हिमाचल में शतरंज की संभावनाएं: हंसराज ठाकुर, लेखक मंडी से हैं

By: Jul 4th, 2020 12:07 am

हंसराज ठाकुर

लेखक मंडी से हैं

शतरंज के खेल में प्रदेश से अभी तक कोई भी खिलाड़ी चैस मास्टर, फीडे मास्टर, इंटरनेशनल मास्टर या ग्रैंड मास्टर नहीं बन पाया है क्योंकि इस छोटे से प्रदेश में सशक्त शतरंज संघ नहीं होने की वजह से ओपन स्पर्धाओं में भी कोचिंग संस्थान व प्रशिक्षण के अभाव में खिलाड़ी ज्यादा बेहतर नहीं कर पाए और आज तक विश्व शतरंज पटल पर कोई हिमाचली अपना रंग नहीं जमा पाया। पिछले दो सालों में डीएमसीए जैसे शतरंज संगठनों के चलते हिमाचल प्रदेश में शतरंज की बयार देखने को मिली है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों के बच्चों में इस खेल की बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ आज लॉकडाउन जैसी परिस्थिति में जहां सब खेल बंद पड़े हैं, शतरंज निर्बाध रूप से आयोजित की जा रही है…

विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास हेतु शिक्षा के साथ खेलें भी परमावश्यक हैं। हर खेल का अपना महत्त्व है व विद्यार्थी अपनी रुचि व कौशल के हिसाब से खेल का चयन करता है। वर्तमान स्कूली शिक्षा में लगभग सारे खेल विद्यार्थी के शारीरिक विकास के साथ जुड़े हैं। यहां बात करेंगे मानसिक संवर्द्धन से जुड़े खेल शतरंज की। विश्वनाथन आनंद का नाम कौन नहीं जानता? पांच बार का विश्व चैंपियन, वो भी अलग-अलग फॉर्मेट में। हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने शतरंज की खूबसूरती को पहचाना व देश के हर नागरिक के लिए इसे खेलना जरूरी बताया। उन्होंने शतरंज को सौ दुखों के एक हल के रूप में परिभाषित किया। परिणामस्वरूप नई शिक्षा नीति में भी शतरंज को तवज्जो मिली और हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने सौ दिन के एजेंडे में शतरंज, योग व संगीत को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने को मंजूरी दी।

सौभाग्यवश, पिछले दो सालों में ही सरकार के इस मिशन को शिक्षा विभाग व प्रदेश के शतरंज प्रेमियों ने पहली से बारहवीं कक्षा तक इसे स्कूली खेलों का अनिवार्य हिस्सा बना डाला। आज हिमाचल प्रदेश देश का ऐसा राज्य बन गया है जहां खेलों के साथ इसे स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया जा रहा है व इस दिशा में विकास के मामले में गुजरात, तमिलनाडु से अग्रणी नजर आ रहा है जो अपने आप में एक मिसाल  है। तत्कालीन शिक्षा सचिव हिमाचल सरकार ने दिसंबर 2018 में संयुक्त निदेशक प्रारंभिक शिक्षा की अध्यक्षता में राज्य शिक्षा काउंसिल सोलन की सहभागिता से प्रदेश शतरंज पाठ्यक्रम समिति का गठन किया, जिसमें प्रदेश के शतरंज प्रेमी शिक्षक भी सदस्य हैं। शिक्षक व शतरंज प्रेमी सदस्यों के सहयोग से यह कार्य जल्दी संपन्न कर लिया गया व पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने व आगामी क्रियान्वयन हेतु राज्य शिक्षा काउंसिल सोलन के पास विचाराधीन है। सरकार के एजेंडे के अनुसार बहुत जल्द प्रदेश के सरकारी स्कूलों में चैस क्लब भी देखने को मिल सकते हैं। शतरंज मानसिक संवर्द्धन के साथ-साथ विविधता का खेल है जिसे प्रकृति भी बाधित नहीं कर सकती। ऐसा खेल जिसे दस वर्ष का खिलाड़ी भी सौ वर्ष के खिलाड़ी के साथ खेल सकता है, जो किसी भी समय, किसी भी मौसम और किसी भी हालत में कहीं पर भी खेला जा सकता है, वो भी बहुत कम खर्चे पर। वार्षिक स्कूली खेल प्रतियोगिता के दौरान बरसात में जहां सब मैदानी क्रीड़ाएं बंद हो जाती हैं, शतरंज का खेल कमरों में भी निर्विघ्न जारी रहता है। सभी सरकारी विद्यालयों में माकूल खेल संसाधन भी उपलब्ध नहीं हैं। शतरंज के खेल में प्रदेश से अभी तक कोई भी खिलाड़ी चैस मास्टर, फीडे मास्टर, इंटरनेशनल मास्टर या ग्रैंड मास्टर नहीं बन पाया है क्योंकि इस छोटे से प्रदेश में सशक्त शतरंज संघ नहीं होने की वजह से ओपन स्पर्धाओं में भी कोचिंग संस्थान व प्रशिक्षण के अभाव में खिलाड़ी ज्यादा बेहतर नहीं कर पाए और आज तक विश्व शतरंज पटल पर कोई हिमाचली अपना रंग नहीं जमा पाया। पिछले दो सालों में डीएमसीए जैसे शतरंज संगठनों के चलते हिमाचल प्रदेश में शतरंज की बयार देखने को मिली है।

