मार्केटिंग बोर्ड कैसे झेलेगा, एक अरब रुपए की चपत

By: Jul 5th, 2020 12:05 am

 वन नेशन, वन मार्केट के कई साइड इफेक्ट

 मंडियों से बाहर खरीद फरोख्त से लेकर बैरियर शुल्क खत्म होने से हर साल होगा भारी घाटा

 कर्मचारियों को पड़ सकते हैं वेतन के लाले, मंडियों के ठप होने की बढ़ी आशंका

हिमाचल में मार्केटिंग बोर्ड को सालाना एक अरब का घाटा उठाना पड़ सकता है। कारण यह कि मंडियों से बाहर खरीद-बिक्री व बैरियरों पर मंडी शुल्क समाप्त कर दिया गया है। इससे  प्रदेश विपणन बोर्ड को बड़ा झटका लग सकता है। एक अनुमान के अनुसार हर वर्ष एक अरब रुपए का घाटा होगा।  इससे विकास कार्य ठप्प होंगे। आने वाले समय में कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। बोर्ड ने प्रदेश की तमाम कृषि उपज मंडी समितियों से मंडियों से बाहर से आने वाले मंडी शुल्क का ब्यौरा मांगा है। बोर्ड के प्रबंध निदेशक नरेश ठाकुर के मुताबिक तमाम मंडियों और समितियों से खाका इकट्ठा कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी। केंद्र ने बैरियरों पर व मंडियों  से बाहर मंडी शुल्क लेने पर पाबंदी लगा दी है। मंडियों  में काम करने वाले आढ़ती कहते हैं कि इस तरह से मंडियां फेल होंगी। उनका कहना है कि मंडियों में भी मंडी शुल्क समाप्त किया जाए, जबकि इसे यूजर चार्जेस के नाम से वसूला जा रहा है। गौरतलब है कि हिमाचल  के बाहर अन्य राज्यों में काफी स्थानों पर सरकारों को विरोध का सामना भी करना पड़ा है। केंद्र सरकार के वन नेशन वन मार्केट कार्यक्त्रम के तहत इन बेरियरों से मंडी शुल्क लेना बंद कर दिया  है । अब किसी भी किस्म की मार्केट फीस नहीं देनी पड़ेगी। कृषि उपज मंडी समिति जिला कांगड़ा  की सालाना आय करीब 6 करोड़ रुपए है। बैरियरों व मंडियों के बाहर से मंडी शुल्क खत्म हो जाने के बाद समिति की लगभग 70 फीसदी इनकम खत्म हो जाने की संभावना है। माना जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश का कमाऊ पूत मंडी बोर्ड बेरियरों के ठप्प होने व मंडियों के बाहर से मंडी शुल्क समाप्त होने के बाद नुकसान में जा सकता है। इन बैरियरों से व्यापारी सब्जी फल अंडा दूध मुर्गा करियाना लाकर एक फीसदी मंडी शुल्क देते हैं। बैरियरों में मंडी  शुल्क बंद होने के बाद यह खत्म हो गया है। माना जाता है कि इससे किसानों को सीधे कोई लाभ नहीं होगा बल्कि कारोबारियों को फायदा पहुंचने की संभावना व्यक्त की जा रही है। जानकारों का कहना है कि अच्छा होता कि किसानों को लाभ पहुंचाने के दृष्टिगत मंडी समितियों को यह निर्देश दिए जाते की किसानों की शिनाख्त कर उन्हें अपने उत्पाद लाने की छूट दी जाए, लेकिन इन बेरियरों  पर मंडी शुल्क बंद होने से भारी नुकसान मंडी समिति को होगा।  मंडी समिति जिला कांगड़ा के सचिव राजकुमार भारद्वाज ने बताया कि सरकारी आदेशों की पालना की जा रही है जो भी सरकार का निर्देश होगा उसे अमलीजामा पहनाया जाएगा।

क्या कहते हैं नरेश ठाकुर

कृषि विपणन बोर्ड के प्रबंध निदेशक नरेश ठाकुर कहते हैं कि कोल्ड स्टोरों की स्थापना के साथ साथ यहां परसेसिंग यूनिट वगैरा  नए वेंचर स्थापित किए जाएंगे, ताकि इनकम के साधन बढ़ाए जाएं, जहां तक मंडी शुल्क बंद होने का सवाल है तो यह मसला सरकार के समक्ष उठाया जा रहा है और अवगत करवाया जा रहा है कि इससे कितना घाटा होने की संभावना है । वह बताते हैं कि नई मंडियो  की स्थापना से किसानों को अच्छा रेट मंडियों में फसल का मिलेगा। वे मानते हैं कि मंडी शुल्क  खत्म करने  के फैसले से मंडियों पर काम का असर पड़ सकता है,लेकिन बदली परिस्थितियों में भूमिका बदलनी पड़ती है ज्यादा नए वेंचर स्थापित किए जाएंगे।

