गरीबी में पिसते बचपन को बचाओ: नीलम सूद, लेखिका पालमपुर से हैं

By: Jul 28th, 2020 12:07 am

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कहानी एकदम फिल्मी है, परंतु भारतीय मानसिकता एवं विकृत व्यवस्था की जीती-जागती मिसाल है। हैरानी है कि पूरे घटनाक्रम से विपक्ष पूरी तरह नदारद था। न उनका कोई सवाल था, न गरीब के प्रति कोई संवेदना। कहां जा रहा है हमारा लोकतंत्र? विपक्ष विहीन लोकतंत्र की कल्पना तो बाबा साहेब अंबेडकर ने भी नहीं की होगी। काश आज अगर वह हमारे बीच होते तो पंचायती राज की विसंगतियों के सहारे खड़े हमारे लोकतंत्र में पिसते आम नागरिकों की व्यथा देख पाते…

एक गरीब का उसके बच्चों के लिए उज्ज्वल भविष्य का सपना देखना सत्ताधारियों को रास नहीं आया, इसलिए उसकी गरीबी को हथियार बनाकर उसी पर वार कर रही है सरकार। कुलदीप कुमार जो बेहद गरीब है, पशुधन द्वारा दूध के व्यवसाय से अपने सीमित दो बच्चों वाले परिवार का भरण-पोषण कर रहा था, तभी कोरोना जैसी महामारी का प्रकोप प्रारंभ होता है। बच्चों के स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करवा देते हैं, पर गरीब के पास आधुनिक तकनीक का कोई साधन नहीं है, फिर भी अभिलाषा है कि उसके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ाई करें और उसकी गरीबी उनके उज्ज्वल भविष्य में बाधा न बने। इसलिए वह फोन उधार में खरीद कर बच्चों की पढ़ाई जारी रखता है, परंतु दुर्भाग्य से समय पर मोबाइल पर लिया गया उधार चुकता नहीं कर पाता और अपनी एक गाय बेच कर उधार चुकता करता है। यह हृदय विदारक घटना जब समाज के सजग एवं सच्चे पत्रकारों तक पहुंचती है तो व्यवस्था के हर पहलू पर गौर किया जाता है कि बेहद गरीब होने के बावजूद उसे आज दिन तक गरीबी की रेखा से नीचे रहने का दर्जा क्यों नहीं मिला? सरकार द्वारा चलाई जा रही तमाम योजनाओं से उसे वंचित क्यों रखा गया? प्रधानमंत्री आवास योजना के बावजूद यह परिवार अपने पशुओं के साथ टूटी-फूटी गऊशाला में रहने को मजबूर क्यों है? फिर एक अंग्रेजी दैनिक ने इस समाचार को  प्रकाशित कर ट्वीट  किया  एवं प्रधानमंत्री जी से पूछा  कि मोदी जी, गरीबों के लिए बनी आपकी सब योजनाएं कहां हैं? यही ट्वीट राष्ट्रीय अखबार हिंदू के एडिटर अमित बरुआ द्वारा रीट्वीट किया गया। मुंबई, जो भारत की आर्थिक राजधानी है जहां कई उद्योगपति, जानी-मानी फिल्मी हस्तियां रहती हैं, ने ट्वीटर द्वारा इस समाचार को पढ़ा व उक्त परिवार की मदद के लिए हाथ बढ़ाने लगे जिसमें सोनू सूद ने भी रीट्वीट कर गरीब की गाय वापस लाने की बात कह सहायता करने की बात लिखी। यह ट्वीट इतना वायरल हुआ कि  इसके हजारों  रीट्वीट हुए व देश के कई बड़े ट्विटर हैंडल से  इसे रीट्वीट किया गया।  इससे पूर्व लोकल मीडिया द्वारा इस समाचार को प्रकाशित किया गया था जिससे वहां के स्थानीय विधायक रमेश धवाला ने कुलदीप की दयनीय स्थिति को देख उसकी कुछ आर्थिक मदद भी की थी। दानी सज्जनों की सहायता से अब तक कुलदीप के बैंक एकाउंट में लगभग दो लाख रुपए जमा हो चुके थे व अब भी उसके एकाउंट में पैसा आना जारी है। परंतु इस पूरे प्रकरण का दुखद पहलू यह है कि स्थानीय प्रशासन को अपनी नाकामी पर यकीन नहीं हो रहा था, इसलिए पूरे तामझाम के साथ उक्त परिवार के घर में दस्तक दे दी गई एवं उसकी गरीबी को हथियार बनाकर उसी पर वार किए जाने लगे।

