियो प्लेटफॉर्म्स में 5.7 अरब डॉलर लगाकर 9.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की है। अब रिलायंस का जियोमार्ट और फेसबुक का व्हाट्सऐप प्लेटफॉर्म मिलकर भारत के करीब तीन करोड़ खुदरा कारोबारियों और किराना दुकानदारों को पड़ोस के ग्राहकों के साथ जोड़ने का काम करेंगे। इनके लेन-देन डिजिटल होने से पड़ोस की दुकानों से ग्राहकों को सामान जल्द मिलेगा और छोटे दुकानदारों का कारोबार भी बढ़ेगा।

बर्नस्टीन के मुताबिक जियो-फेसबुक का प्लेटफॉर्म अप्रोच भारत में कॉमर्स, पेमेंट और कंटेंट से जुड़ी 10 महत्त्वपूर्ण सर्विसेज का इकोसिस्टम बना रहा है। इससे साल 2025 तक करीब 151 लाख करोड़ रुपए का बाजार खड़ा हो सकता है। वस्तुतः देश के टेक्नोलॉजी क्षेत्र की ओर वैश्विक कंपनियों के द्वारा रिकॉर्ड निवेश प्रवाहित करने के कई कारण हैं। कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन, ऑनलाइन एजुकेशन तथा वर्क फ्राम होम प्रवृत्ति बढ़ने से देश में डिजिटल दौर तेजी से आगे बढ़ा है। देश में इंटरनेट के उपयोगकर्ता छलांगें लगाकर आगे बढ़ रहे हैं।

देशभर में डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी सेवाओं के डिजिटल होने, करीब 32 करोड़ से अधिक जनधन खातों में लाभार्थियों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से भुगतान, तेजी से बढ़ी ऑनलाइन खरीददारी, लोगों की क्रय शक्ति के अनुसार मोबाइल फोन व अन्य डिजिटल चीजों की सरल आपूर्ति के कारण भी देश में डिजिटलीकरण आगे बढ़ा है। कई ऐसी और वजह हैं जिनके कारण वैश्विक डिजिटल कंपनियां भारत में लगातार अपनी रुचि बढ़ाते हुए दिखाई दे रही हैं। भारत प्रति व्यक्ति डेटा खपत के मामले में दुनिया में पहले क्रम पर है। मोबाइल ब्रॉडबैंड ग्राहकों की तादाद के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है। डिजिटल भुगतान ने भी डिजिटल दौर को भारी प्रोत्साहन दिया है। देश में जो डिजिटल पेमैंट कोरोना के पहले जनवरी 2020 में करीब 2.2 लाख करोड़ रुपए के थे, वे जून 2020 में 2.60 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं।

इन सबके अलावा टिकटॉक जैसे चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगने के बाद भारतीय डिजिटल क्षेत्र और अधिक बढ़ा है। गौरतलब है कि भारत में बढ़ते हुए डिजिटलीकरण से ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ा है। हाल ही में विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल डेटा एजेंसी स्टेटिस्टा के द्वारा लॉकडाउन और कोविड-19 के बाद जिंदगी में आने वाले बदलाव के बारे में जारी की गई वैश्विक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 46 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वे अब खरीददारी के लिए भीड़भाड़ में नहीं जाएंगे। वे ई-कॉमर्स के माध्यम से घर बैठे उपभोक्ता वस्तुएं प्राप्त करना चाहेंगे। इसी तरह विश्व प्रसिद्ध बर्नस्टीन रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोरोना काल में लोगों ने जिस तेजी से डिजिटल का रुख किया है, वह भारत के लिए आर्थिक रूप से उपयोगी हो गया है। अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2027-28 तक भारत में ई-कॉमर्स का कारोबार 200 अरब डॉलर से भी अधिक की ऊंचाई पर पहुंच सकता है। निःसंदेह देश में खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश बढ़ने से जहां ई-कॉमर्स की रफ्तार बढ़ती गई है, वहीं देश के ई-कॉमर्स क्षेत्र में चुनौतियां भी बढ़ी हैं।

देश के ई-कॉमर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतें बढ़ी हैं। यह पाया गया है कि कई बड़ी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां टैक्स की चोरी करते हुए देश में अपने उत्पाद बड़े पैमाने पर भेज रही हैं। ये कंपनियां इन उत्पादों पर गिफ्ट या सैंपल का लेबल लगाकर भारत में भेज देती हैं। वैश्विक डिजिटल कंपनियों के द्वारा भारतीय उपभोक्ताओं के डेटा के दुरुपयोग किए जाने के मामले लगातार सामने आए हैं। ऐसे में देश के लिए बहुआयामी नई ई-कॉमर्स नीति आवश्यक दिखाई दे रही है। नई ई-कॉमर्स नीति में ऐसी कुछ बातों पर खासतौर से ध्यान दिया जाना होगा, जिनका संबंध ई-कॉमर्स की वैश्विक और भारतीय कंपनियों के लिए समान अवसर मुहैया कराने से है ताकि छूट और विशेष बिक्री के जरिए बाजार को न बिगाड़ा जा सके। ई-कॉमर्स से देश की विकास आकांक्षाएं पूरी हों तथा बाजार भी विफलता और विसंगति से बचा रहे। नई ई-कॉमर्स नीति से ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ी कंपनियों के बाजार, बुनियादी ढांचा, नियामकीय व्यवस्था जैसे बड़े मुद्दे शामिल किए जाने जरूरी हैं।

नई ई-कॉमर्स नीति में छोटे खुदरा कारोबारियों और ट्रेडर्स के हितों का ध्यान रखा जाना होगा। चूंकि ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश के मानक बदले गए हैं जिससे ई-कॉमर्स कंपनियों में ढांचागत बदलाव की आवश्यकता है। नई ई-कॉमर्स नीति में सिर्फ विदेशी कारोबारियों की ही नहीं, बल्कि घरेलू कारोबारियों की भी अहम भूमिका होनी चाहिए। नई ई-कॉमर्स नीति में अनुमति मूल्य और भारी छूट पर लगाम लगाने की व्यवस्था करना होगी जिससे सबको काम करने का समान अवसर मिल सके।


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