जिला संवाददाता, कांगड़ा

वाह हिमाचल! कोरोना काल में लावारिस पशुओं के लिए खाली छोड़े खेत खलिहान, चारे के साथ दवा का इंतजाम भी कर रहे ग्रामीण

यूं तो गोरक्षक होने का दम भरने वाले सैकड़ों होते हैं, लेकिन जो सच्चे गोरक्षक होते हैं, उनकी बात ही निराली होती है। अपनी माटी में इस बार हम अपने दर्शकों को कु छ ऐसी ही स्टोरी दिखाने जा रहे हैं,जो हर किसी की आंखें खोल देगी। तो आइए चलते हैं ऊना जिला में कुटलैहड़़ हलके के गांव अगलौर में। कोरोना काल में  इनसान से जानवरों तक बिलख उठे  हैं। लावारिस पशुओं को भी चारा नहीं मिल पा रहा है। उनके चेहरों पर अजीब सी उदासी नजर आ रही है। बेजुबानों के इसी दर्द को सही मायने में समझा है अगलौर के ग्रामीणों ने। यहां ग्रामीणों ने अपने खेत खलिहान लावारिस पशुओं की खातिर खुला छोड़ दिए हैं। खासकर  राजेश कुमार और उनकी पत्नी इस काम में सबसे आगे हैं। ग्रामीण पशुओं के लिए चारे का इंतजाम तो कर ही रहे हैँ, साथ ही उनकी दवा का भी ख्याल रख रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पशुओं को संकट की इस घड़ी में चारा मिलता रहना चाहिए। बहरहाल यहां विचरने वाले 50 से ज्यादा मवेशियों को सहारा मिल रहा है। तो यह थी इस होनहार गांव की कहानी। जल्द मिलेंगे नई कहानी के साथ।

रिपोर्टः निजी संवाददाता, थानाकलां

बरसात में हिमसोना दिखाने लगा रंग, तेजी से बढ़ रहे टमाटर के रेट

बरसात आते ही टमाटर के दाम बढ़ने लगे हैं। प्रदेश भर की मंडियों से लेकर छोटी दुकानों तक इसका असर देखा जा रहा है। अपनी माटी टीम ने प्रदेश के बाजारों में टमाटर के हाल जानने की कोशिश की,तो पता चला कि आने वाले दिनों में इसके दाम और बढ़ सकते हैं। कुछ दिन पहले हमने सोलन मंडी में हिमसोना की पड़ताल की, तो वहां इसका एक क्रेट 800 रुपए में बिक रहा था। वहीं  हाइब्रिड किस्म का टमाटर 600 रुपए प्रतिक्रेट तक बिक रहा था। ऐसे में  किसानों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इसके भाव में इजाफा होगा।  दूसरी तरफ मार्केट में लहसुन के रेट में कमी दर्ज की गई। इसका मुख्य कारण यह है कि तमिलनाडू में लॉकडाउन को 31 जुलाई तक बढ़ा दिया गया है और वहां की कई मंडियों में लहसुन की सप्लाई नहीं हो रही है। दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर का लहसुन भी मार्केट में पहुंच चुका है। इस वजह से लहसुन के दाम में 5 से 15 रुपए प्रति किलो तक की गिरावट दर्ज की गई है।                                               रिपोर्टः दिव्य हिमाचल टीम, सोलन

मक्की-कोदरा की ताकत से डरा कोरोना, हाइब्रिड बीजों का मोह छोड़ पुरानी फसलें याद करने लगे किसान

