‘डॉन’ की काली कमाई
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ‘डॉन’ विकास दुबे के आर्थिक साम्राज्य को खंगालना शुरू कर दिया है। वह मनी लॉन्डिं्रग कानून की विभिन्न धाराओं के तहत भी जांच करेगा, क्योंकि डॉन की संपत्तियां दुबई, थाईलैंड में भी बताई जा रही हैं। जिस शख्स पर हत्या, लूट, डकैती, फिरौती और अपहरण आदि के 71 मामले कानून के तहत विचाराधीन हों, उसे विदेश जाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? उसका पासपोर्ट ही कैसे बन सकता है? लेकिन विकास दुबे ने तीन साल के अंतराल में 15 देशों की यात्राएं की थीं। सवाल और उंगलियां सत्ता पर ही उठेंगी, लिहाजा ईडी की जांच महत्त्वपूर्ण और कई खुलासे करने वाली साबित हो सकती है। एक गांव का अल्पशिक्षित-सा व्यक्ति अकूत आर्थिक संपत्तियां कैसे अर्जित कर सकता है? ईडी यह भी ढूंढने की कोशिश करेगा कि विदेशों में उसके संपर्क किसी अंडरवर्ल्ड डॉन से तो नहीं रहे! बहरहाल यदि सत्तावादी हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो उसका भी विस्तृत खुलासा हो सकता है। सवाल और आपत्तियां डॉन की विवादास्पद मुठभेड़ में हत्या पर उतने नहीं हैं, जितनी जातीय व्याख्याएं की जा रही हैं कि उप्र की योगी सरकार ने ‘ब्रह्म-हत्या’ करा दी। वाह री जातीय संकीर्णता और सोच…! योगी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में विकास दुबे 119वीं हत्या है और 13 पुलिस कर्मी भी मारे गए हैं। घायलों की संख्या भी बहुत है, क्योंकि मुठभेड़ें 6000 से ज्यादा की जा चुकी हैं। बहरहाल एक मोटा अनुमान सामने आया है कि डॉन का साम्राज्य 1000 करोड़ रुपए से भी विस्तृत रहा है। उसके एक गुरगे ने डॉन की औसतन सालाना आय 10 करोड़ रुपए से ज्यादा बताई है। यह गुरगा डॉन की काली कमाई को ‘श्वेत’ करके निवेश करता रहा है। चूंकि कानपुर एक औद्योगिक शहर है, लिहाजा सूद पर ‘काली कमाई’ का निवेश किया गया था। अब कर्जदार लोग या बिचौलिए उस काली कमाई को ‘श्वेत’ कर लौटाएंगे या नहीं, यह भी एक सवाल है, लेकिन डॉन के कई गुरगे अभी जिंदा हैं और कुछ पुलिस की गिरफ्त में हैं। ईडी उनके जरिए कर्जदारों तक पहुंच सकता है और डॉन के साथ उनके संबंधों की थाह ले सकता है। कुछ और तथ्य भी सामने आए हैं कि चौबेपुर क्षेत्र में 100 से अधिक फैक्टरियां डॉन की थीं अथवा उनमें उसका सक्रिय दखल था। प्रोटेक्शन मनी के तौर पर डॉन हर महीने औसतन 50 लाख रुपए की काली कमाई अर्जित करता था। उसने कानपुर से बाहर दिल्ली, मुंबई, गोवा आदि शहरों में संपदाएं खरीदी थीं या निवेश किए थे। लखनऊ में हाल ही में 20 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी खरीदी थी। अवैध और बेहिसाब दौलत की सल्तनत स्थापित करने वाले की कितनी संपत्तियां बेनामी हैं, कितनी पत्नी और बच्चों के नाम पर हैं या रिश्तेदारों के नाम पर भी संपत्तियां खरीदी गईं? यह जांच भी ईडी करेगा और देश के सामने सार्वजनिक करेगा। यह सूचना भी सामने आई है कि कानपुर के उद्योगपतियों ने भी डॉन की मदद की और नोटबंदी के दौरान ‘नंबर दो का पैसा’ ब्याज पर लगवाया। इन तमाम तथ्यों की पुष्टि ईडी ही करेगा, लेकिन अहम सवाल यह है कि एक गांव या छोटे से शहर में बैठा गैंगस्टर अपराधी इस तरह अकूत आर्थिक साम्राज्य कैसे बढ़ाता चला गया? शायद जांच के जरिए ही डॉन, पुलिस, प्रशासन और नेताओं की सांठगांठ बेनकाब हो! सवाल यह भी है कि अब काली कमाई और आर्थिक साम्राज्य की नियति क्या होगी? यदि कानून की व्याख्या की जाए, तो डॉन के गैंग और परिजनों के हाथ खाली ही रहेंगे। ईडी जांच के बाद संपदाओं की नीलामी कर सकता है या विवादास्पद धन और प्रॉपर्टी को जब्त कर सकता है, क्योंकि इन संपदाओं का इतिहास काला और अपराध का रहा है, लिहाजा ऐसे कांडों से यह सबक भी सीखना चाहिए कि काले साम्राज्यों का पतन इसी तरह होता है। हमें यकीन है कि जांच एजेंसियों के कानूनी हाथ सत्ताधारी जमात तक नहीं पहुंचेंगे, लेकिन उसमें भी कंपकंपी और भय जरूर पैदा हो सकते हैं।
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