पूरे परिवार को गुनाहगारों की तरह खड़ा कर मासूम बच्चों के बस्ते खंगाले गए। उनकी किताबों-कापियों की नुमाइश लगा कर फोटो खींचे गए। बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने के लिए दुत्कारा गया अर्थात उसे एहसास करवाया गया कि एक गरीब अनपढ़ को बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का सपना देखने का अधिकार किसने उसे दिया! जहां बड़े-बड़े घोटालों, अपराधियों, रिश्वतखोरों की रिपोर्ट तैयार करने में  वर्षों लगते हैं, वहीं गरीब की रिपोर्ट चंद घंटों में तैयार कर सरकार को भेज दी गई। अब समाज के प्रहरी पत्रकारों समेत गरीब परिवार सरकार के चाटुकारों, कई स्वयंभू नेताओं, छुटपुट पार्टी कार्यकर्ताओं के निशाने पर आ गए एवं सोशल मीडिया पर अमर्यादित भाषा का प्रयोग होने लगा। पूछा जाने लगा कि मोदी से सवाल करने का क्या मतलब? पत्रकार समुदाय दो भागों में विभाजित हो गया। कुछ सरकार के पक्ष में समाचारों को कुतर्क समेत परोसने लगे तो कुछ गरीब के साथ खड़े दिखाई दिए। कहानी एकदम फिल्मी है, परंतु भारतीय मानसिकता एवं विकृत व्यवस्था की जीती-जागती मिसाल है। हैरानी है कि पूरे घटनाक्रम से विपक्ष पूरी तरह नदारद था। न उनका कोई सवाल था, न गरीब के प्रति कोई संवेदना। कहां जा रहा है हमारा लोकतंत्र? विपक्ष विहीन लोकतंत्र की कल्पना तो बाबा साहेब अंबेडकर ने भी नहीं की होगी, जब हमारे संविधान की रचना हुई होगी।

बाबा साहेब अंबेडकर पंचायती राज व्यवस्था के खिलाफ  थे। काश आज अगर वह हमारे बीच होते तो पंचायती राज की विसंगतियों के सहारे खड़े हमारे लोकतंत्र में पिसते आम नागरिकों की व्यथा देख पाते। मोदी जी से सवाल करने का औचित्य भी यही रहा होगा कि प्रधानमंत्री कार्यालय उनकी अपनी ही पार्टी द्वारा चलाई जा रही प्रदेश सरकार की प्रशासनिक कार्यशैली का संज्ञान लेता और जनता को राहत पहुंचाता। परंतु इस सवाल का बतंगड़ बना कर व्यवस्था की विसंगतियों को छुपाया जाना पार्टी के भविष्य के लिए सर्वथा उचित न होने के बावजूद यह विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा जो अति दुर्भाग्यपूर्ण है। इस गरीब परिवार की सरकार को भी मदद करनी चाहिए। अच्छे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का अधिकार सबका है। विपक्ष को भी इस मामले में संज्ञान लेते हुए इस परिवार की मदद के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। वास्तव में ही यह यक्ष प्रश्न है कि गरीबी रेखा से नीचे होने के बावजूद इस परिवार को सरकारी सहायता आज तक क्यों नहीं दी गई। इस परिवार व उसके समर्थकों को प्रताडि़त करने का घटनाक्रम अति निंदनीय है। आशा की जानी चाहिए कि सरकार इस परिवार की मदद जरूर करेगी।


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