कोरोना काल में आज सारी दुनिया में इम्युनिटी बढ़ाने की बात हो रही है। विश्व भर की नजर भारतीय खान पान पर है। हो भी क्यों न भारत की पुरानी फसलें मसलन कोदरा, कोणी,  मक्की, चीणी के अलावा हल्दी, लहसुन और मसाले इतने जबरदस्त इम्युनिटी बूस्टर हैं कि हर कोई इनका कायल हो गया है। जहां तक हिमाचल की बात है,तो यहां कल तक हाइब्रिड बीजों की तरफ भागने वाले लोगों ने फिर से पारंपरिक खेती को अपनाना शुरू कर दिया है। अपनी माटी के इस अंक में हम आपको मिलाने जा रहे हैं करसोग में नांज इलाके के होनहार किसान नेकराम शर्मा से। नेकराम लगातार लोगों को गांवों में जाकर पुरानी फसलों के प्रति प्रेरित कर रहे हैं, ताकि कोविड-19 जैसी बीमारी से देवभूमि को महफूज रखा जा सके। हाल ही में नेकराम ने भंडारनू पंचायत में लोगों को पारंपरिक फसलों के बीज बांटे। नेकराम को यकीन है कि आज भारत अगर कोविड के आगे इतनी मजबूती से डटा है, तो इसका सबसे बड़ा कारणा हमारी अपनी सेहतमंद फसलें हैं। बहरहाल नेकराम और उनके जैसा विजन रखने वाले हर हिमाचली किसान की बात में दम है,तभी तो हम कोरोना से अच्छे तरीके से लड़ रहे हैं। अपनी माटी ऐसे होनहार किसानों को सलाम करती है।  रिपोर्ट ः कार्यालय संवाददाता, करसोग

नेपाली क्यों, अपनी लेबर पर भरोसा नहीं क्या

सेब सीजन की तैयारियों के संदर्भ मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में बैठक हुई। इस बैठक मे पूर्व बागवानी मंत्री वर्तमान में प्रदेश सरकार में मुख्य सचेतक नरेंद्र बरागटा भी शामिल हुए। बरागटा ने कहा कि इस बैठक में विभाग के अधिकारियों ने सेब सीजन की तैयारियों के संदर्भ में प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें उन्होंने जानकारी दी कि विभाग सेब सीजन में काम करने वाली लेबर के ठेकेदारों के संपर्क में है। इस बात पर बरागटा ने कहा कि वो इस  बात से संतुष्ट नहीं हैं उन्होंने कहा कि सेब सीजन में लेबर सीधा बागबानों के संपर्क में होती है किसी ठेकेदार के संपर्क में नहीं होती। इसका मतलब है कि विभाग गलत जानकारी दे रहा है। बरागटा ने हैरानी जताते हुए कहा कि प्रदेश में 80 प्रतिशत छोटे बागबान है, जिनके पास इस समय लेबर न के बराबर है। हमें प्रदेश के अंदर ही जिला चंबा, सिरमौर, बिलासपुर, मंडी तथा उतर प्रदेश के सुल्तानपुर आदि से लेबर लाने का प्रयास करना चाहिए।

रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, ठियोग

मंडियों में सेब की एंट्री से बढ़ी रौनक, सोलन से बाहर जाएगी खेप

सोलन। आखिर हिमाचल में सेब सीजन शुरू हो गया है। फल एवं सब्जी मंडी सोलन में सेब की एंट्री हो चुकी है। सोलन में शुरुआती दिनों में सेब की पहली खेप की बिक्री की धीमी शुरुआत हुई थी। यहां से सेब दिल्ली आदि बाजारों में जाता है। अमूमन शुरुआत में 20 किलो सेब के बॉक्स की कीमत 300 से 500 रुपए के बीच रहती है। यहां रेड जोन किस्म की अरली वैरायटी आई  है।

जानिए, आपका कितना बड़ा दोस्त है लुंगड़ू

गर्मियों के मौसम में प्रदेश के ऊपरी क्षेत्रों विशेषकर हिमालय की रेंज में प्राकृतिक तौर पर उगने वाला एक जंगली पौधा लुंगडू इस क्षेत्र में आमजन की रसोई में अपना विशेष स्थान रखता है। इसे लिंगड तथा खसरोड़ के नाम से भी जाना जाता है। प्रदेश में यह सब्जी अप्रैल-मई से अगस्त-सितंबर तक होती है। प्रकृति के आगोश में उगने वाला लुंगड़ू प्राकृतिक गुणों से भरपूर और बेहद ही स्वादिष्ट व पौष्टिक होता है। लुंगडू में विटामिन-ए, विटामिन-बी कांप्लेक्स, आयरन, फैटी एसिड इत्यादि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके चलते लुंगड़ू की सब्जी कई औषधीय गुणों से भरपूर है। सीएसआईआर, पालमपुर द्वारा किए गए प्रारंभिक शोधों में यह बात सामने आई है कि इसमें कई औषधीय गुण मौजूद हैं।  लुंगड़ू का इतिहास काफी पुराना है। लुंगड़ू यानि डाप्लेजियम मैक्सिमम एक बड़े पते का फर्न है, जो लंबे समय से हमारे भोजन का हिस्सा रहा है। यह हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण पौधा होता है, जिसका उपयोग सब्जी व आचार में किया जा सकता है।

