लॉकडाउन के बजाय सजगता जरूरी: सुखदेव सिंह, लेखक नूरपुर से हैं

By: Jul 30th, 2020 12:06 am

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सुखदेव सिंह

लेखक नूरपुर से हैं

महामारी की हालत में कई लोग मानसिक तनाव के शिकार होकर आत्महत्याएं जैसी घटनाओं को अंजाम दिए जा रहे हैं। विपदा की घड़ी में सभी को संयम बरतते हुए अपने और समाज के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए सजगता बरतने की जरूरत है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार जनमानस के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए ही लॉकडाउन लगाए जाने की लोगों से सलाह मांग रही है। सरकार को लॉकडाउन लगाने की बजाय जो लोग सरकारी नियमों की अवहेलना कर रहे हैं, उनके खिलाफ  कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। लॉकडाउन आर्थिक नजरिए से ठीक नहीं है…

हिमाचल प्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव आरडी धीमान ने मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में दावा किया कि अगर कोरोना पीडि़तों का आंकड़ा दस हजार तक भी जाता है तो स्थिति नियंत्रण में ही रहेगी जो कि सुखद बात है। इस बीच कुछ जिलाधीश कोरोना वायरस से भयभीत होकर पुनः अगर लॉकडाउन लगाए जाने का प्रस्ताव सरकार को भेजें तो इसके क्या मायने समझे जाएं? अतिरिक्त मुख्य सचिव का दावा है कि अभी तक हिमाचल प्रदेश में जितने भी मामले कोरोना वायरस के सामने आए हैं, उनमें 95 प्रतिशत केसों में कोई लक्षण ही नहीं पाए गए थे। सरकार इस महामारी से लड़ने के लिए पूरी मुस्तैदी से काम कर रही है। संक्रामक रोग की चपेट में आए लोगों के लिए क्वारनटाइन सेंटर खोले गए हैं। स्वास्थ्य कर्मी समय-समय पर ऐसे लोगों की देखभाल करके उन्हें स्वस्थ बनाकर घरों को भेज रहे हैं। यही नहीं, अगले कुछ महीनों में कोरोना वायरस पीक पर चले जाने की उम्मीद भी है। ऐसे में पुनः प्रदेश के कुछ जिलों में लॉकडाउन लगाए जाने के लिए जनता से सुझाव मांगना समझ से परे है। बिजली, बस किराया, सीमेंट और खाद्य वस्तुओं तक के दाम बढ़ाए गए, मगर जनता से कोई सुझाव नहीं मांगे गए। कोरोना वायरस को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से दिन में कई बार एडवाजरी बदले जाने की वजह से ऐसा हो रहा है।

आए दिन बदलती डब्ल्यूएचओ की एडवाइजरी सरकारों में असमंजस बना रही है जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। प्रत्येक राज्य ने महामारी से निपटने के लिए अपने ही कायदे-नियम बनाए हुए हैं। नतीजतन सरकारी मशीनरी के आलाधिकारी इस विषय को लेकर कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। प्रदेश में पुनः लॉकडाउन लगाए जाने के बारे में सोचने से कहीं बेहतर होता कि अभी तक इसे पर्यटकों के लिए न खोला जाता। लॉकडाउन लगाए जाने की लालसा वही लोग पाले हुए हैं जो घर बैठकर मुफ्त में वेतन लेकर बरसात की छुट्टियां आजकल मना रहे हैं। प्रदेश में मानसिक रोग की वजह से अभी तक करीब 136 लोगों की ओर से आत्महत्याएं किए जाने की सरकार पुष्टि कर चुकी है। ऐसे में अगर पुनः लॉकडाउन लगाया जाता है तो यह आंकड़ा इससे भी अधिक बढ़ सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है। लॉकडाउन इस महामारी का स्थायी समाधान नहीं है। इसलिए जनता को अपने स्वास्थ्य की चिंता करते हुए जागरूकता बरतने की अधिक जरूरत है। शारीरिक दूरी बनाकर, मुंह पर मास्क, हाथों में ग्लब्ज पहनकर और जागरूक बनकर ही इस महामारी से बचाव हो सकता है।