प्रदेश के सरकारी स्कूलों के बच्चों में इस खेल की बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ आज लॉकडाउन जैसी परिस्थिति में जहां सब खेल बंद पड़े हैं, शतरंज निर्बाध रूप से ऑनलाइन प्रतियोगिताओं के रूप में आयोजित की जा रही है। यहां तक कि इस संकट काल में शतरंज खिलाड़ी इस ऑनलाइन खेल से कोरोना फाइटर की मदद हेतु प्रदेश में सहयोग राशि जुटा पाए हैं। इस खेल की क्षमता से सरकार भी वाकिफ है। प्रदेश के शतरंज प्रेमियों को यह भी इंतजार है कि इस बार से शतरंज को अनिवार्य रूप से 19 वर्ष से कम आयु वर्ग के खिलाडि़यों के लिए भी नियमित रूप से लागू किया जाए। पिछले वर्ष इस वर्ग के ट्रायल में प्रदेश के 11 जिलों से लगभग 100 खिलाडि़यों ने भाग लिया था। आज प्रदेश में शतरंज प्रतिभाएं उभर रही हैं और विश्व भर में हुए अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि शतरंज खेलने वाले बच्चे अकसर पढ़ाई में भी अव्वल होते हैं। पिछले वर्ष अप्रैल माह में मतदाता जागरूकता हेतु चुनाव आयोग की अनुमति से दो हिमाचली प्रतिभाओं हितेश आजाद व हंसराज ठाकुर ने चैस मैराथन का अनोखा विश्व कीर्तिमान बनाया। आज प्रदेश के गांव-गांव तक स्कूलों के माध्यम से यह खेल लोकप्रिय बन रहा है। सरकार को शतरंज के क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करने के साथ प्रत्येक जिला स्तर पर खेल विभाग द्वारा संचालित चैस क्लब गठित करने होंगे ताकि उसमें जिला के हर आयु वर्ग के खिलाड़ी मिलकर युवाओं को इस खेल में और अधिक सशक्त बना सकें। प्रदेश को इंटरनेशनल मास्टर स्तर के कोच भी जुटाने होंगे, तभी इस नई पौध को सही दिशा दे पाने में हम कामयाब होंगे। आज कोविड-19 के इस मुश्किल दौर में भी यदि सरकार व शिक्षा विभाग चाहें तो प्रदेश में स्कूली स्तर पर भी घर बैठे बच्चों की ऑनलाइन शतरंज प्रतियोगिताएं आयोजित करवाई जा सकती हैं।

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-संपादक


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