रिपोर्टः नगर संवाददाता,धर्मशाला

गजब का धान, गजब की खुशबू

बासमती चावल की घरेलू बाजार के अलावा विदेशी बाजार में भी बहुत अच्छी मांग है। पूसा-1121 और पूसा-1718 किस्मों के चावल में अनाज और खाना पकाने के गुणों का संयोजन होता है। आसान पाचनशक्ति और अच्छी सुगंध के कारण ये किस्में जीआई के तहत भी संरक्षित है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू -कश्मीर और पश्चिमी राज्यों के इंडो-गैंगेटिक भागों में इनकी भरपूर खेती होती है। प्रदेश  में पूसा बासमती-1121 ने खरीफ 2019 के दौरान 3500 हेक्टेयर (लगभग 20 प्रतिशत) बासमती क्षेत्र को कवर किया था। अच्छी सुगंध व खाना पकाने के बाद उच्च विस्तार वाली पूसा बासमती-1121 एक असाधारण किस्म है जिसमें चावल पकाने के बाद दाने की लंबाई 22 मिमी तक होना इसकी  प्रमुख विशेषता है। पारंपरिक बासमती की 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में इसकी औसत उपज 4.5 टन प्रति हेक्टेयर है। पूसा-1121 बासमती पर शोध में अभी भी कीटों और रोगों के प्रतिरोध पर कार्य प्रगति पर है ताकि कीटनाशक अवशेषों की समस्या का स्थायी रूप से समाधान हो सके और इसके उत्पादन को टिकाऊ बनाया जा सके। इसके अलावा उच्च क्षेत्रों में कम तापमान की शुरुआत से पहले इसकी परिपक्वता को आगे बढ़ाने के लिए छोटी अवधि के जीन भी उपयोग में लाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पूसा बासमती 1121 का ही एक उन्नत संस्करण जो कि पूसा बासमती-1718 है।

प्रो सरयाल को जाता है श्रेय

दुनिया की सबसे लंबी अनाज बासमती किस्म पूसा-1121 विकसित करने का श्रेय प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल को जाता है। उन्होंने बताया कि यह बासमती किस्में अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा अर्जक हैं। पूसा बासमती-1121 का देश के कुल बासमती एकड़ क्षेत्र के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में बीजी जाती है और प्रतिवर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 18000 करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा अर्जन का योगदान देती है।

जुलाई में जादुई प्याज तैयार, बरसात तंग करे तो उखाड़ लें, मौसम साफ होने पर फिर रोप दें

यकीन करना कठिन है,लेकिन यह सोलह आने सच है कि जुलाई में खुले खेत में प्याज तैयार हो रहा है। यह कारनामा कर दिखाया है कांगड़ा जिला में इच्छी गांव के होनहार किसान बलबीर सैणी ने। प्रदेश के अग्रणी मीडिया हाउस ‘दिव्य हिमाचल’ द्वारा एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजे गए सैणी लगातार खेतों में नए नए प्रयोग कर रहे हैं। सैणी ने बताया कि उन्होंने दो कनाल में यह देसी प्याज रोपा है। मार्च में पनीरी दी थी,दस मई को पनीरी को ट्रांसप्लांट किया गया। अभी इस प्याज का वजन 50 ग्राम तक है। आने वाले 15 दिन में यह 200 ग्राम वजनी होगा। खास बात यह है कि इस प्याज को कच्चा भी यूज कर सकते हैं और पक्का होने का इंतजार भी कर सकते हैं,जब इसका वजन 400 ग्राम तक हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस प्याज पर ब्याड़ नहीं आता। यही नहीं, अगर जुलाई में बारिशें ज्यादा हों,तो इन गट्ठियों को जमीन से निकालकर घर में रख सकते हैं। जब बारिशें कम हों,तो इसे फिर से खेत में लगा सकते हैं। किसान भाइयों को अगर इस प्याज से संबंधित कोई जानकारी लेनी हो तो वे 9816232359 पर संपर्क कर सकते हैं।        रिपोर्ट: हैडक्वार्टर ब्यूरो

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