लॉकडाउन लगाए जाने की वजह से फ्रंट लाइन में काम करने वाले पुलिस, स्वास्थ्य, आशा वर्कर, पंचायती राज विभाग के कर्मचारियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कड़कती धूप में सड़कों पर यातायात को नियंत्रण में रखना कोई आसान काम नहीं होता है। अपनी जिंदगी से प्यार है तो लोगों को स्वास्थ्य की चिंता आज स्वयं करनी ही होगी। समय अब वह नहीं रहा कि सरकारें  आम जनमानस को यह हिदायतें देती रहें कि वह आपस में शारीरिक दूरी बनाकर रखें, मास्क का सदैव उपयोग करें, हैंड सेनेटाइजर का इस्तेमाल करने से ही कोरोना महामारी से बचा जा सकता है। चार महीने लॉकडाउन रहने से लोगों में सामाजिक जागरूकता भी बढ़ी है, इसमें कोई दो राय नहीं है। अब लोगों को सुनिश्चित करना है कि कोरोना वायरस से किस तरह खुद अपना, परिवारजनों और आम जनता का बचाव करना है। लॉकडाउन की वजह से सरकारों को कितना नुकसान उठाना पड़ा, सिवाय उनके दूसरा कोई नहीं जान सकता है। आज हालात ऐसे बदतर बन चुके हैं कि सरकारी विभागों के कर्मचारियों का वेतन भुगतान करना भी सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। निजी कम्पनियों का कामकाज पुनः पटरी पर लौट आए, इसके लिए जनता का सहयोग मिलना भी सबसे अहम है। कुछेक राज्यों ने आपदा की घड़ी में सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कुछ कटौती करके आर्थिक समस्या को हल करने की कोशिश की है। कोरोना वायरस अब दिनोंदिन महामारी न रहकर सिर्फ व्यवसाय का गोरखधंधा बनकर रह चुका है। सरकारी और गैर सरकारी कम्पनियां बिना कोरोना वायरस टेस्ट लिए कार्यालय में आने से अपने कर्मचारियों को रोक रही हैं।

 मेडिकल सेंटरों में कोरोना वायरस का टेस्ट करवाने वालों की खासी भीड़ देखने को मिल रही है। प्रत्येक  मेडिकल सेंटर कोरोना वायरस टेस्ट के लोगों से मनमाने दाम वसूल कर रहे हैं। कोरोना को हम लोगों ने समाज में एक दानव की भांति प्रस्तुत किया है। नतीजतन लोग इसके डर से भी मर रहे हैं। जनता वैसे भी पहले कई गंभीर बीमारियों की  चपेट में थी, मगर मौजूदा समय में किसी की मौत होने का कारण सिर्फ  कोरोना को ठहराया जाना गलत है। हर वर्ष नए नाम से वायरस इजाद होता आया है, लेकिन कोरोना से लोग ज्यादा ही अपने आपको को असुरक्षित मान रहे हैं। लॉकडाउन रहने की वजह से गरीब आदमी को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है जिनका चूल्हा रोजाना दिहाड़ी लगाने से चलता है। महामारी की हालत में कई लोग मानसिक तनाव के शिकार होकर आत्महत्याएं जैसी घटनाओं को अंजाम दिए जा रहे हैं। विपदा की घड़ी में सभी को संयम बरतते हुए अपने और समाज के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए सजगता बरतने की जरूरत है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार जनमानस के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए ही लॉकडाउन लगाए जाने की लोगों से सलाह मांग रही है। सरकार को लॉकडाउन लगाने की बजाय जो लोग सरकारी नियमों की अवहेलना कर रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। बाहर से जो लोग हिमाचल में प्रवेश कर रहे हैं, उनकी पहले जांच होनी चाहिए। लॉकडाउन लगाना आर्थिक नजरिए से ठीक नहीं है। सरकार के साथ-साथ विभिन्न वर्गों को पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है।


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